SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 6
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महावीर-वाणी भाग : 1 लेकिन कोई विचार पर किसी की बपौती भी नहीं होती कि कोई विचार जैन का है कि बौद्ध का है। विचार तो जैसे ही मुक्त आकाश में फैल जाता है, सब का हो जाता है। लेकिन फिर भी स्रोत का अनुग्रह सदा स्वीकार होना चाहिए, और इतनी उदारता होनी चाहिए कि हम स्वीकार करें कि कौन-सी बात किसने दान दी है। युवक संन्यासी हो, और जीवन जब प्रखर शिखर पर है ऊर्जा के, तब रूपांतरण शुरू हो जाये। इस दिशा में जो दान है, वह जैन और बौद्धों का है। इसके खतरे भी हैं। हर सुविधा के साथ खतरा जुड़ा होता है। हर उपयोगी बात के साथ गड्डा भी जुड़ा होता है खतरे का। निश्चित ही, जब युवा व्यक्ति संन्यास लेंगे तो संन्यास में खतरे बढ़ जायेंगे। जब बूढ़ा आदमी संन्यास लेगा, संन्यास में खतरे नहीं होंगे। बूढ़े को संन्यासी होना मुश्किल है, लेकिन अगर बूढ़ा संन्यासी होगा तो खतरे बिलकुल नहीं हैं। इसलिए महावीर को अतिशय नियम निर्मित करने पड़े। क्योंकि जब युवा संन्यासी होंगे, तो खतरे निश्चित-निश्चित बढ़ जानेवाले हैं। युवक और युवतियां जब संन्यासी होंगे और उनकी वासना प्रबल वेग में होगी, तब खतरे बहुत बढ़ जानेवाले हैं। इसलिए एक बहुत पूरी की पूरी आयोजना करनी पड़ी नियमों की कि ये खतरे काटे जा सकें। __इसलिए जैन विचार कई दफा बहुत सप्रेसिव, बहुत दमनकारी मालूम होता है। वह है नहीं। दमनकारी इसीलिए मालूम होता है कि एक-एक चीज पर अंकश लगाना पड़ा है। क्योंकि इतनी बढ़ती हई उद्दाम वासना है, अगर इस पर चारों तरफ से व्यवस्था न हई तो संभावना इसकी कम है कि योग की तरफ बहे। संभावना यह है कि यह भोग की तरफ बह जाये। इसलिए हिंदू विचार आज के युग को ज्यादा अपील करेगा; क्योंकि उसमें इतना नियम का जोर नहीं है; क्योंकि वृद्ध अगर संन्यासी होगा तो उसका वृद्ध होना ही, उसकी समझ ही नियम बन जायेगी। उस पर बहुत अतिशय, चारों तरफ बाड़ लगाने की जरूरत नहीं है। उसे छोड़ा जा सकता है, उसकी समझ पर। उससे कहने की जरूरत नहीं है कि ऐसा मत करना, ऐसा मत करना, ऐसा मत करना -हजार नियम बनाने की जरूरत नहीं है। बुद्ध से आनंद पूछता है कि स्त्रियों की तरफ देखना कि नहीं? तो बुद्ध कहते हैं, कभी नहीं देखना। आनंद पूछता है, और अगर मजबूरी में अनायास, आकस्मिक स्त्री दिखायी ही पड़ जाये, तो? तो बुद्ध कहते हैं, बोलना मत। आनंद कहता है, ऐसी हालत हो, स्त्री बीमार हो या कोई ऐसी स्थिति बन जाये कि बोलना ही पड़े ? तो बुद्ध कहते हैं, होश रखना कि किससे बोल रहे हो। ऐसा विचार हिंदू चिंतन में कहीं भी खोजे न मिलेगा। कहीं भी खोजे न मिलेगा। लेकिन उसका कारण है। यह युवकों को दिया गया संदेश है। हिंदू चिंतन ने तो क्रमबद्ध व्यवस्था की है-ब्रह्मचर्य। यह ब्रह्मचर्य बुद्ध और महावीर के ब्रह्मचर्य से भिन्न है। कभी-कभी शब्द भी बड़ी दिक्कत देते हैं। ___ ब्रह्मचर्य पहला है हिंदू विचार में। यह ब्रह्मचर्य गृहस्थ के विपरीत नहीं है। बुद्ध और महावीर का ब्रह्मचर्य गृहस्थ के विपरीत है। हिंद ब्रह्मचर्य गृहस्थ की तैयारी है, उसके विपरीत नहीं है। युवक को ब्रह्मचारी होना चाहिए, इसलिए नहीं कि वह योग में चला जाये, बल्कि इसलिए कि शक्ति संगृहीत हो, इकट्ठी हो, तो भोग की पूरी गहराई में उतर जाये; यह बड़ा अलग मामला है। इसलिए ब्रह्मचर्य पहले। पच्चीस वर्ष तक युवक ब्रह्मचारी हो, इसलिए नहीं कि योग में चला जाये, अभी योग बहुत दूर है, बल्कि इसलिए कि ठीक से भोग में चला जाये। क्योंकि हिंदू मानता ही यह है कि अगर ठीक से कोई भोग में चला जाय, तो भोग से छुटकारा हो जाता है। जिस चीज को भी हम ठीक से जान लेते हैं, वह व्यर्थ हो जाती है। अगर ठीक से न जान पायें तो वह पीछा करती है। अगर 388 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340021
Book TitleMahavir Vani Lecture 21 Satya Sada Sarvabhaum Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size78 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy