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________________ महावीर-वाणी भाग : 1 पशु मरते हैं स्वाभाविक मृत्यु, आदमी नहीं मरता। मर नहीं सकता आदमी, क्योंकि उसके जीवन पर वह पूरे वक्त प्रभाव डाल रहा है-आशा, निराशा, जीना, नहीं जीना, वह भीतर से प्रभावित कर रहा है। और जिस दिन मन पूरा राजी हो जाता है कि नहीं, उसी दिन हृदय की धड़कन बंद हो जाती है। इसलिए अगर मस्तिष्क के तंतु टूट गए तो फिर मुश्किल है। अभी मुश्किल है, सौ दो सौ साल में मुश्किल नहीं होगा, क्योंकि मस्तिष्क के तंतु भी रिप्लेस, किसी न किसी दिन किये जा सकते हैं। कोई अड़चन नहीं है। तब आदमी जिंदा हो जायेगा। तो आदमी कब मरा हुआ है, कब कहें ? जब तक शरीर और आत्मा का संबंध नहीं टूट जाता तब तक आदमी मरा हुआ नहीं है। और यह संबंध कब टूटता है, अभी तक तय नहीं हो सका। कहीं टूटता है, लेकिन कब टूटता है, अभी तक तय न हो सका। किसी गहरे क्षण में जाकर टूट जाता है, फिर कुछ भी नहीं किया जा सकता। फिर मस्तिष्क बदल डालो, फिर हृदय बदल डालो, फिर सारा खून बदल डालो, फिर पूरा शरीर बदल डालो, तो भी वह लाश ही होगी। एक दफा शरीर और आत्मा का संबंध टूट जाये...तो क्या शरीर और आत्मा का संबंध टूट जाये, तब हमें कहना चाहिए कि आदमी मर गया? लेकिन तब भी यह बात अधूरी है, क्योंकि मरा कोई भी नहीं, शरीर सदा से मरा हुआ था, वह मरा हुआ है। और आत्मा सदा से अमर थी, वह अब भी अमर है। मरा कोई भी नहीं। तो कब हम कहें कि आदमी मर गया ! यह मैंने एक उदाहरण के लिए लिया। महावीर कहेंगे, स्यात। निश्चयात्मक कुछ मत बोलना, एब्सोल्यूटिस्टिक कुछ मत बोलना। इसलिए महावीर शंकर को पसंद न पड़े। बुद्ध को भी पसंद न पड़े। हिंदुस्तान में बहुत कम विचारकों को पसंद पड़े। क्योंकि विचारक का मजा यह होता है कि कुछ निश्चित बात पता चल जाये, नहीं तो मजा ही खो जाता है। शंकर कहते हैं, ब्रह्म है। महावीर कहेंगे, स्यात। शंकर कहेंगे, माया है। महावीर कहेंगे स्यात। चार्वाक कहता है, आत्मा नहीं है। महावीर कहते हैं, स्यात। ईश्वर नहीं है, महावीर उसे भी कहेंगे, स्यात। वे कहते यह हैं कि हम जो भी बोल सकते हैं, जो भी कहा जा सकता है वह सदा ही अंश होगा। और उस अंश को पूर्ण मान लेना असत्य है। इसलिए महावीर कहते हैं, सभी दृष्टियां असत्य होती हैं—सभी दृष्टियां। सभी देखने के ढंग अधूरे होते हैं, इसलिए असत्य होते हैं। और पूर्ण देखने का कोई ढंग नहीं है। क्योंकि सभी ढंग अधूरे होंगे। - मैं आपको कहीं से भी देखू, वह अधूरा होगा। कैसे भी देखू, वह अधूरा होगा। इसलिए महावीर कहते हैं, पूर्ण को तो वही देख सकता है, जो सब दृष्टियों से मुक्त हो गया हो। इसलिए महावीर के दर्शन का, 'सम्यक दर्शन' का अर्थ है-सब दृष्टियों से मुक्त हो जाना। एक ऐसी स्थिति में पहुंच जाना, जहां कोई दृष्टि शेष नहीं रह जाती, देखने का कोई ढंग शेष नहीं रह जाता। तब आदमी पूर्ण सत्य को जानता है। लेकिन जान सकता है, जब कहेगा, फिर दृष्टि का उपयोग करना पड़ेगा। तब वह फिर अधूरा हो जायेगा। इसलिए महावीर की यह बात समझ लेने जैसी है। सत्य पूरा जाना जा सकता है, लेकिन कहा कभी नहीं जा सकता। जब भी कहा जायेगा, वह असत्य हो ही जायेगा। इसलिए सावधानी बरतना और निश्चयात्मक रूप से कुछ भी मत कहना / हम तो असत्य को भी इतने निश्चय से कहते हैं जिसका हिसाब नहीं। और महावीर कहते हैं सत्य को भी निश्चय से मत कहना। हम तो असत्य को भी बिलकुल दावे की तरह कहते हैं। सच तो यह है कि जितना बड़ा असत्य होता है, उतना जोर से हम टेबल पीटते 400 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340021
Book TitleMahavir Vani Lecture 21 Satya Sada Sarvabhaum Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size78 MB
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