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________________ महावीर-वाणी भाग : 1 से गुजर रहा है, लेकिन उस कीड़े की कौन सुनता है। उसकी भाषा उनकी समझ में नहीं आती। वे क्या कह रहे हैं, क्या सुन रहे हैं, उसकी समझ में नहीं आता। उसका संताप हम समझ सकते हैं। थोड़ी कल्पना करेंगे, अपने को ऐसी जगह रखेंगे तो उसका संताप हम समझ सकते हैं। ___ इसलिए महावीर ने कहा है, प्राणियों के प्रति दया। उनका संताप समझो। उनके पास भी तुम्हारी जैसी चेतना है, लेकिन शरीर बहुत अविकसित है। उनकी पीड़ा समझो। एक चींटी को ऐसे ही पैर दबाकर मत निकल जाओ। तुम्हारे ही जैसी चेतना है वहां / शरीर भर अलग है। तम जैसा ही विकसित हो सके. ऐसा ही जीवन है वहां, लेकिन उपकरण नहीं है। चारों तरफ. शरीर क्या है. उपकरण है। __ इसलिए जीव दया पर महावीर का इतना जोर है। वह सिर्फ अहिंसा के कारण नहीं। उसके कारण बहुत गहरे आध्यात्मिक हैं। वह जो तुम्हारे पास चलता हुआ कीड़ा है, वह तुम ही हो। कभी तुम भी वही थे। कभी तुम भी वैसे ही सरक रहे थे, एक छिपकली की तरह, एक चींटी की तरह, एक बिच्छू की तरह तुम्हारा जीवन था। आज तुम भूल गये हो, तुम आगे निकल आये हो। लेकिन जो आगे निकल जाये और पीछे वालों को भूल जाये, उस आदमी के भीतर कोई करुणा, कोई प्रेम, कोई मनुष्यत्व नहीं है। महावीर कहते हैं, यह जो दया है-पीछे की तरफ-यह अपने ही प्रति है। कल तुम भी ऐसी ही हालत में थे। और किसी ने तुम्हें पैर के नीचे दबा दिया होता तो तुम इनकार भी नहीं कर सकते थे। तुम यह भी नहीं कह सकते थे कि मेरे साथ क्या किया जा रहा है! ___ मनुष्यत्व, हमें लगेगा मुफ्त मिला हुआ है, इसमें भी क्या बात है दुर्लभ होने की। मनुष्यत्व मुफ्त मिला हुआ है, क्या बात है इसमें दुर्लभ होने की? क्योंकि हम मनुष्य हैं और हमें किसी दूसरी स्थिति का कोई स्मरण नहीं रह गया। महावीर ने जिनसे यह कहा था, उनको महावीर साधना करवाते थे और उनसे पिछले स्मरण याद करवाते थे। और जब किसी आदमी को याद आ जाता था, कि मैं हाथी था, घोड़ा था, गधा था, वृक्ष रहा कभी, तब उसे पता चलता था कि मनुष्यत्व दुर्लभ है। तब उसे पता चलता था कि घोड़ा रहकर, गधा रहकर, बिच्छू रहकर, वृक्ष रहकर मैंने कितनी कामना की थी कि कभी मनुष्य हो जाऊं, तो मुक्त हो जाऊं इस सब उपद्रव से। और आज मैं मनुष्य हो गया हूं तो कुछ भी नहीं कर रहा हूं। ___ अतीत हमारा विस्मृत हो जाता है। उसके कारण हैं। उसका बड़ा कारण तो यह है कि अगर एक आदमी पशु रहा है पिछले जन्म में, तो पशु की स्मृतियों को समझने में मनुष्य का मस्तिष्क असमर्थ हो जाता है इसलिए विस्मरण हो जाता है। पशु का जगत, अनुभव, भाषा सब भिन्न है, आदमी से उसका कोई ताल-मेल नहीं हो पाता; इसलिए सब भूल जाता है। इसलिए जितने लोगों को भी याद आता है पिछले जन्मों का, वह कोई नहीं कहते, हम जानवर थे, पशु थे। वे यही बताते हैं कि हम स्त्री थे, पुरुष थे। उसका कारण है कि स्त्री पुरुष ही अगर पिछले जन्म में रहे हो तो स्मरण आसान है। अगर पशु-पक्षी रहे तो स्मरण अति कठिन है। क्योंकि भाषा बिलकुल ही बदल जाती है। जगत ही बदल जाते हैं, आयाम बदल जाता है। उससे कोई संबंध नहीं रह जाता। अगर याद भी आ जाये तो ऐसा नहीं लगेगा कि यह मेरी याददाश्त आ रही है, लगेगा कि कोई दुःस्वप्न चल रहा है। ___ महावीर कहते हैं, मनुष्य होना दुर्लभ है। दुर्लभ दिखायी पड़ता है। इसे अगर हम थोड़े वैज्ञानिक ढंग से भी देखें तो समझ में आ जाये। हमारा सूर्य है, यह एक परिवार है, सौर परिवार। पृथ्वी एक छोटा-सा उपग्रह है। सूरज हमारी पृथ्वी से साठ हजार गुना बड़ा है। लेकिन हमारा सूरज बहुत बचकाना है / सूरज है, मिडिऑकर! उससे करोड़-करोड़ गुने बड़े सूरज हैं। अब तक विज्ञान ने 516 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340027
Book TitleMahavir Vani Lecture 27 Manushya Badhte Hue Hosh ki Dhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size79 MB
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