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________________ महावीर-वाणी भाग : 2 जब बीमारी जोर की होती है, महामारी होती है, तो डाक्टर अपने को भूल ही जाता है। न भूले, तो बीमार पड़ेगा। यह भूलना बाहर की बीमारी तक को रोक देता है। वे जो दूसरे लोग हैं चारों तरफ, वे भयभीत हो जाते हैं कि कहीं बीमारी मुझे न पकड़ जाये / यह कहीं बीमारी मुझे न पकड़ जाये, यह मैं भाव ही बीमारी को पकड़ने का द्वार बन जाता है / रिसेप्टिव हो जाता है। यह तो बाहर की बीमारी के संबंध में है, भीतर की बीमारी के संबंध में तो और जटिलता हो जाती है। ये सारी सूचनाएं साधक के लिए हैं। यही सूचनाएं नहीं, सूचनाएं मात्र साधक के लिए हैं / सिद्ध पुरुष के लिए क्या सूचना है। सिद्ध पुरुष का अर्थ ही यह है कि जिसको करने को अब कुछ न बचा / सिद्ध का अर्थ क्या होता है? सिद्ध का अर्थ होता है जिसे करने को कुछ न बचा, सब पूरा हो गया, सब सिद्ध हो गया। उसके लिए तो कोई भी सूचना नहीं है / ये सारी सूचनाएं मार्ग पर चलनेवाले के लिए हैं, साधक के लिए हैं। एक और प्रश्न है। आशुप्रज्ञ होना प्रकृति-दत्त आकस्मिक घटना है या साधना-जन्य परिणाम? / प्रकृति-दत्त घटना नहीं है, आकस्मिक घटना नहीं है, साधना-जन्य परिणाम है / प्रकृति है अचेतन / आपको भूख लगती है, यह प्रकृति-दत्त है। आपको प्यास लगती है, यह प्रकृति-दत्त है / आप सोते हैं रात, यह प्रकृति-दत्त है। आप जागते हैं सुबह, यह प्रकृति-दत्त है। यह सब प्राकृतिक है, यह अचेतन है / इसमें आपको कुछ भी नहीं करना पड़ा है, यह आपने पाया है। यह आपके शरीर के साथ जुड़ा हुआ है। लेकिन एक आदमी ध्यान करता है, यह प्रकृति-दत्त नहीं है। अगर आदमी न करे तो अपने आप यह कभी भी न होगा। भूख लगेगी अपने आप, प्यास लगेगी अपने आप, ध्यान अपने आप नहीं लगेगा। कामवासना जगेगी अपने आप, मोह के बंधन निर्मित हो जायेंगे अपने आप, लोभ पकड़ेगा, क्रोध पकड़ेगा अपने आप। धर्म नहीं पकड़ेगा अपने आप। इसे ठीक से समझ लें। ___ धर्म निर्णय है, संकल्प है, चेष्टा है, इन्टेंशन है। बाकी सब इंसटिंक्ट है। बाकी सब प्रकृति है। आपके जीवन में जो अपने आप हो रहा है, वह प्रकृति है। जो आप करेंगे तो ही होगा और तो भी बड़ी मुश्किल से होगा / वह धर्म है। जो आप करेंगे, तभी होगा, बड़ी मुश्किल से होगा क्योंकि आपकी प्रकृति पूरा विरोध करेगी कि यह क्या कर रहे हो? इसकी क्या जरूरत है? पेट कहेगा, ध्यान की क्या जरूरत है? भोजन की जरूरत है। शरीर कहेगा, नींद की जरूरत है, ध्यान की क्या जरूरत है? काम-ग्रंथियां कहेंगी कि काम की, प्रेम की जरूरत है। धर्म की क्या जरूरत है? __ आपके शरीर को अगर सर्जन के टेबल पर रखकर पूरा परीक्षण किया जाये तो कहीं भी धर्म की कोई जरूरत नहीं मिलेगी, किसी ग्रंथि में / सब जरूरतें मिल जायेंगी। किडनी की जरूरत है, फेफड़े की जरूरत है, मस्तिष्क की जरूरत है, वह सब जरूरतें सर्जन काटकर अलग-अलग बता देगा कि किस अंग की क्या जरूरत है, लेकिन एक भी अंग मनुष्य के शरीर में ऐसा नहीं जिसकी जरूरत धर्म है। ___ तो धर्म बिलकुल गैरजरूरत है। इसीलिए तो जो आदमी केवल शरीर की भाषा में सोचता है वह कहता है, धर्म पागलपन है, शरीर के लिए कोई जरूरत है नहीं। बिहेवियरिस्ट्स हैं, शरीरवादी मनोवैज्ञानिक हैं; वे कहते हैं, क्या पागलपन है? धर्म की कोई जरूरत ही नहीं है। और जरूरतें हैं, धर्म की क्या जरूरत है? समाजवादी हैं, कम्युनिस्ट हैं, वे कहते हैं, धर्म की क्या जरूरत है? और सब जरूरतें हैं। और जरूरतें समझ में आती हैं। क्योंकि उनको खोजा जा सकता है। धर्म की जरूरत समझ में नहीं आती। कहीं कोई कारण नहीं है। इसलिए पशुओं में सब है जो आदमी में है। सिर्फ धर्म नहीं है। और जिस आदमी के जीवन में धर्म नहीं है, उसको अपने को आदमी कहने का कोई हक नहीं है। क्योंकि पश के जीवन में सब है जो आदमी के जीवन में है। ऐसे आदमी के जीवन में, जिसके जीवन में धर्म नहीं है, वह कहां से अपने को अलग करेगा पशु से? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340029
Book TitleMahavir Vani Lecture 29 Aliptata aur Anasakti ke Bhav Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size71 MB
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