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________________ महावीर-वाणी भाग : 1 गयी, यह बड़ा महत्वपूर्ण है। ___ पत्नी ने कहा, कि जरा मुल्ला विस्तार से बताओ। मुल्ला ने कहा, 'विस्तार में मत ले जाओ मुझे, जितना मैंने सुना है उससे तीन गुना तुम्हें बता ही चुका हूं। अब और विस्तार में मुझे मत ले जाओ।' __जब किसी का दोष हमें दिखायी पड़ जाये, तब हम तत्काल उसे बड़ा कर लेते हैं। इसमें भीतरी एक रस है। जब दूसरे का दोष बहुत बड़ा हो जाता है तो अपने दोष बहुत छोटे दिखायी पड़ते हैं। और अपने दोष छोटे दिखायी पड़ते हैं तब बड़ी राहत मिलती है कि हम क्या, हमारा पाप भी क्या? दुनिया में यही एक घट रहा है चारों तरफ? तो हम बड़े पुण्यात्मा मालूम पड़ते हैं। इसलिए दूसरे के दोष बड़ा कर लेने में अपने दोष छोटा कर लेने की तरकीब है। खुद के दोष छोटा करना बुरा नहीं है, लेकिन दूसरे के बड़े करके छोटा करने का खयाल करना पागलपन है। खुद के दोष छोटे करना अलग बात है। लेकिन दो तरकीबें हैं, या तो खुद के दोष छोटे करो, तब छोटे होते हैं, या फिर पड़ोसियों के बड़े कर लो, तब भी छोटे दिखायी पड़ने लगते हैं। यह आसान है पड़ोसियों के बड़े करना। इसमें कुछ भी नहीं करना पड़ता है। महावीर कहते हैं, 'भंडाफोड़ न करता हो, मित्रों पर क्रोधित न होता हो।' शत्रुओं पर हमारा इतना क्रोध नहीं होता, जितना मित्रों पर होता है। इसलिए मित्र की सफलता कोई भी बर्दाश्त नहीं कर पाता। यह बड़ा मजाक है आदमी का मन। मित्र जब तकलीफ में होता है तब हमें सहानुभूति बताने में बड़ा मजा आता है। लेकिन मित्र अगर तकलीफ में न हो सफल होता चला जाये, तब हमें बड़ी पीड़ा होती है। जो आदमी अपने मित्र की सफलता में सुख न पाता हो, जानना कि मित्रता है ही नहीं। लेकिन हमें बड़ा मजा आता है। अगर कोई दुखी है तो हम संवेदना प्रकट करने पहुंच जाते हैं। संवेदना में बड़ा मजा आता है। कोई दुखी है, हम दुखी नहीं है। कभी आपने देखा है? जब आप संवेदना प्रगट करने जाते हैं तो भीतर एक हल्का-सा रस मिलता है। किसी के मकान में आग लग जाये तो आपकी आंख से आंसू गिरने लगते हैं। और किसी का मकान आकाश छुने लगे, तब आपके पैरों में नाच नहीं आता। तो जरूर इसमें कुछ खतरा है। क्योंकि अगर सच में ही किसी के मकान में आग लगने से हृदय रोता है तो उसका मकान गगनचुंबी हो जाये, उस दिन पैर नाचने चाहिए। लेकिन गगनचुंबी मकान देख कर पैर नाचते नहीं। आग लग जाये तो आंखें रोती हैं। निश्चित ही उस रोने के पीछे भी रस है। इसलिए लोग 'ट्रेजेडी', दुखांत नाटक और फिल्मों को देख कर इतना मजा पाते हैं, नहीं तो दुख को देखने में इतना मजा क्या है! दुख को देख कर एक राहत मिलती है कि हम इतने दुखी नहीं है। अपना मकान अभी भी कायम है, कोई आग नहीं लगी है। दूसरे को सुखी देख कर जब हम सुखी होते हैं तब समझना कि मित्रता है। मित्रता सूक्ष्म बात है। महावीर कहते हैं, 'मित्रों पर क्रोधित न होता हो।' यह भी ध्यान रखना कि शत्रओं पर तो क्रोधित होने का कोई अर्थ नहीं होता, आप क्रोधित हैं। मित्रों पर क्रोधित होने का अर्थ होता है, क्योंकि रोज-रोज होना पड़ता है। 'मित्रों पर क्रोधित न होता हो, अप्रिय मित्र की भी पीठ-पीछे भलाई ही गाता हो।' क्यों आखिर? यह तो झूठ मालूम होगा न। आप कहेंगे, बिलकुल सरासर झूठ की शिक्षा महावीर दे रहे हैं। अप्रिय मित्र की भी पीठ पीछे भलाई गाता हो, पीछे भले की ही बात करता हो। नहीं, झूठ के लिए नहीं कह रहे हैं। कोई आदमी इतना बुरा नहीं है कि बिलकुल बुरा हो। कोई आदमी इतना भला नहीं है कि बिलकुल भला हो। इसलिए चुनाव है। जब आप किसी आदमी की 500 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340026
Book TitleMahavir Vani Lecture 26 Vinay Shishya ka Lakshan Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size97 MB
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