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________________ सत्य सदा सार्वभौम है आपको पता ही नहीं चलता। बल्कि पता ही तब चलता है, जब समूह में कोई बगावती पैदा हो जाता है। वह कहता है, कहां है ईश्वर ? तब आपको क्रोध आता है। ___ अगर आपके पास सत्य है तो उसे दिखा देना चाहिए। क्रोध का कोई कारण नहीं। लेकिन जब कोई पछता है, कहां है ईश्वर ? तो आप दिखाने को उत्सुक नहीं होते, उसको मारने को उत्सुक हो जाते हैं। यह आपकी वृत्ति बताती है, क्योंकि क्रोध सदा असत्य से पैदा होता है, सत्य से पैदा नहीं होता। अगर ईश्वर है, तो दिखा दो। इस गरीब ने कुछ गलत नहीं पूछा है। एक जिज्ञासा की है। लेकिन नास्तिक को हम सदा मारने को उत्सुक होते हैं। इसका मतलब है कि आस्तिकता झूठी है। होकस-पोकस है। उसमें कुछ नहीं है, ऊपरी ढांचा है। जरा ही कोई उंगली डाल देता है तो भीतर खलबली मच जाती है। आप मानते हैं कि आपके भीतर आत्मा है। आपको पता है? कभी मुलाकात हुई? छोड़ो ईश्वर ! ईश्वर बड़ी दूर है। भीतर आत्मा बिलकुल पास है, कहते हैं हृदय से भी करीब। मुहम्मद कहते हैं कि गले की फड़कती नस से भी करीब / इसका आपको पता है? यह भी किताब में पढ़ा है? बड़ा मजेदार है। ___ रामकृष्ण के पास एक दिन एक आदमी आया। रामकृष्ण ने कहा कि सुना है कि पड़ोस में तुम्हारे मकान गिर गया। उसने कहा, मैंने सुबह का अखबार अभी देखा नहीं। जरा जाता हूं, देखता हूं। पड़ोसी का मकान गिरे, तो भी अखबार में ही पता चलता है। मगर यह भी ठीक है, क्योंकि पड़ोस अब कोई छोटी बात नहीं है, बड़ी बात है। और पड़ोस पुराने गांव से भी बड़ी बात है। नहीं पता चला होगा। लेकिन आपको आपकी आत्मा का पता भी अखबार में पढ़ने से चलता है कि है, कि नहीं है। ___ अखबार में एक लेख निकल जाये कि आत्मा नहीं है, तो आपको भी शक आ जाता है। किताब में पढ़ लें कि आत्मा है, आपको भरोसा आ जाता है। लोग पूछते फिरते हैं, आत्मा है ? बड़े मजे की बात है, और सब चीजें पूछी जा सकती हैं दूसरे से। यह भी दूसरे से पूछने की बात है ? आप यह पूछ रहे हैं, मैं हूं? कोई मुझे बता दे कि मैं हूं। महावीर कहते हैं, यह भी असत्य है। मत कहो कि मैं हूं, जब तक तुम्हें पता न चल जाये। मत कहो कि भीतर आत्मा है, जब तक तुम्हें पता न चल जाये। कौन जाने, सिर्फ हड्डी मांस का जोड़ हो, और यह बोलना और चालना सिर्फ एक बाई प्रोडेक्ट हो। जैसा कि चार्वाक ने कहा है कि पान में हम पांच चीजें मिला लेते हैं, फिर होठों पर लाली आ जाती है। वह लाली बाई प्रोडेक्ट है। क्योंकि उन पांच चीजों को अलग-अलग मुंह में ले जायें तो लाली नहीं आती। पांचों को मिला दें तो पांचों के मिलने से लाली पैदा हो जाती है ! लेकिन लाली कोई चीज नहीं है, पांचों का दान है। पांचों को अलग कर लें, लाली खो जाती है। पांच को अलग करके आप यह नहीं कह सकते कि लाली अब कहीं है। छिप गयी, अदृश्य हो गयी, सिर्फ खो जाती है। तो चार्वाक ने कहा कि यह शरीर भी पांच तत्वों का जोड़ है। इसमें जो आत्मा दिखायी पड़ती है, वह बाई प्रोडेक्ट है, उत्पत्ति है। वह कोई तत्व नहीं है। तत्व तो पांच हैं। उनके जोड़ से, उनके संयोग से आत्मा दिखायी पड़ती है। पांचों तत्वों को अलग कर लें, आत्मा बचती नहीं। खो जाती है। समाप्त हो जाती है। " ___ तो महावीर कहते हैं, कौन जाने, चार्वाक सच हो। तो झूठ मत बोलें कि मैं आत्मा हूं, कि मैं अमर हूं, यह मत बोलें। मत कहें कि पुर्नजन्म है, जब तक जान न लें। मत कहें कि पीछे जन्म थे, जब तक जान न लें। मत कहें कि पुण्य का फल सदा ठीक होता है। मत कहें कि पाप सदा दुख में ले जाता है। जब तक जान न लें। अगर सत्य की ऐसी बात हो तो चुप हो जाना पड़े। सामूहिक असत्य है। फिर रोजमर्रा के कामचलाऊ असत्य हैं, जिनको हम कभी सोचते नहीं कि असत्य हैं। 395 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340021
Book TitleMahavir Vani Lecture 21 Satya Sada Sarvabhaum Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size78 MB
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