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________________ महावीर-वाणी भाग : 1 मौत। पूछना चाहता हूं कि क्या है मेरा कसूर?' ___ जनक ने कहा, 'कोई कसूर नहीं, न कोई मौत होने को है। इतना ही कहना था कि अगर मौत का स्मरण बना रहे तो इंद्रियां भोगों में रहकर भी दूर हट जाती हैं।' तब जीभ पर कंपन होते हैं, लेकिन स्वाद नहीं आता। तब कान पर कंपन होते हैं, लेकिन रस पैदा नहीं होता। जीभ पर स्वाद आता है, कंपन पैदा होते हैं। आत्मा ध्यान भेजती है जीभ तक, दोनों का जोड़ होता है, तब रस पैदा होता है। आंख देखती है रूप को, कंपन होते हैं। भीतर से आत्मा ध्यान को भेजती है, कंपन और ध्यान का मिलन होता है, तब सौंदर्य का बोध होता है। तब रस पैदा होता है। रस दो चीजों का जोड़ है-बाहर से आये कंपन और भीतर से आये ध्यान। ध्यान + कंपन = रस। अगर ध्यान हट जाये कंपन से तो रस विलीन हो जाता है। इसी को महावीर ने त्याग कहा है। यह त्याग अत्यंत भीतरी घटना है। इस त्याग के दो रूप हैं। जो व्यर्थ के कंपन हों उन्हें छोड़ ही देना उचित है। जो अनिवार्य कंपन हों उनसे ध्यान को अलग कर लेना चाहिए। जो अनिवार्य कंपन हों उनसे ध्यान तोड़ लेना, जो गैर अनिवार्य कंपन हों उन कंपनों का त्याग कर देना। तो धीरे-धीरे, धीरे-धीरे इंद्रियां अलग और आत्मा अलग हो जाती है। जब सब जगह से ध्यान का रस विलीन हो जाता है तो हमें पता चलता है कि शरीर अलग और मैं अलग हूं। हमें पता नहीं चलता, शरीर अलग और मैं अलग हूं, इसका एक ही कारण है कि हमारा ध्यान निरंतर ही बाहर से आये हुए कंपनों से जुड़ जाता है। उस जोड़ के कारण ही हम शरीर से जुड़े हैं। वह जोड़ टूट जाये, हम शरीर से टूट जाते हैं। आत्म अनुभव रस परित्याग के बिना संभव नहीं है। 'देव लोक सहित समस्त संसार के शारीरिक तथा मानसिक सभी प्रकार के दुख का मूल काम भोगों की वासना है। जो साधक इस संबंध में वीतराग हो जाता है वह शारीरिक तथा मानसिक सभी प्रकार के दुखों से छूट जाता है।' ___ हमारा जानना कुछ और है, हमारा जानना यह है कि समस्त सुखों का मूल इंद्रियों का आनंद है। आपने कोई ऐसा सुख जाना है जो इंद्रियों के अतिरिक्त जाना हो? नहीं जाना होगा। सभी सुखों के मूल में इंद्रियां मालूम पड़ती हैं। कभी भोजन में कुछ आनंद आ जाता है, कभी आंख देख लेती है किसी दृश्य को---जरूरी नहीं, वह दृश्य स्त्री-पुरुष का हो, वह काश्मीर का हो, डल झील का हो—इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। आंख देख लेती है किसी झील को, आंख देख लेती है किसी चांद को, रस आ जाता है, सुख आ जाता है। आपने कभी कोई ऐसा सुख जाना है, जो इंद्रियों के बिना आपको आया हो? अगर वैसा सुख आपको अनुभव हो जाये, तो उसी को महावीर ने आनंद कहा है। लेकिन हमारा कोई ऐसा अनुभव नहीं है। पर महावीर कहते हैं. समस्त दखों का मल वासना है, और हम सोचते हैं समस्त सुखों का आधार। तो थोड़ा सोचना पड़े। आपने कोई ऐसा दुख जाना है जो इंद्रियों के बिना आपको मिला हो? न आपने कोई ऐसा सुख जाना है, जो इंद्रियों के बिना मिला हो; न ऐसा कोई दुख जाना है, जो इंद्रियों के बिना मिला हो। महावीर कहते हैं कि इंद्रियों के बिना भी एक सुख मिल सकता है जिसका नाम आनंद है। इंद्रियों के बिना कोई दुख नहीं मिल सकता, इसलिए उसका कोई नाम नहीं है। आनंद के विपरीत कोई नाम नहीं है। इसलिए महावीर कहते हैं कि इंद्रियों का सुख भ्रांति है, इंद्रियों का दुख ही वास्तविकता है। फिर जिसे हम सुख कहते हैं, उसके कारण ही हमें दुख मिलता है। आज स्वाद में सुख मिलता है, तो क्या होगा इसका परिणाम? इसके दो परिणाम होंगे। अगर यह 432 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340023
Book TitleMahavir Vani Lecture 23 Bramhacharya Kamvasna se Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size75 MB
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