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________________ धर्म : एक मात्र शरण तो बुद्ध ने कहा है, हम उसी लौ को नहीं बुझाते। उसी लौ की धारा में आयी हुई लौ को बुझाते हैं। संतति को बुझाते हैं। वह लौ अगर पिता थी, तो हजार, करोड़ पीढ़ियां बीत गयीं रातभर में। उसकी अब जो संतति है, सुबह इन बारह घण्टे के बाद, उसको हम बुझाते हैं। लेकिन इसे अगर हम फैलाकर देखें तो बडी हैरानी होगी। मैंने आपको गाली दी। जब तक आप मुझे गाली लौटाते हैं, यह गाली उसी आदमी को नहीं लौटती, जिसने आपको गाली दी थी। लौ को तो समझना आसान है कि सांझ जलायी थी और सुबह...लेकिन यह जो जरा की धारा है, इसको समझना मुश्किल है। आप उसी को गाली वापस नहीं लौटा सकते, जिसने आपको गाली दी थी। वहां भी जीवन क्षीण हो रहा है, वहां भी लौ बदलती जा रही है। जिसने आपको गाली दी थी, वह आदमी अब नहीं है, उसकी संतति है। उसी धारा में एक नयी लौ है। हम कुछ भी लौटा नहीं सकते। लौटाने का कोई उपाय नहीं है। क्योंकि जिसको लौटाना है, वह वही नहीं है, बदल गया। __ हैराक्लाइटस ने कहा है, 'एक ही नदी में दुबारा उतरना असंभव है। ' निश्चित ही असंभव है। क्योंकि दुबारा जब आप उतरते हैं, वह पानी बह गया जिसमें आप पहली बार उतरे थे। हो सकता है, अब सागर में हो वह पानी। हो सकता है, अब बादलों में पहुंच गया हो। हो सकता है, फिर गंगोत्री पर गिर रहा हो। लेकिन अब उस पानी से मुलाकात आसान नहीं है दुबारा। और अगर हो भी जाये तो आपके भीतर की भी जीवनधारा बदल रही है। अगर वह पानी दुबारा भी मिल जाये, तो जो उतरा था नदी में, वह आदमी दबारा नहीं मिलेगा। ___ दोनों नदी हैं। नदी भी एक नदी है। आप भी एक नदी हैं, आप भी एक प्रवाह हैं-सारा जीवन एक प्रवाह है। इसको महावीर कहते हैं- 'जरा'। इसका एक छोर जन्म है, और दूसरा छोर मृत्यु है। जन्म में ज्योति पैदा होती है, मृत्यु में उसकी संतति समाप्त होती है। इस बीच के हिस्से को हम जीवन कहते हैं, जो कि क्षण-क्षण बदल रहा है। यह प्रवाह तेज है कि इसमें पैर रोककर खड़ा होना भी मुश्किल है। हालांकि हम सब खड़े होने की कोशिश करते हैं। जब हम एक बड़ा मकान बनाते हैं, तो हम इस खयाल से नहीं बनाते कि कोई और इसमें रहेगा। या कभी कोई ऐसा आदमी है, जो मकान बनाता है, कोई और इसमें रहेगा? नहीं, आप अपने लिए मकान बनाते हैं। लेकिन सदा आपके बनाये मकानों में कोई और रहता है। आप अपने लिए धन इकट्ठा करते हैं, लेकिन सदा आपका धन किन्हीं और हाथों में पड़ता है। जीवनभर जो आप चेष्टा करते हैं, उस चेष्टा में कहीं भी पैर थमाने का कोई उपाय नहीं है। कोई और, कोई और जहां हम खड़ा होने की चेष्टा कर रहे थे, खड़ा होता है! वह भी खड़ा नहीं रह पाता! यह बड़े मजे की बात है कि हम सब दूसरों के लिए जीते हैं। एक मित्र को मैं जानता हूं। बूढ़े आदमी हैं अब तो। पंद्रह वर्ष पहले जब मुझे मिले थे, तो उनका लड़का एम.ए. करके युनिवर्सिटी के बाहर आया था। तो उन्होंने मुझे कहा कि अब मेरी और तो कोई महत्वाकांक्षा नहीं है; मेरे लड़के को ठीक से नौकरी मिल जाये, इसकी शादी हो जाये, यह व्यवस्थित हो जाये। उनका लड़का व्यवस्थित हो गया, नौकरी मिल गयी। उनके लड़के को अब तीन बच्चे हैं। __ अभी कुछ दिन पहले उनका लड़का मेरे पास आया। उसने कहा, 'मेरी तो कोई ऐसी बड़ी आकांक्षा नहीं है; बस ये मेरे बच्चे ठीक से पढ़-लिख जायें, इनकी ठीक से नौकरी लग जाये, ये व्यवस्थित हो जायें। इसको मैं कहता है-उधार जीना। बाप इनके लिए जीये, ये अपने बेटों के लिए जी रहे हैं, इनके बेटे भी अपने बेटों के लिए 355 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340019
Book TitleMahavir Vani Lecture 19 Dharm Ek Matra Sharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size74 MB
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