SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महावीर-वाणी भाग : 1 उतना ज्यादा शृंगार करेगी। कुरूप समाज सब तरह से आभूषणों से लद जायेगा। सुंदर समाज आभूषणों को छोड़ देगा। हम कमी पूर्ति कर रहे हैं, लेकिन दृष्टि दूसरे पर है-दृष्टि सदा दूसरे पर है। पुरुष क्यों इतना शंगार नहीं करता? पुरुष कुछ और करता है क्योंकि स्त्रियां सौंदर्य में कम उत्सुक हैं, शक्ति में ज्यादा उत्सुक हैं। पुरुष शक्ति में कम उत्सुक हैं सौंदर्य में ज्यादा उत्सुक हैं, इसलिए स्त्रियां पूरी जिंदगी शृंगार में बिताती हैं। पुरुष शृंगार की फिक्र नहीं करता। उसका कारण है। उसका कारण इतना है कि पुरुष के लिए शक्ति अगर हो उसके पास, तो वही स्त्री की उत्सुकता का कारण है। कितना धन उसके पास है, कितना बलिष्ठ शरीर उसके पास है, यह स्त्री के लिए मूल्यवान है। स्त्री के मन में सौंदर्य का अर्थ शक्ति है। परुष के मन में सौंदर्य का अर्थ कमनीयता है, कोमलता है. शक्ति नहीं। पर परुष शक्ति को बढ़ाने में लगा रहता है, जिस चीज से भी शक्ति मिलती है, धन से मिलती है, यश से मिलती है, तो धन की दौड़ करता है, यश की दौड़ करता है। मगर वह भी दूसरे के लिए है। ___महावीर कहते हैं, यह दूसरे के लिए होना, यही संसार है। अपने लिए हो जाना मुक्ति है। यह जो दूसरे के लिए होने की चेष्टा है इसमें शृंगार भी होगा, स्त्रियों का संसर्ग भी होगा-स्त्री से या पुरुष से मतलब नहीं है—विपरीत यौन से। विपरीत यौन के पास रहने की आकांक्षा होगी। क्योंकि जब भी विपरीत यौन पास होगा, तभी आपको लगेगा, आप हैं। और जब वह पास नहीं होगा तभी आप उदास हो जायेंगे, लगेगा आप नहीं हैं। ___ तो देखें, अगर बीस पुरुष बैठे हों, उनमें चर्चा चल रही हो और फिर एक सुंदर स्त्री उस कमरे में आ जाये, तो कमरे की रौनक बदल जाती है। चेहरे बदल जाते हैं, चर्चा में हल्कापन आ जाता है, भारीपन मिट जाता है, विवाद की जगह ज्यादा संवाद मालूम पड़ने लगता है। क्यों? बीस ही पुरुष, स्त्री के आते अनुभव पहली दफा करते हैं कि वे पुरुष हैं। वह स्त्री की जो मौजदगी है वह उनके पुरुष के प्रति सचेतना बन जाती है। उनकी रीढ़ें सीधी हो जायेंगी, वे ठीक संभल कर बैठ जायेंगे, टाई ठीक कर लेंगे, कपड़े वगैरह सब सुधार लेंगे। विपरीत मौजूद हो गया, आकर्षण शुरू हो गया। विपरीत का आकर्षण है। इसलिए पुरुषों के अगर क्लब हों, तो उदास होंगे, अकेले पुरुषों के क्लब बिलकुल उदास होंगे। वहां कोई रौनक न होगी। अकेली स्त्रियों की भी अगर बैठक हो तो थोड़ी बहुत देर में, जो स्त्रियां मौजूद नहीं हैं, जब उनकी निंदा चुक जायेगी, तो सब फालतू मालूम पड़ने लगेगा। ___ दो स्त्रियों में मित्रता भी मुश्किल है। मित्रता का एक ही कारण हो सकता है कि अगर कोई तीसरी स्त्री दोनों की शत्रु हो तो कोई उपाय नहीं है। पुरुषों में मित्रता हो जाती है, क्योंकि उनके बहुत शत्रु हैं चारों तरफ। मित्रता बनाते ही हम इसलिए हैं कि शत्रु के खिलाफ लड़ना है। स्त्रियों में कोई मैत्री नहीं बन सकती है। और उनकी अगर बैठक हो तो उसमें चर्चा योग्य भी कुछ नहीं हो सकता, सब छिछला होगा। लेकिन एक पुरुष को प्रवेश करा दें और सारी स्थिति बदल जायेगी। यह अचेतन सब होता है। यह अचेतन सब होता है, इसके लिए चेतन रूप से आपको कुछ करना नहीं होता है। आपकी ऊर्जा ही करती है। दूसरे की हम तलाश करते हैं, ताकि हम अपने को अनुभव कर सकें। विपरीत को हम खोजते हैं, ताकि हमें अपना पता चल सके। इसलिए महावीर कहते हैं, विपरीत का संसर्ग-जिसे ब्रह्मचर्य साधना है, जिसे स्वरूप की तलाश करनी है उसे छोड़ देना चाहिए। खयाल ही विपरीत का छोड़ देना चाहिए। क्योंकि आत्मा विपरीत से नहीं जानी जा सकती, केवल शरीर विपरीत से जाना जा सकता है। शरीर के तल पर आप स्त्री हैं, पुरुष हैं। आत्मा के तल पर आप न स्त्री हैं, न पुरुष हैं। अगर आत्मा को खोजना है, तो विपरीत का 416 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340022
Book TitleMahavir Vani Lecture 22 Kamvasna Hai Dusre ki Khoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size71 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy