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________________ महावीर-वाणी भाग : 1 और शक्ति बढ़ती चली जाती है और बांध तोड़ना चाहती है, तब साधक आसानी से भीतर जानेवाला मार्ग खोल सकता है। शक्ति खद ही सहयोगी हो जाती है, खोलने के लिए। ___ इसलिए महावीर कहते हैं, 'निग्रंथ मुनि अब्रह्मचर्य अर्थात मैथुन संसर्ग का त्याग करते हैं। क्योंकि यह अधर्म का मूल ही नहीं, अपितु बड़े से बड़े दोषों का भी स्थान है।' अगर ऊर्जा बाहर की तरफ बहती है, तो समस्त अधर्म का मूल है। क्योंकि धर्म की परिभाषा हमने की है, स्वभाव। धर्म का अर्थ हआ, अपने को पा लेना। अधर्म का फिर अर्थ हआ, अपने से बाहर किसी को पाने की कोशिश, दी अदर, दूसरे को पाने की कोशिश। धर्म का अर्थ है, स्वयं को पाना; तो अधर्म का अर्थ हुआ, पर को पाना। इसलिए कामवासना से ज्यादा अधर्म कुछ भी नहीं हो सकता। क्योंकि कामवासना का अर्थ ही है, दूसरे की खोज। धर्म का अर्थ है, अपनी खोज। तो महावीर कहते हैं, 'अधर्म का मूल है, और बड़े से बड़े दोषों का स्थान भी।' इसे थोड़ा समझ लेना जरूरी है। हमारे जीवन में जितने दोष पैदा होते हैं. उनमें निन्यानबे प्रतिशत कामवासना से संबंधित होते हैं। आदमी अगर धन इकट्ठा करने के लिए पागल हो जाता है, तो उसे चाहे पता हो न पता हो, आदमी धन इसलिए पाना चाहता है कि अंततः धन से कामवासना पायी जा सकती है। आदमी पद पाना चाहता है, यश पाना चाहता है अंततः इसीलिए कि उससे कामवासना ज्यादा सुगमता से पूरी की जा सकती है। आदमी जीवन में और जो-जो करने निकल पड़ता है उस सब के पीछे गहन में कामवासना छिपी होती है। यह दूसरी बात है कि वह पूरा न कर पाये। वह साधन को ही पूरा करने में लगा रहे और साध्य तक न पहुंच पाये। यह दूसरी बात है। लेकिन गहन में साध्य एक ही होता है। ___ क्यों ऐसा है ? क्योंकि आदमी कामवासना का विस्तार है और आदमी के भीतर मैंने कहा, दो भूखें हैं, आप जब भोजन करते हैं तो यह आपके जीवन की सुरक्षा है, और जब आप यौन में उतरते हैं तो यह जाति के जीवन की सुरक्षा है। वह भी एक भोजन है। आप अगर भोजन करना बंद कर दें, तो आप मरेंगे। अगर आप कामवासना बंद कर दें, तो आप जाति को मारने का कारण बनते हैं। इसलिए जर्मनी के बड़े प्रसिद्ध विचारक इमेनुअल कांट ने तो ब्रह्मचर्य को अनीति कहा है। और उसके कारण हैं कहने के, उसका कहना यह है कि अगर सारे लोग ब्रह्मचर्य का पालन करें तो जीवन तिरोहित हो जायेगा। और कांट कहता है, नीति का यह नियम है, ऐसा नियम, जिसका सब लोग पालन कर सकें। जिसका सब लोग पालन न कर सकें और अगर सब लोग पालन करें, तो जीवन जो कि नीति का आधार है, संभावना है, वही तिरोहित हो जाये, तो वह अनीति है। ___फिर तो ब्रह्मचर्य भी नहीं पाला जा सकता। अगर जीवन तिरोहित हो जाये, तो जो नियम की पूर्णता स्वयं ही नियम को नष्ट कर देती हो, वह नियम नैतिक नहीं है। एक अर्थ में ठीक है। आप किसी को मारते हैं, यह हिंसा है। आप अगर कामवासना को रोक लेते हैं तो भी आप उनकी हिंसा कर रहे हैं, जो इस कामवासना से पैदा हो सकते थे। __ कांट के हिसाब से ब्रह्मचर्य हिंसा है। जो हो सकते थे, जो जन्म ले सकते थे उनको आप रोक रहे हैं। तो कांट कहता है, कोई आदमी अगर भूखा रहे तो यह उतना बड़ा पाप नहीं है, क्योंकि वह अपने लिए कुछ...अपने ऊपर कुछ कर रहा है। ठीक है, स्वतंत्र है। लेकिन कोई आदमी ब्रह्मचारी रहे तो खतरनाक है, क्योंकि इसका...इसका अर्थ हआ कि वह जाति को नष्ट करने का उपाय कर रहा है। लेकिन कांट की सोचने की एक सीमा है। इस जीवन के अलावा कांट के लिए और कोई जीवन नहीं है। इस जीवन के पार और कोई रहस्य का लोक नहीं है। 412 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340022
Book TitleMahavir Vani Lecture 22 Kamvasna Hai Dusre ki Khoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size71 MB
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