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________________ काम वासना है दूसरे की खोज इसके कारण हम ठीक से ध्यान में ले लें। देह का शृंगार हम करते ही इसलिए हैं कि हमारी उत्सुकता किसी और में है। देह का शृंगार कोई अपने लिए नहीं करता, सदा दूसरे के लिए करता है। जिसके प्रति हम आश्वस्त हो जाते हैं, उसके लिए फिर हम देह का शृंगार नहीं करते। इसलिए दूसरों की पत्नियां ज्यादा सुंदर मालूम पड़ती हैं, अपनी पत्नियां उतनी सुंदर नहीं मालूम पड़तीं। क्योंकि पत्नियां आश्वस्त हो जाती हैं पति के प्रति। अब रोज-रोज शृंगार करने की कोई जरूरत नहीं। जिसको जीत ही लिया, अब उसको जीतने का रोज-रोज क्या कारण है? तो पति उनकी असली शक्ल देखता है। उससे वह ऊब जाता है। पडोसी उनकी नकली शक्ल देखते हैं, जो बाहर तैयार होकर आती हैं। इसलिए पडोसी उनमें रस लेते मालूम पड़ते हैं। ___ पश्चिम में मनोवैज्ञानिक समझाते हैं स्त्री को, अगर पति को सदा ही अपने में उत्सुक रखना हो तो सदा ही वह रोज-रोज जीते, इसके उपाय करते रहना चाहिए। जीत निश्चित न हो जाये क्योंकि जीत जब निश्चित हो जाती है, तो पुरुष का रस खो जाता है। पुरुष जीत में उत्सुक है। दूसरे की पत्नी कम सुंदर भी हो, तो भी ज्यादा आकर्षक मालूम हो सकती है। क्योंकि आकर्षण जीत में है। जितना दुरुह हो जाये, उतना मुश्किल मालूम पड़ने लगता है। जितना मुश्किल मालूम पड़ने लगे, उतनी चुनौती मिलती है। __ शृंगार हम करते ही दूसरों के लिए हैं, अपने लिए नहीं। अगर आपको अकेले जंगल में छोड़ दिया जाये, तो आप सोचें कि आप क्या करेंगे? आप शृंगार नहीं करेंगे और भला कुछ भी करें। सजाएंगे नहीं, क्योंकि सजाने का मतलब है, किसके लिए? ___ इसलिए हमने इंतजाम कर रखा था, पति मर जाये तो फिर हम विधवा स्त्री को सजने नहीं देते, क्योंकि हम उससे पूछते हैं कि किसके लिए? वह अगर अपने लिए ही सज रही थी, तो विधवा को भी सजने में क्या हर्ज है? वह पति के लिए सज रही थी। अब चूंकि पति नहीं है, इसलिए किसके लिए? और अगर विधवा को हम सजते देखें, तो शक पैदा होता है कि उसने कहीं न कहीं पति की तलाश शुरू कर दी है; इसलिए हम उसको सजने नहीं देते। उसको हम सब तरफ से कुरूप करने की कोशिश करते हैं। ___ बड़े मजे की बात है कि क्या सौंदर्य दूसरे के लिए है? असल में सौंदर्य एक फंदा है, एक जाल है जिसमें हम किसी को फंसाना चाहते ___ महावीर कहते हैं, जब दूसरे में उत्सुकता ही नहीं तो शृंगार का क्या प्रयोजन? इसलिए महावीर ने कहा, तुम जैसे हो, अपने लिए अगर तुम पृथ्वी पर अकेले होते तो वैसे ही रहो। इसलिए महावीर नग्न हो गये। इसलिए महावीर ने शरीर की सजावट छोड़ दी। इसका यह मतलब नहीं है कि महावीर शरीर के शत्रु हो गये। न। इसका यह भी मतलब नहीं कि महावीर ने अपने शरीर को कुरूप कर लिया, क्योंकि वह तो दूसरी अतिशयोक्ति होती। ___ सौंदर्य भी अगर हम निर्माण करते हैं, तो दूसरे के लिए, कुरूपता भी अगर निर्माण करते हैं, तो दूसरे के लिए। जिस दिन पत्नी नाराज हो उस दिन वह पति के सामने सब तरह से कुरूप रहेगी, सजेगी नहीं। यह भी दूसरे के लिए। अगर सजने से सुख देने का उपाय था, तो कुरूप रहकर दुख देने का उपाय है। ___ महावीर ने दूसरे का खयाल छोड़ दिया। अपने लिए जैसा जी सकते थे वैसा जीने लगे। इससे वे कुरूप नहीं हो गये, बल्कि सही अर्थों में पहली दफा एक सौंदर्य निखरा, जो दूसरे के लिए नहीं था, जो अपने ही भीतर से आ रहा था, जो अपने ही लिए था, जो स्वभाव था। ___ शृंगार झूठ है, और इसलिए शृंगार में छिपा हुआ सौंदर्य एक धोखा है। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि शृंगार की चेष्टा वह जो वास्तविक सौंदर्य होना चाहिए था, उसकी कमी की पूर्ति है। इसलिए जितनी सुंदर स्त्री होगी, उतना कम शृंगार करेगी। जितनी कुरूप स्त्री होगी, 415 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340022
Book TitleMahavir Vani Lecture 22 Kamvasna Hai Dusre ki Khoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size71 MB
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