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________________ धर्म का मार्ग : सत्य का सीधा साक्षात् फल नहीं लगते, और जहां उनके जीवन में कोई फूल नहीं खिलते। और जहां उनका जीवन निष्फल हो जाता है। ___ जीवन को हम देखें, तो जीवन की अंतिम घटना है मृत्यु। अगर इसे हम ऐसा समझें तो जीवन का जो आखिरी चरण है, शिखर है, वह मृत्यु है। जन्म तो शुरुआत है, मृत्यु अंत है। मृत्यु में ही पता चलेगा कि व्यक्ति का जीवन सफल हुआ या असफल हुआ। अंतिम घड़ी में ही जांच-पड़ताल हो जायेगी। निर्णय हो जाएगा। ___ अगर आप हंसते हुए मर सकते हैं तो जीवन सफल हुआ, फूल खिल गये। अगर आप रोते हुए ही मरते हैं तो जीवन व्यर्थ गया, फूल खिल नहीं पाये। क्योंकि जब सब खिल जाता है तो मृत्यु एक आनंद है। जब कुछ भी नहीं खिल पाता तो मृत्यु एक पीड़ा है, क्योंकि मैं बिना कुछ हुए मर रहा हूं। समय व्यर्थ गया, अवसर चूक गया। मैं कुछ हो नहीं पाया, जो हो सकता था। जो मेरे भीतर छिपा था वह बाहर न आया। जो गीत मैं गा सकता था, वह अनगाया रह गया। तब पीड़ा है। ___ हम में से अधिक लोग रोते हुए ही मरते हैं। रोता हुआ मरण इस बात की खबर है कि जीवन असफल गया। मृत्यु जब हंसती हुई होती है, जब मृत्यु फूल की तरह खिलती है, जब मृत्यु एक आनंद होती है, तो उसका अर्थ है कि इस जीवन की गहनताओं में छिपा हआ जो अमृत था, उसका इस व्यक्ति को पता चल गया। अब मृत्यु सिर्फ विश्राम है। अब मृत्यु अंत नहीं है, बल्कि अब मृत्यु पूर्णता है, बल्कि अब मृत्यु एक लंबी निष्फल जीवन की समाप्ति नहीं है, बल्कि एक फुलफिलमेंट है, एक पूर्णता है। एक जीवन पूरा हुआ। __ जैसे कोई नदी मरुस्थल में खो जाये और सागर तक न पहुंच पाये, वैसा अधिक लोगों का जीवन है, कहीं खो जाता है, पूर्ण नहीं हो पाता। जैसे कोई नदी सागर में पहुंच जाये, गीत गाती, नाचती सागर से मिल जाये। ___ मरुस्थल में भी नदी खो जाती है, सागर में भी नदी खोती है। लेकिन मरुस्थल में नदी असफल हो जाती है, सागर में नदी सफल हो जाती है। इसलिए मरुस्थल में खोती नदी रोती हुई खोयेगी; सागर में गिरती हुई नदी नाचती होभाव से भरी हई। खाना ता दोनों में है। मृत्यु में हम भी खोते हैं, लेकिन रोते हुए। जैसे मरुस्थल में सब अवसर व्यर्थ हो गया। महावीर भी खोते हैं, लेकिन हंसते हुए। वह जो अवसर मिला था, उससे जो भी हो सकता था. वह परा हो गया है। इस बात को समझकर सूत्र को समझें। 'जिस प्रकार मूर्ख गाड़ीवान जान-बूझकर साफ-सुथरे राजमार्ग को छोड़, विषम टेढ़े-मेढ़े, ऊबड़-खाबड़ मार्ग पर चल पड़ता है और गाड़ी की धुरी टूट जाने पर शोक करता है, वैसे ही मूर्ख मनुष्य भी जान-बूझकर धर्म को छोड़, अधर्म को पकड़ लेता है और अंत में मृत्यु के मुख में पहुंचने पर, जीवन की धुरी टूट जाने पर शोक करता है।' इसमें बहत-सी बातें हैं। एक, महावीर ने बड़ी अदभुत बात कही है और वह यह कि 'मूर्ख गाड़ीवान जान-बूझकर', यह बड़ी उल्टी बात है। अगर गाड़ीवान मूर्ख है, तो जान-बूझकर क्या अर्थ रखता है, और अगर गाड़ीवान जान-बूझकर ही गलत रास्ते पर चलता है, तो मूर्ख कहने का क्या प्रयोजन, लेकिन महावीर का प्रयोजन है। जब महावीर कहते हैं कि मूर्ख गाड़ीवान जान-बूझकर। ___ मूर्खता अज्ञान का नाम नहीं है। मूर्खता, उन ज्ञानियों के लिए कही जाती है जो जान-बूझकर... बच्चे को हम मूर्ख नहीं कहते, अबोध कहते हैं। बच्चे को हम, अगर भूल करे, तो मूर्ख नहीं कहते, बच्चा ही कहते हैं, निर्दोष कहते हैं, अभी उसे पता ही नहीं है। मूर्ख तो आदमी तब होता है, जब उसे पता होता है और फिर भी जान-बूझकर गलत रास्ते पर चला जाता है। जानवरों को हम मूर्ख नहीं कह सकते, अज्ञानी तो वे हैं; बच्चों को हम मूर्ख नहीं कह सकते, अज्ञानी वे हैं। मूर्ख तो हम उनको ही कह सकते हैं जो ज्ञानी भी हैं, तब जान-बूझकर भूल शुरू होती है और जान-बूझकर भूल ही मूर्खता है। लेकिन क्यों कोई जान-बूझकर टटे सोना तो 369 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340020
Book TitleMahavir Vani Lecture 20 Dharm ka Marg Satya ka Sidha Sakshat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size68 MB
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