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________________ महावीर-वाणी भाग : 1 रहा, आदमी बन गया। विकास का कोई सवाल न रहा, आदमी आदमी जैसा बना दिया। ___ भारतीय धर्म इस लिहाज से बहुत गहरे और वैज्ञानिक हैं। डार्विन के बहुत पहले भारत जानता रहा है कि चीजें निर्मित नहीं हुई। विकसित, हर चीज विकसित हो रही है। आदमी आदमी की तरह पैदा नहीं हुआ। आदमी पशुओं में, पौधों में से विकसित होकर आया है। लेकिन भारत की धारणा थी कि आत्मा विकसित हो रही है, चेतना विकसित हो रही है। डार्विन ने पहली दफा पश्चिम में ईसाइयत को धक्का दे दिया और कहा कि विकास है। सृजन नहीं हुआ, विकास हुआ है। तो क्रिएशन की बात गलत है, ईवोल्यूशन की बात सही है। सृष्टि कभी बनी नहीं, सृष्टि निरंतर बन रही है। सृष्टि एक क्रम है बनने का। यह कोई पूरा नहीं हो गया है, इतिहास समाप्त नहीं हो गया। कहानी का अंतिम अध्याय लिख नहीं दिया गया, लिखा जाने को है। हम मध्य में हैं। और पीछे बहुत कुछ हुआ है और आगे शायद उससे भी अनंत-गुना, बहुत कुछ होगा। लेकिन डार्विन था वैज्ञानिक, इसलिए उसके लिए चेतना का तो कोई सवाल नहीं था। उसने मनुष्य के शरीर के अध्ययन से तय किया कि यह शरीर भी विकसित हुआ है। यह शरीर भी धीरे-धीरे क्रम में लाखों साल के यहां तक पहुंचा है। तो डार्विन ने आदमी के शरीर का सारा विश्लेषण किया और पशुओं के शरीर का अध्ययन किया और तय किया कि पशु और आदमी के शरीर में क्रमिक संबंध है। बड़ा दुखद लगा लोगों को, कम से कम पश्चिम में ईसाइयत को तो बहुत पीड़ा लगी; क्योंकि ईसाइयत सोचती थी कि ईश्वर ने आदमी को बनाया। और डार्विन ने कहा कि यह आदमी जो है, बंदर का विकास है। कहां ईश्वर था पिता और कहां बंदर सिद्ध हुआ पिता! बहुत दुखद था। लेकिन, तथ्य तथ्य हैं और दुखद भी, हमारी दृष्टि पर निर्भर है। अगर ठीक से हम समझें तो पहली बात ज्यादा दुखद है कि ईश्वर से पैदा हुआ आदमी, और यह हालत है आदमी की! यह ज्यादा दुखद है। क्योंकि ईश्वर से आदमी पैदा हुआ तो यह पतन है। अगर बंदर से आदमी पैदा हुआ तो यह बात दुखद नहीं है सुखद है, क्योंकि आदमी थोड़ा विकसित हुआ। पिता से नीचे गिर जाना अपमानजनक है, पिता से आगे जाना प्रीतिकर है। यह दृष्टिकोण पर निर्भर है। लेकिन डार्विन ने शरीर के बाबत सिद्ध कर दिया है कि शरीर क्रमशः विकसित हो रहा है। और आज भी आदमी के शरीर में पशुओं के सारे लक्षणम / आज भी आप चलते हैं तो आपके बायें पैर के साथ दायां हाथ हिलता है, हिलने की कोई जरूरत नहीं है। लेकिन कभी आप चारों हाथ पैर से चलते थे, उसका लक्षण है। कोई जरूरत नहीं है, आप दोनों हाथ रोक कर चल सकते हैं, दोनों हाथ काट दिये जायें तो भी चल सकते हैं। चलने में दोनों हाथों से कोई लेना देना नहीं है। लेकिन जब बायां पैर चलता है तो दायां हाथ आगे जाता है, जैसा कि कुत्ते का जाता है, बंदर का जाता है, बैल का जाता है। वह चार से चलता है, आप दो से चलते हैं; लेकिन आप चार से कभी चलते रहे हैं, इसकी खबर देता है। वह दो हाथों की बुनियादी आदत अब भी अपने पैर के साथ चलने की है। __ आदमी के सारे अंग पशुओं से मेल खाते हैं, थोड़े बहुत हेर-फेर हुए हैं, लेकिन वह हेर-फेर उन्हीं के ऊपर हुए ; बहुत फर्क नहीं हुआ। जब आप क्रोध में आते हैं तो अभी भी दांत पीसते हैं। कोई जरूरत नहीं है। जब आप क्रोध में आते हैं तो आपके नाखून नोचने, फाड़ने को उत्सुक हो जाते हैं। आपकी मुट्ठियां बंध जाती हैं। वह लक्षण है कि कभी आप नाखन और दांत से हमला करते रहे हैं। अब भी वही है, अब भी कोई फर्क नहीं पड़ा है। अब जिस बात की जरूरत नहीं रह गयी है, लेकिन वह भी काम करती है। ___ जब क्रोध आता है...पश्चिम का एक बहुत विचारशील आदमी था अलेक्जेंडर। उसने कहा है, क्रोध जब आता है तो अपनी टेबल के नीचे दोनों हाथ बांध कर, अगर जोर से मुट्ठी बांध कर पांच बार खोली जाये तो क्रोध विलीन हो जाये। करके आप देखना, वह 514 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340027
Book TitleMahavir Vani Lecture 27 Manushya Badhte Hue Hosh ki Dhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size79 MB
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