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________________ ब्रह्मचर्य : कामवासना से मुक्ति होगा कि वह अपने ध्यान को इंद्रियों से अलग कर ले। हमें कठिन होगा, बहुत कठिन होगा, क्योंकि इंद्रियां ही हमारा जीवन है। इंद्रियों के अतिरिक्त हमारा कोई अनुभव नहीं है। जो हमने जाना है, जो हमने जीया है वह इंद्रियों से ही जाना और जीया है। और बड़ा अदभुत है इंद्रियों का लोभ। क्योंकि इंद्रियों से जो हम जानते हैं, वह स्वप्नवत है। __फूल को आपने देखा है? लेकिन फूल तो बहुत दूर है, आप देखते क्या हैं? वैज्ञानिक से पूछे, या महावीर से पूछे, फूल में आप देखते क्या हैं? फूल को तो देख नहीं सकता कोई आदमी, क्योंकि फूल कभी आंख के भीतर जाता नहीं। आप देख से सरज की किरणें आती हैं लौटकर। वे किरणें आपकी आंख पर पडती हैं। वे किरणें भी भीतर नहीं जा सकतीं, सिर्फ आंख की सतह को स्पर्श करती हैं। आंख की सतह के भीतर जो रासायनिक द्रव्य हैं वे उन किरणों से संचलित हो जाते हैं। वे रासायनिक द्रव्य आपकी आंखों के पीछे छिपे हुए तंतुओं का जो जाल है, उसको कंपित करते हैं। वे कंपन आप तक पहुंचते हैं। उन्हीं कंपनों को आपने देखा है। इसलिए तो एक बड़ी अदभुत घटना घटती है। एक नग्न स्त्री को आप देखें तो जैसे तंतु कंपते हैं, वैसे एक नग्न स्त्री का चित्र देखकर भी कंपते हैं। इसलिए तो पोरनोग्राफी, अश्लील साहित्य का इतना मूल्य है। क्योंकि तंतु तो उसी तरह हिलने लगते हैं, मजा तो उसी तरह आने लगता है। बल्कि सच तो यह है कि नग्न स्त्री को देखकर उतना मजा कभी नहीं आता, जितना नग्न स्त्री के चित्र को देखकर आता है। उसके कई कारण हैं। स्त्री की वास्तविक मौजूदगी आपके ध्यान में बाधा बनती है। चित्र में कोई मौजूद नहीं होता, आप अकेले होते हैं, ध्यानस्थ हो जाते हैं, और भीतर आपको रस आने लगता है। उतना ही रस आने लगता है, शायद ज्यादा भी आने लगता है। क्योंकि वास्तविक स्त्री के साथ कल्पना का उपाय नहीं रह जाता। वास्तविक स्त्री सामने मौजूद है, अब कल्पना करने का कोई उपाय नहीं है। लेकिन चित्र आपको कल्पना देता है और चित्र कहता है, जब चित्र इतना संदर है तो वास्तविक स्त्री कितनी सुंदर न होगी और आपके कल्पना के पंख फैल जाते हैं। इसलिए जो लोग चित्र में रस लेने लगते हैं, उनको वास्तविक स्त्री फीकी मालूम पड़ने लगती है। इसलिए आपसे स्त्रियां बहुत होशियार हैं। उन्होंने चित्रों में कभी रस नहीं लिया। वास्तविक पुरुष के प्रेम में भी वे आंख बंद कर लेती हैं, क्योंकि कल्पना वास्तविक से सदा ज्यादा सुंदर है। स्त्रियां होशियार हैं। आप उन्हें आलिंगन में लें, वे आंख बंद कर लेंगी। आंख बंद करने का मतलब यह कि अब आप वास्तविक पुरुष कम, काल्पनिक, देवता ज्यादा हो गये। अब उनके भीतर एक कल्पना का देव खड़ा है। इसलिए पुरुष जल्दी स्त्रियों से ऊब जाते हैं, स्त्रियां उतनी जल्दी पुरुषों से नहीं ऊबतीं। यह बड़े मजे की बात है। फ्रायड ने गहन विश्लेषणों से यह कहा है कि स्त्री और पुरुष हमेशा परिपूरक हैं, हर चीज में। फ्रायड ने दो शब्दों का उपयोग किया है एक को वह कहता है, वोयूर, जो देखने में उत्सुक है। जो देखने में उत्सुक हैं पुरुष, तो वह कहता है, वोयूर। वह देखने में उत्सुक है। स्त्री को वह कहता है, एक्जिबीशनिस्ट, जो दिखाने में उत्सुक है। दोनों परिपूरक हैं। क्योंकि कोई तो दिखाने वाला चाहिए तब देखने वाले को कोई रस हो, और कोई देखने वाला चाहिए, तब दिखाने वाले को कोई रस हो। स्त्री-पुरुष सब दिशाओं में परिपूरक हैं। इसलिए पुरुष सदा चाहता है कि प्रेम अंधेरे में न हो, प्रकाश में हो। स्त्री सदा चाहती है, प्रेम अंधेरे में हो। प्रकाश में न हो। पुरुष देखना चाहता है, स्त्री देखना नहीं चाहती। इसलिए पुरुषों ने नग्न स्त्रियों के बहुत चित्र निर्मित किये, लेकिन स्त्रियों ने नग्न पुरुषों में कोई रस...कोई रस ही नहीं लिया कभी। स्त्री को थोड़ी परेशानी ही होती है नग्न पुरुष को देखकर, कोई सुख नहीं मिलता। 429 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340023
Book TitleMahavir Vani Lecture 23 Bramhacharya Kamvasna se Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size75 MB
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