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________________ एक ही नियम : होश उसे अकर्म कहते हैं। ___ महावीर प्रमाद को कर्म कहते हैं, करने को नहीं / महावीर कहते हैं, मूर्छा से किया हुआ हो तो कर्म, होशपूर्वक किया हो तो अकर्म / जरा जटिल है और थोड़ा गहन उतरना पड़ेगा। __ अगर आपने कोई भी काम बेहोशीपूर्वक किया हो, आपको करना पड़ा हो, आप अचेतन हो गये हों करते वक्त, आप अपने मालिक न रहे हों करते वक्त, आपको ऐसा लगा हो कि जैसे आप पजेस्ड हो गये हों, किसी ने आपसे करवा लिया है, आप मुक्त नियंता न रहे हों, तो कर्म है। अगर आप अपने कर्म के मालिक हों, नियंता हों, किसी ने करवा न लिया हो, आपने ही किया हो पूरी सचेतनता से, पूरे होश से, अप्रमाद से, तो महावीर कहते हैं; अकर्म / इसे हम उदाहरण लेकर समझें। आपने क्रोध किया। क्या आप कह सकते हैं कि आपने क्रोध किया? या आपसे क्रोध करवा लिया गया? एक आदमी ने गाली दी, एक आदमी ने आपको धक्का मार दिया, एक आदमी ने आपके पैर पर पैर रख दिया, एक आदमी ने आपको इस ढंग से देखा, इस ढंग का व्यवहार किया कि क्रोध आप में हुआ, क्रोध आप में किसी से पैदा हुआ। यह आदमी गाली न देता, यह आदमी पैर पर पैर न रख देता, यह आदमी इस भद्दे ढंग से देखता नहीं तो क्रोध नहीं होता / क्रोध आपने नहीं किया, किसी और ने आपसे करवा लिया-पहली बात / मालिक कोई और है, मालिक आप नहीं हैं / इसको कर्म कहना ही फिजूल है, करनेवाले ही जब आप नहीं हैं, तो इसे कर्म कहना फिजूल है। बटन हमने दबायी और पंखा चल पड़ा / पंखा नहीं कह सकता कि यह मेरा कर्म है। या कि कह सकता है? बटन बंद कर दी, पंखा चलना बंद हो गया। यह पंखे से करवाया गया। पंखा मालिक नहीं है, पंखा अपने वश में नहीं है। पंखा किसी और के वश में है। ___ और के वश में होने का मतलब होता है, बेहोश होना / जब आप क्रोध करते हैं तब आप होश में करते हैं? कभी आपने होश में क्रोध किया है? करके देखना चाहिए। पूरा होश संभालकर कि मैं क्रोध कर रहा हूं, और तब आप अचानक पायेंगे कि पैर के नीचे से जमीन खिसक गयी, क्रोध तिरोहित हो गया। ___ होशपूर्वक आज तक क्रोध नहीं हो सका। और जब भी होगा तब बेहोशी में होगा। जब आप क्रोध करते हैं तब आप मौजूद नहीं होते, आप यंत्रवत हो जाते हैं। कोई बटन दबाता है, क्रोध हो जाता है। कोई बटन दबाता है, प्रेम हो जाता है / कोई बटन दबाता है, ईर्ष्या हो जाती है। कोई बटन दबाता है, यह हो जाता है, वह हो जाता है। आप हैं कि सिर्फ बटनों का एक जोड़ हैं, एक मशीन हैं जिसमें कई बटने लगी हैं। यहां से दबाओ ऐसा हो जाता है, वहां से दबाओ वैसा हो जाता है। ___ एक आदमी मुस्कुराते हुए आकर कह देता है कुछ दो शब्द प्रशंसा के, भीतर कैसे गीत लहराने लगते हैं, वीणा बजने लगती है। और एक आदमी जरा तिरछी आंख से देख लेता है और एक तिरस्कार का भाव आंख से झलक जाता है। भीतर सब फूल मुरझा जाते हैं, सब धारा रुक जाती है गीत की। आग जलने लगती है, धुआं फैलने लगता है। आप हैं या सिर्फ चारों तरफ से आनेवाली संवेदनाओं का आघात आपको चलायमान करता रहता है? महावीर कहते हैं, मैं उसे ही कर्म कहता हूं, जो प्रमाद में किया गया हो। उसी से बंधन निर्मित होता है, इसलिए कर्म कहता हूं। जिसको आपने मूर्छा में किया है, उससे आपबंध जायेंगे। करने में ही बंध गये हैं, करने के पहले भी बंधे थे, इसीलिए किया है। वह बंधन है। अगर हम अपने कर्मों की जांच-पड़ताल करें तो हम पायेंगे, वे सभी ऐसे हैं। वे सब एक दूसरे पर निर्भर हैं। उसमें हम कहीं भी 47 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340030
Book TitleMahavir Vani Lecture 30 Ek hi Niyam Hosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size68 MB
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