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________________ महावीर-वाणी भाग : 1 हम बिल्कुल निरीक्षक, शुद्ध निरीक्षक होते हैं। इसलिए ध्यान रखना, आपके संबंध में दूसरे जो कहें, उसे बहुत गौर से सोचना। जल्दी उसे इंकार मत कर देना। क्योंकि बहुत मौके ये हैं कि वे सही होंगे। और अपने संबंध में आप जो मानते चले जाते हैं, उसको जल्दी स्वीकार मत कर लेना, बहुत कारण तो यह है कि वह सिर्फ आदतन है। आप ऐसा मानते रहे हैं। अपने संबंध में अपनी जो धारणा हो, उस पर बहुत सोच-विचार करना, बहुत कठोरता से। और दूसरे आपके बाबत जो कहते हों, उस पर बहुत विनम्रता से, जल्दबाजी किये बिना सोच-विचार करना। अकसर दूसरे सही पाये जायेंगे। आप गलत पाये जाओगे। क्योंकि आपको अपने होने का अधिक हिस्सा अचेतन है। आपको पता ही नहीं कि आप क्या कर रहे हैं। यह जो हमारी स्थिति है, इसमें प्रतिपल हमारा जो भीतर है, भीतरी है, वह बाहर आ रहा है। हमारे द्वार पर उसकी झलक दिखायी पड़ती है। ___एक अदमी संग्रह करता है। धन संग्रह करता है। इकट्ठा करता चला जाता है धन। धन मूल्यवान नहीं है बड़ा। धन न हो तो आप पोस्टल स्टैम्प इकट्ठा कर सकते हैं। उसमें कोई अड़चन नहीं पड़ती। यही काम हो जायेगा। सिगरेट की डिब्बियां इकट्ठी कर सकते हैं. वही काम हो जायेगा। कई दफा हमें लगता है कि बडी इनोसेंट हॉबी है किसी आदमी की. बडी निदोष। कि पोस्टल स्टैम्प इकट्ठा करता है। सवाल यह नहीं है कि आप क्या इकट्ठा करते हैं, सवाल यह है कि आप इकट्ठा करते हैं। भीतर कहीं कोई चीज खालीपन अनुभव कर रही है, उसको आप भरते चले जाते हैं। इसका यह मतलब नहीं कि आप कुछ भी इकट्ठा मत करें। इसका कुल मतलब इतना है कि लोभ के कारण इकट्ठा मत करें। ___ जरूरत और लोभ में बड़ा फर्क है, आवश्यकता और लोभ में बड़ा फर्क है। बड़े मजे की बात है, लोभी अकसर अपनी आवश्यकताएं पूरी नहीं कर पाता। क्योंकि लोभ के कारण आवश्यकता पूरी करने में भी जो खर्च करना है, वह उसकी हिम्मत के बाहर होता है। अकसर ऐसा होता है कि एक धनी आदमी है, लेकिन अपनी बीमारी का इलाज नहीं करता; क्योंकि उसमें खर्च करना पड़े। वह खर्च करना उसे कठिन मालूम पड़ता है। तो यह तो हद्द हो गयी। आवश्यकता के लिए धन उपयोगी हो सकता है, लेकिन इस आदमी के लिए आवश्यकता से भी कोई बड़ी चीज है, और वह है भीतर का गड्डा, लोभ। वहां चीजें भरी होनी चाहिए, वहां जरा-सी भी कोई चीज हट जाये तो उसे खालीपन लगता है। खालीपन में बेचैनी मालूम पड़ती है। धनी अकसर कंजूस हो जाते हैं, गरीब कंजूस नहीं होते। इसका मतलब यह नहीं कि अगर यह गरीब कल अमीर हो जाये तो कंजूस नहीं होगा। गरीब कंजूस नहीं होते इसका कुल कारण इतना है कि भीतर वैसे ही खाली हैं, थोड़ा बचाने से भी कोई फर्क नहीं पड़ता। खाली तो रहेंगे ही, इसलिए गरीब आदमी सहज खर्च कर लेता है लेकिन अमीर आदमी को लगता है कि सब तो भर गया, जरा सा कोना खाली है। इसको भर लें तो तृप्ति हो जाये। वह कोना कभी नहीं भरता, वह कोना बड़ा होता जाता है। वह कभी नहीं भरता, एक कोना सदा खाली रह जाता है। क्योंकि हम अपनी आत्मा को वस्तुओं से भर नहीं सकते, सिर्फ धोखा दे सकते हैं भरने का। कोई वस्तु भीतर नहीं जाती, वस्तु तो बाहर रह जाती है। इसलिए भीतर के खालीपन को भर नहीं सकती। __ लेकिन, यह भीतर का खालीपन, महावीर कहते हैं, लोभ है। जब एक आदमी बाहर संग्रह करता है तो वह इतनी खबर देता है कि भीतर खाली है। वह खालीपन गड्ढे की तरह पुकारता है, भरो। वह लोभ है। इस लोभ को हम हजार ढंग दे सकते हैं, इस लोभ को कोई आदमी धन से भर सकता है, कोई अदमी ज्ञान से भर सकता है, कोई आदमी त्याग से भर सकता है। बड़ा मुश्किल होगा मामला। क्योंकि हम त्यागी को कभी लोभी नहीं कहते। 456 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340024
Book TitleMahavir Vani Lecture 24 Sangraha Andar ke Lobh ki Zalak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size73 MB
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