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________________ विनय शिष्य का लक्षण है बोलती है, उसे समझ सकते हैं। लेकिन मां की गेस्चर, उसकी मुद्राएं उनके खयाल में आने लगती हैं। और इसलिए बच्चों को धोखा देना बहुत मुश्किल है। जब तक कि बच्चे थोड़े बड़े न होने लगें। छोटे बच्चों को धोखा नहीं दिया जा सकता। फिर धीरे-धीरे भाषा आरोपित हो जाती है और हम शरीर की भाषा भूल जाते हैं। और तब बड़ी मजेदार घटनाएं घटती हैं। अकसर आपको खयाल में नहीं है। कभी किसी फिल्म में आपको खयाल में आया हो तो आया हो। कभी फिल्म में ऐसा हो जाता है कि भाषा और भाव-भंगिमा का संबंध टूट जाता है। एक नाटक में ऐसा हुआ कि एक आदमी को गोली मारी जानी थी, लेकिन गोली का घोड़ा अटक गया। मारने वाले ने बहुत घोड़ा खींचा, लेकिन जैसे उसने घोड़ा खींचा जिसको मरना था, वह धड़ाम से गिरकर मर गया। जब वह मर चुका और चिल्ला चुका कि हाय, मैं मरा! बाद में घोड़ा छूटा और गोली चली। संबंध टूट गया, कृत्य में और भाषा में। ___ आपको पता नहीं, आपके कृत्य और भाषा में संबंध नहीं होता। आपके होंठ मुस्कराते हैं। आपकी आंख कुछ और कहती है। हाथ से हाथ मिलाते हैं, आपके हाथ के भीतर की ऊर्जा पीछे हटती है; हाथ आगे बढ़ा है, ऊर्जा पीछे हट रही है, आप मिलाना नहीं चाहते। हाथ मिलाना नहीं चाहते तो भीतर की ऊर्जा पीछे हट रही है। और आप मिला रहे हैं हाथ। लेकिन अगर दूसरा आदमी भाषा समझता हो शरीर की तो फौरन पहचान जायेगा। कि हाथ मिलाया गया और ऊर्जा नहीं मिली। ऊर्जा भीतर खींच ली। लेकिन हम सभी भाषा भल गये हैं। इसलिए कोई पता नहीं चलता है। एक आदमी को गले मिलाते हैं और पीछे हट रहे हैं। आपको खुद पता चल जायगा। जरा खयाल करना अपने कृत्यों में कि जो आप कर रहे हैं, अगर वह नहीं करना चाहते हैं तो भीतर उससे विपरीत हो रहा है। उसी वक्त हो रहा है। वह तो कोई शरीर की भाषा नहीं जानता। भूल गये हैं हम सब। शायद भूल जाना जरूरी है, नहीं तो दुनिया में दोस्ती बनाना, प्रेम करना बहुत मुश्किल हो जाये। अगर हमारे शरीर की भाषा सीधी-सीधी समझ में आ जाये तो बड़ा मुश्किल हो जाये। इसलिए हम सब पर्त बना लिए हैं। उन शब्दों की पर्त में हम जीते हैं। जब हम किसी आदमी से कहते हैं, मैं तुम्हें प्रेम करता हूं, तो बस वह इतना ही सुनता है। न हमारे ओंठ की तरफ देखता कि जब ये शब्द कहे गये, तो ओठों ने भी कुछ कहा ? असली कंटेंट ओठों में है, शब्दों में नहीं। जब ये शब्द कहे गये तब आंखों ने कुछ कहा ? असली विषय-वस्तु आंखों में है, शब्दों में नहीं। जब ये शब्द कहे गये तब इस पूरे आदमी के रोयें-रोयें में पुलक क्या थी? आनंद क्या था? ये कहने से प्राण इसके आनंदित हए? कि मजबूरी में इसने कहकर कर्तव्य निभाया ! लेकिन शायद खतरनाक है। जैसा हमारी सभ्यता है, समाज है, धोखे का एक लंबा आडंबर। इसलिए हम बच्चों को जल्दी ही ठोंक-पीटकर उनकी जो समझ है उनके ऊपर आरोपण करके, उनकी वास्तविक समझ को भुला देते हैं। गुरु के पास रहकर फिर शब्दों की भाषा भूलनी पड़ती है। फिर शरीर की भाषा सीखनी पड़ती है। क्योंकि जो गहन है, वह शरीर से कहा जा सकता है। वह जो गहन है वह भाव-भंगिमा से कहा जा सकता है। इसलिए एक पूरा का पूरा शास्त्र मुद्राओं का, गेस्चर्स का निर्मित हुआ। अब पश्चिम में उसकी पुनः खोज हो रही है। जिसको वह शरीर की भाषा कहते हैं वह हमने मुद्राओं में काफी गहराई तक खोजी है। __ आपने बुद्ध की मूर्तियां देखी होंगी विभिन्न मुद्राओं में। अगर आप किसी एक खास मुद्रा में बैठ जायें तो आप हैरान होंगे कि आपके भीतर भाव परिवर्तन हो जाता है। आपकी मुद्रा भीतर भाव परिवर्तन ले आती है। आपका भाव परिवर्तन हो तो मुद्रा परिवर्तित हो जाती है। जैसे बुद्ध पदमासन में बैठते हैं, हाथ पर हाथ रखकर, या महावीर बैठते हैं पदमासन में। सिर्फ वैसे ही आप बैठ जायें, तो आप तत्काल पायेंगे कि जो आपके मन की धारा चल रही थी वह उसमें विघ्न पड़ गया। 493 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340026
Book TitleMahavir Vani Lecture 26 Vinay Shishya ka Lakshan Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size97 MB
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