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________________ विनय शिष्य का लक्षण है कि उसने क्या जाना। पुरानी पीढ़ी ने जो भी अनुभव किया है, जो भी जाना है, जो भी उघाड़ा है, जो भी ज्ञान अर्जित किया है वह शिक्षक नयी पीढ़ी को सौंपने का काम करता है। ___ गुरु, जो पुरानी पीढ़ी ने जाना है उसको सौंपने का काम नहीं करता, जो स्वयं उसने अनुभव किया है। और यह जो स्वयं अनुभव किया है, इसे सौंपने का सूचन की तरह कोई उपाय नहीं है। इसे तो जीवन की विधि के रूपांतरण से ही दिया जा सकता है। एक शिक्षक के पास से हम ज्ञानी होकर लौटते हैं, ज्यादा जानकर लौटते हैं, लर्नेड होकर लौटते हैं। एक गुरु के पास हम रूपांतरित होकर लौटते हैं। पुराना आदमी मर जाता है, नये का जन्म होता है। गुरु के पास जब हम जाते हैं तब हम वही नहीं लौट सकते, अगर हम गुरु के पास गये हों। गुरु के पास जाना कठिन मामला है। लेकिन, अगर हम गुरु के पास गये हों तो, जो जाता है, वह फिर कभी वापस नहीं लौटता। दूसरा आदमी वापस लौटता है। __ शिक्षक के पास जब हम जाते हैं और जाना बहुत आसान है तो हम वही लौटते हैं जो हम गये थे। थोड़े से और समृद्ध होकर लौटते हैं थोड़ा-सा और ज्यादा जानकर लौटते हैं। हम जो थे, उसी में शिक्षक जोड़ देता है—एडीशन। हम जो थे उसी में थोड़े रंग-रूप लगा देता है, वस्त्र ओढ़ा देता है। हम जो थे उसमें और शिक्षक के द्वारा जो हम निर्मित होते हैं, दोनों के बीच में कोई डिसकंटीन्यूटी, कोई गैप, कोई खाली जगह नहीं होती। गरु के पास जब हम जाते हैं तो जो हम थे, वह और आदमी था और जो हम लौटते हैं वह और आदमी है। गुरु हममें जोड़ता नहीं, हमें मिटाता है और नया निर्मित करता है। गुरु हमको ही संवारता नहीं, हमें मारता है और जिलाता है। गुरु के पास जाने के बाद हमारे अतीत में और हमारे भविष्य में एक गैप, एक अंतराल हो जाता है। लौट के आप देखेंगे तो अपनी कथा ऐसी लगेगी, किसी और की कहानी है। अगर गुरु के पास गये। अगर शिक्षक के पास गये तो अपनी कथा अपनी ही कथा है। बीच में कोई खाली जगह नहीं है जहां चीजें टूट गयी हों, जहां आपका पुराना रूप बिखर गया हो और नये का जन्म हुआ हो। इस मुल्क में एक शब्द खोजा था, वह है द्विज। द्विज का अर्थ है ट्वाइस बॉर्न, दबारा जन्मा हआ वही आदमी है, जिसे गुरु मिल गया। नहीं तो दुबारा जन्मा हुआ आदमी नहीं है। एक जन्म तो मां-बाप देते हैं, वह शरीर का जन्म है। एक जन्म गरु के निकट घटित होता है, वह आत्मा का जन्म है। जब वह जन्म घटित होता है तो आदमी द्विज होता है। उसके पहले आदमी एक जन्मा है, उसके बाद दोहरा जन्म हो जाता है, ट्वाइस बॉर्न हो जाता है। __ गुरु के लिए हमने जैसी श्रद्धा की धारणा बनायी है, ऐसा पश्चिम के लोग जब सुनते हैं तो भरोसा नहीं कर पाते कि ऐसी श्रद्धा की क्या जरूरत है। जब किसी व्यक्ति से सीखना है तो सीखा जा सकता है। ऐसा उसके चरणों में सिर रखकर मिट जाने की क्या जरूरत है! और उनका कहना भी ठीक है, सीखना ही है तो चरणों में सिर रखने की कोई भी जरूरत नहीं है अगर सीखना ही है तो सिर और सिर का संबंध होगा, चरणों और सिर के संबंध की क्या जरूरत है? __ लेकिन, हमारी गुरु की धारणा कुछ और है। यह सिर्फ सीखना नहीं है, यह सिर्फ बौद्धिक आदान-प्रदान नहीं है। यह संवाद बुद्धि का नहीं है, दो सिरों का नहीं है। क्योंकि जो गहन अनुभव हैं, बुद्धि तो उनको अभिव्यक्त भी नहीं कर पाती। जो गहन अनुभव हैं, उनका संबंध तो हृदय से हो पाता है। बुद्धि से नहीं हो पाता। जो क्षुद्र बातें हैं, वे कही जा सकती हैं शब्दों में। जो विराट से संबंधित हैं, गहन से, ऊंचाइयों से, अनंत गहराइयों से, वे कही नहीं जा सकती शब्दों में, लेकिन प्रेम में अभिव्यक्त की जा सकती हैं। तो गुरु और शिष्य के बीच जो संबंध है वह गहन प्रेम का है। शिक्षक और विद्यार्थी के बीच जो संबंध है वह लेन-देन का है, व्यावसायिक है, बौद्धिक है। गुरु और शिष्य के बीच का जो संबंध है, वह हार्दिक है। 487 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.340026
Book TitleMahavir Vani Lecture 26 Vinay Shishya ka Lakshan Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size97 MB
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