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________________ महावीर-वाणी भाग : 1 को पकड़ लेते हैं। सत्य असुविधापूर्ण मालूम होता है। सत्य कई बार तो इतना इनकन्वीनिएंस, इतना असुविधापूर्ण मालूम होता है कि उसके साथ जीना मुश्किल हो जाये; हमें अपने को बदलना ही पड़े। ___ अगर आप बच्चे में बूढ़े को देख सकें और जन्म में मृत्यु को देख सकें तो बड़ा असुविधापूर्ण होगा। कब मनायेंगे खुशी और कब मनायेंगे दुख? कब बजायेंगे बैंड बाजे, और कब करेंगे मातम? बहुत मुश्किल हो जायेगा। बहुत कठिन हो जायेगा। सभी चीजें अगर संयुक्त दिखायी पड़ें तो हमारे जीने की पूरी व्यवस्था हमें बदलनी पड़ेगी। जीने की जैसी हमारी व्यवस्था है, वह बटी हुई कैटेगरीज में, कोटियों में है। तो हम जरा को नहीं देखते जन्म में। न देखने का एक कारण यह भी है कि यह तेज है प्रवाह। यह जो प्रक्रिया है, बहुत तेज है। इसको देखने की बड़ी सूक्ष्म आंख चाहिए उसको महावीर तत्व-दृष्टि कहते हैं। अगर गति बहुत तेज हो तो हमें दिखायी नहीं पड़ती। अगर पंखा बहुत तेज चले तो फिर उसकी पंखुड़ियां दिखायी नहीं पड़तीं। इतना तेज भी चल सकता है पंखा कि हमें यह दिखायी ही न पड़े कि वह चल रहा है। बहुत तेज चले तो हमें मालूम पड़े कि ठहरा हुआ है। जितनी चीजें हमें ठहरी हुई मालूम पड़ती हैं, वैज्ञानिक कहते हैं, उनकी तेज गति के कारण-गति इतनी तेज है कि हम उसे अनुभव नहीं कर पाते। जिस कुर्सी पर आप बैठे हैं, उसका एक-एक अणु बड़ी तेज गति से घूम रहा है लेकिन वह हमें पता नहीं चलता, क्योंकि गति इतनी तेज है कि हम उसे पकड़ नहीं पाते। हमारी गति को समझने की सीमा है। अणु की गति हम नहीं पकड़ पाते, वह बहुत सूक्ष्म है। जरा की गति और भी सूक्ष्म और तीव्र है। जरा का अर्थ है-हमारे भीतर वह जो जीवन धारा है, वह प्रतिपल क्षीण हो रही है। हम जिसे जीवन कहते हैं, वह प्रतिपल बुझ रहा है। हम जिसे जीवन का दीया कहते हैं, उसका तेल प्रतिपल चुक रहा है। ध्यान की सारी प्रक्रियाएं इस चकते हए तेल को देखने की प्रक्रियाएं हैं। यह जरा में प्रवेश है। अभी जो आदमी मुस्कुरा रहा है, उसे पता भी नहीं कि उसकी मुस्कुराहट जो उसके होठों तक आयी है-हृदय से होंठ तक उसने यात्रा की है-जब होंठ पर मुस्कुराहट आ गयी है, उसे पता भी नहीं कि हृदय में शायद दुख और आंसू घने हो गये हों। इतनी तीव्र है गति। जब आप मुस्कुराते हैं, तब तक शायद मुस्कुराहट का कारण भी जा चुका होता है। इतनी तीव्र है गति कि जब आपको अनुभव होता है कि आप सुख में हैं, तब तक सुख तिरोहित हो चुका होता है। वक्त लगता है आपको अनुभव करने में। और जीवन की जो धारा है-जिसको महावीर कहते हैं-सब चीज जरा को उपलब्ध हो रही है, वह इतनी त्वरित है कि उसके बीच के हमें गैप, अंतराल दिखायी नहीं पड़ते। __एक दीया जल रहा है। कभी आपने खयाल किया कि आपको दीये की लौ में कभी अंतराल दिखायी पड़ते हैं? लेकिन वैज्ञानिक कहते हैं कि दीये की लौ प्रतिपल धुआं बन रही है। नया तेल नयी लौ पैदा कर रहा है। पुरानी लौ मिट रही है, नयी लौ पैदा हो रही है। परानी लौ विलीन हो रही है, नयी लौ जन्म रही है। दोनों के बीच में अंतराल है। खाली जगह है। जरूरी है, नहीं तो पुरानी मिट न सकेगी; नयी पैदा न हो सकेगी। जब पुरानी मिटती है और नयी पैदा होती है, तो उन दोनों के बीच जो खाली जगह है, वह हमें दिखायी नहीं पड़ती। वह इतनी तेजी से चलता है कि हमें लगता है कि लौ-वही लौ जल रही है। ___ बुद्ध ने कहा है कि सांझ हम दीया जलाते हैं तो सुबह हम कहते हैं, उसी दीये को हम बुझा रहे हैं, जिसे सांझ जलाया था। उस दीये को हम कभी नहीं बुझा सकते सुबह, जिसे हमने सांझ जलाया था। वह लौ तो लाख दफा बुझ चुकी जिसको हमने सांझ जलाया था। करोड़ दफा बुझ चुकी। जिस लौ को हम सुबह बुझाते हैं, उससे तो हमारी कोई पहचान ही न थी; सांझ तो वह थी ही नहीं। 354 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340019
Book TitleMahavir Vani Lecture 19 Dharm Ek Matra Sharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size74 MB
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