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________________ सूत्र के पहले एक दो प्रश्न पूछे गये हैं। मैंने परसों कहा कि हिंदू विचार संन्यास को जीवन की अंतिम अवस्था की बात मानता है। किन्हीं मित्र को इसे सुनकर अड़चन हुई होगी। मैं निकलता था बाहर, तब उन्होंने पूछा कि हिंदू शास्त्रों में तो जगह-जगह ऐसे वचन भरे पड़े हैं कि जब शक्ति हो, तभी साधना कर लेनी चाहिए! __ चलते हुए रास्ते में उनसे ज्यादा नहीं कहा जा सकता था। मैंने उनसे इतना ही कहा कि ऐसे वचन अगर आपको पता हों तो उनका आचरण शुरू देना चाहिए। __ लेकिन हमारा मन बड़ा अनुदार है, सभी का। हम सभी सोचते हैं कि मेरे धर्म में सब कुछ है। यह अनुदार वृत्ति है। क्योंकि इस पृथ्वी पर कोई भी धर्म पूरा नहीं है, हो भी नहीं सकता। जैसे ही सत्य अभिव्यक्त होता है, अधूरा हो जाता है। और जब यह अधूरा सत्य संगठित होता है तो और भी अधूरा हो जाता है। और जब हजारों लाखों सालों तक यह संगठन जकड़ बनता चला जाता है, तो और भी क्षीण होता चला जाता है। सभी संगठन अधूरे सत्यों के संगठन होते हैं। इसलिए इस जगत के सारे धर्म मिलकर एक पूरे धर्म की संभावना पैदा करते हैं। कोई अकेला धर्म पूरे धर्म की संभावना पैदा नहीं करता। क्योंकि सभी धर्म सत्यों को अलग-अलग पहलुओं से देखी गयी चेष्टाएं हैं। __ हिंदू विचार अत्यंत व्यवस्था को स्वीकार करता है। इसलिए हिंदू विचार ने जीवन को चार हिस्सों में बांट दिया है। ब्रह्मचर्य आश्रम है, गृहस्थ आश्रम है, वानप्रस्थ आश्रम है और फिर संन्यास आश्रम है। यह बड़ी गणित की व्यवस्था है, इसके अपने उपयोग हैं, अपनी कीमत है। लेकिन जीवन कभी भी व्यवस्था में बंधता नहीं, जीवन सब व्यवस्था को तोड़कर बहता है। इस व्यवस्था को हमने दो नाम दिये हैं, वर्ण और आश्रम। हमने समाज को भी चार हिस्सों में बांट दिया और हमने जीवन को भी चार हिस्सों में बांट दिया। यह बंटाव उपयोगी है। __ हिंदू मन को यह कभी स्वीकार नहीं रहा कि कोई जवान आदमी संन्यासी हो जाये, कि कोई बच्चा संन्यासी हो जाये। संन्यास आना चाहिए, लेकिन वह जीवन की अंतिम बात है। इसका अपना उपयोग है, इसका अपना अर्थ है, क्योंकि हिंदू ऐसा मानता रहा है कि संन्यास इतनी बड़ी घटना है कि सारे जीवन के अनुभव के बाद ही खिल सकती है। इसका अपना उपयोग है। 385 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340021
Book TitleMahavir Vani Lecture 21 Satya Sada Sarvabhaum Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size78 MB
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