SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महावीर-वाणी भाग : 1 चेतन हो जाता हो तो मुश्किल है। बेहोश ही चलता है। ___ मनुष्य को पशुओं से तौलें तो चेतन मालूम पड़ता है। अगर मनुष्य को उसकी संभावना से तौलें, बुद्ध से, महावीर से तौलें, तो बेहोश मालूम पड़ता है। तुलनात्मक है। मनुष्य उसी अर्थ में मनुष्य हो जाता है जिस अर्थ में चेतना बढ़ जाती है। इसलिए हमने मनुष्य कहा है। मनुष्य का अर्थ है, जितना मन निखर जाता है, उतना। आदमी सब पैदा होते हैं, मनुष्य बनना पड़ता है। इसलिए आदमी और मनुष्य का एक ही अर्थ नहीं है। आदमी का तो इतना ही मतलब है कि हमारा जातिसूचक नाम है, आदम के बेटे-आदमी। ___ यह शब्द बड़ा अच्छा है। इसका भी मूल्य है। भाषाशास्त्री कहते हैं कि अदम, अहम का रूपांतरण है, और बच्चा जब जो पहली आवाजें करता है-आह, अहः, अहम-इस तरह की आवाजें करता है। उन आवाजों से अहम बना है, मैं। और उन्हीं आवाजों से अदम बना है, आदमी। बच्चे की पहली आवाज आदमी का नाम बन गयी है, अदम। लड़का बोलता है, आह, लड़की बोलती है, ईह; इसलिए ईव। पहली लड़की जब पैदा होती है तो वह नहीं बोलती, आह। लड़का बोलता, आह, आह। लड़की बोलती, ईह / इसलिए भाषाशास्त्री, हिब्रू भाषाशास्त्री कहते हैं, ईह की आवाज के कारण ईव, आह की आवाज के कारण अदम। आदमी और औरत / आदमी जातिवाचक नाम है, मनुष्य नहीं। मनुष्य चेतनासूचक नाम है। अंग्रेजी का 'मैन' संस्कृत के मनु का ही रूपांतरण है। हम कहते हैं, मनु के बेटे, नहीं अदम के बेटे। अदम के बेटे सभी हैं, लेकिन मनु का बेटा वह बनता है, जो अपने भीतर मनस्वी हो जाता है। जिसका मन जाग्रत हो जाता है, उसको हम मनुष्य कहते हैं। ___ महावीर ने कहा है, ऐसे तो अदम होना भी बहुत मुश्किल, मनुष्य होना और भी दुर्लभ है। कितनी चेतना है आपके भीतर, उसी मात्रा में आप मनुष्य हैं। कितना होश से जीते हैं, उसी मात्रा में मनुष्य हैं। क्यों? क्योंकि जितने होश से जीते हैं, उतने शरीर से टूटते जाते हैं और आत्मा से जुड़ते जाते हैं। और जितनी बेहोशी से जीते हैं उतने शरीर से जुड़ते जाते हैं और आत्मा से टूटते जाते हैं। होश सेतु है, आत्मा तक जाने का। मन द्वार है आत्मा तक जाने का। जितने मनस्वी होते हैं, उतनी आत्मा की तरफ हट जाते हैं। जितने बेहोश होते हैं, उतने शरीर की तरफ हट जाते है। इसलिए महावीर ने कहा है, जो-जो कृत्य बेहोशी में किये जाते हैं, वे पाप हैं। क्योंकि जिन-जिन कत्यों से आदमी शरीर हो जाता है, वे पाप हैं। और जिन-जिन कत्यों से आदमी आत्मा हो जाता है, वे पुण्य हैं। __कभी आपने देखा है, पाप को बिना बेहोशी के करना मुश्किल है। अगर आपको चोरी करनी है तो बेहोशी चाहिए। किसी की हत्या करनी है तो बेहोशी चाहिए। बड़ी बातें हैं, क्रोध करना है तो बेहोशी चाहिए। होश आ जाये तो हंसी आ जायेगी कि क्या मूढ़ता कर रहे हैं। लेकिन बेहोशी हो तो चलेगा। __इसलिए कुछ लोगों को जब ठीक से पाप करना होता है तो शराब पी लेते हैं। शराब पीकर मजे से पाप कर सकते हैं। होश कम हो जाता है, बिलकुल कम हो जाता है। होश जितना कम हो जाता है उतना हम शरीर हो जाते हैं—पदार्थवत, पशुवत। होश जितना ज्यादा हो जाता है उतना हम मनुष्य हो जाते हैं-आत्मवत। मनुष्यत्व का अर्थ है-बढ़ते हुए होश की धारा। जो भी करें वह होशपूर्वक करें। महावीर ने कहा है, विवेक से चलें, विवेक से बैलें, विवेक से उठे, विवेक से खायें, होश रखें, एक क्षण भी बेहोशी में न जायें, एक क्षण भी ऐसा मौका न मिले कि शरीर मालिक हो जाये, चेतना ही मालिक रहे। यह मालकियत जिन अर्थों में निर्धारित हो जाये, उसी अर्थ में आप , अन्यथा आप आदमी 518 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340027
Book TitleMahavir Vani Lecture 27 Manushya Badhte Hue Hosh ki Dhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size79 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy