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________________ धर्म का मार्ग : सत्य का सीधा साक्षात् आपकी कभी श्रद्धा नहीं होगी। जो दूसरा कर सकता है, और आप नहीं कर सकते हैं, तो श्रद्धा होती है। तो जो भी आदमी अहंकार खोज रहा है- अहंकार का मतलब, दूसरों की श्रद्धा खोज रहा है, सम्मान खोज रहा है-वह आदमी तिरछे रास्ते चुन लेगा। मूर्ख गाड़ीवान ऐसे ही मूर्ख नहीं है, बहुत समझदारी से मूर्ख है। उस मूर्खता में एक विधि है। महावीर कहते हैं, लेकिन जीवन के रास्ते पर भी यही होता है। मनुष्य जान-बूझकर धर्म को छोड़कर अधर्म को चुन लेता है। आपको साफ-साफ पता होता है, यह सरल और सीधा रास्ता है; लेकिन उसमें अहंकार की तृप्ति नहीं होती। तब आप तिरछा रास्ता चुनते हैं। यह जान-बूझकर चुनते हैं। इसको समझ लेना जरूरी है। क्योंकि अगर आप बिना जाने-बूझे चुनते हैं तब बदलने का कोई उपाय नहीं है, इसलिए महावीर का जोर है कि आप जान-बूझकर चुनते हैं। अगर आप बिना जाने-बूझे चुनते हैं तब तो फिर बदलने का कोई उपाय नहीं है। अगर जान-बूझकर चुनते हैं, तो बदलाहट हो सकती है। बदलाहट का अर्थ ही यह है कि आप ही मालिक हैं चुनाव के। आपने ही चाहा था इसलिए तिरछे रास्ते पर गये। आप चाहेंगे तो सीधे रास्ते पर आ सकते हैं। यह आपकी चाह ही है जो आपको भटकाती है। इसमें कोई दूसरा पीछे से काम नहीं कर रहा है। फ्रायड कहता है, आदमी जान-बूझकर कुछ भी नहीं करता, धर्म और अधर्म के बीच यही विकल्प है। फ्रायड कहता है, मनुष्य जान-बूझकर कुछ भी नहीं करता, सब अनकांशस होता है, सब अचेतन होता है, जानकर आदमी कुछ भी नहीं करता। फ्रायड ने यह बात पिछले पचास सालों में इतने जोर से पश्चिम के सामने सिद्ध कर दी। और वह आदमी अदभुत था। उसकी खोज में कई सत्य थे, लेकिन अधूरे सत्य थे और अधूरे सत्य असत्यों से भी खतरनाक सिद्ध होते हैं। क्योंकि अधूरा सत्य, सत्य भी मालूम पड़ता है और सत्य होता भी नहीं। और कोई भी आदमी अधूरे सत्य को नहीं पकड़ता है। जब अधूरे सत्य को पकड़ता है, तो उसे पूरा सत्य मानकर पकड़ता है। तब उपद्रव शुरू हो जाते हैं। फ्रायड ने पश्चिम को समझा दिया कि आदमी जो भी कर रहा है, वह सब अचेतन है। अगर यह बात सच है, तो फिर आदमी के हाथ में परिवर्तन का कोई उपाय नहीं। इसलिए शराबी ने सोचा कि अब मैं कर भी क्या सकता हूं। व्यभिचारी ने सोचा, अब उपाय भी क्या है ! यह सब अचेतन है, यह सब हो रहा है। इसमें मैं कुछ भी नहीं कर सकता। और इस सदी ने बिना जाने जगत के इतिहास का सबसे बड़ा भाग्यवाद जन्माया। भाग्यवादी कहते थे, परमात्मा कर रहा है; फ्रायड कहता है, अचेतन कर रहा है। लेकिन एक बात में दोनों राजी हैं कि हम नहीं कर रहे हैं। हमारे हाथ में बात नहीं है। परमात्मा कर रहा है। विधि ने लिख दिया खोपड़ी पर, वह हो रहा है। फ्रायड कहता है, पीछे से अचेतन चला रहा है, और हम चल रहे हैं। जैसे कोई गड़ियों को नचा रहा हो। हमारे हाथ में कुछ भी नहीं है। पहले परमात्मा नचाता था गड़ियों को, अब अनकां रहा है। सिर्फ शब्द बदल गये हैं। लेकिन आदमी के हाथ में कोई ताकत नहीं। ___महावीर परमात्मा के भी खिलाफ हैं और अचेतन के भी। महावीर कहते हैं, तुम जो भी कर रहे हो, ठीक से जानना, तुम कर रहे हो। आदमी को इतना ज्यादा उत्तरदायी किसी दूसरे ने कभी नहीं माना, जितना महावीर ने माना। महावीर ने कहा कि अंततः तुम ही निर्णायक हो, और इसलिए कभी भूलकर नहीं कहना कि भाग्य ने, विधि ने, परमात्मा ने, किसी ने करवा दिया। जो तुमने किया है, तुमने किया है। इसमें जोर देने का कारण है और वह कारण यह है कि जितना यह स्पष्ट होगा कि मैं कर रहा हूं, उतनी ही बदलाहट आसान है। क्योंकि अगर मैं अपने चुनाव से उल्टे रास्ते पर नहीं गया हूं, भेजा गया हूं, तो जब मैं भेजा जाऊंगा सीधे रास्ते पर तो चला जाऊंगा। जब मैं भेजा गया हूं उल्टे रास्ते पर, तो मैं कैसे लौट सकता हूं? जब भेजेगी प्रकृति, भेजेगी नियति, भेजेगा परमात्मा, तो ठीक है, मैं लौट जाऊंगा। न मैं गया, न मैं लौट सकता हूं। मैं एक पानी में बहता हुआ तिनका हूं। मेरी अपनी कोई गति नहीं है, मेरा अपना कोई 375 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340020
Book TitleMahavir Vani Lecture 20 Dharm ka Marg Satya ka Sidha Sakshat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size68 MB
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