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________________ महावीर-वाणी भाग : 1 भी मर जाता है। क्योंकि हमारा जीवन बड़ा सामूहिक है। मैं जिसे प्रेम करता हूं, उसकी मृत्यु में मैं थोड़ा तो मरूंगा ही। क्योंकि उसके प्रेम ने जितना मुझे जीवन दिया था, वह तो टूट ही जायेगा, उतना हिस्सा तो मेरे भीतर खण्डित हो ही जायेगा, उतना तो भवन गिर ही जायेगा। ____ आपको खयाल में नहीं है। अगर सारी दुनिया मर जाये और आप अकेले रह जायें तो आप जिंदा नहीं होंगे; क्योंकि सारी दुनिया ने आपके जीवन को जो दान दिया था वह तिरोहित हो जायेगा। आप प्रेत हो जायेंगे जीते-जीते, भूत-प्रेत की स्थिति हो जायेगी। __ तो जब मृत्यु बहुत निकट आ जाती है तो ये बफर काम नहीं करते और धक्का भीतर तक पहुंचता है। तब हमने सिद्धांतों के बफर तय किये हैं। तब हम कहते हैं, आत्मा अमर है। ऐसा हमें पता नहीं है। पता हो, तो मृत्यु तिरोहित हो जाती है; लेकिन पता उसी को होता है, जो इस तरह के सिद्धांत बनाकर बफर निर्मित नहीं करता। यह जटिलता है। वही जान पाता है कि आत्मा अमर है, जो मृत्यु का साक्षात्कार करता है। और हम बड़े कुशल हैं, हम मृत्यु का साक्षात्कार न हो, इसलिए आत्मा अमर है; ऐसे सिद्धांत को बीच में खड़ा कर लेते हैं। यह हमारे मन की समझावन है। यह हम अपने मन को कह रहे हैं कि घबराओ मत, शरीर ही मरता है, आत्मा नहीं मरती; तुम तो रहोगे ही, तुम्हारे मरने का कोई कारण नहीं है। महावीर ने कहा है, बुद्ध ने कहा है, कृष्ण ने कहा है-सबने कहा है कि आत्मा अमर है। बुद्ध कहें, महावीर कहें, कृष्ण कहें, सारी दुनिया कहे, जब तक आप मृत्यु का साक्षात्कार नहीं करते हैं, आत्मा अमर नहीं है। तब तक आपको भली-भांति पता है कि आप मरेंगे, लेकिन धक्के को रोकने के लिए बफर खड़ा कर रहे हैं। ___ शास्त्र, सिद्धांत, सब बफर बन जाते हैं। ये बफर न टूटे तो मौत का साक्षात्कार नहीं होता। और जिसने मृत्यु का साक्षात्कार नहीं किया, वह अभी ठीक अर्थों में मनुष्य नहीं है, वह अभी पशु के तल पर जी रहा है। ___ महावीर का यह सूत्र कहता है-'जरा और मरण के तेज प्रवाह में बहते हुए जीव के लिए धर्म ही एकमात्र द्वीप, प्रतिष्ठा, गति और उत्तम शरण है।' इसके एक-एक शब्द को हम समझें। 'जरा और मरण के तेज प्रवाह में।' इस जगत में कोई भी चीज ठहरी हुई नहीं है, परिवर्तित हो रही है—प्रतिपल। और इस प्रतिपल परिवर्तन में क्षीण हो रही है, जरा-जीर्ण हो रही है। आप जो महल बनाये हैं, वह कोई हजार साल बाद खण्डहर होगा, ऐसा नहीं, वह अभी खण्डहर होना शुरू हो गया है। नहीं तो हजार साल बाद भी खण्डहर हो नहीं पायेगा। वह अभी जीर्ण हो रहा है, अभी जरा को उपलब्ध हो रहा है। इसे हम ठीक से समझ लें, क्योंकि यह भी हमारी मानसिक तरकीबों का एक हिस्सा है कि हम प्रक्रियाओं को नहीं देखते, केवल छोरों को देखते हैं। ___ एक बच्चा पैदा हुआ, तो हम एक छोर देखते हैं कि बच्चा पैदा हुआ। एक बूढ़ा मरा तो हम एक छोर देखते हैं कि एक बूढ़ा मरा, लेकिन मरना और जन्मना, एक ही प्रक्रिया के हिस्से हैं; यह हम कभी नहीं देखते। हम छोर देखते हैं, प्रोसेस नहीं, प्रक्रिया नहीं। जब कि वास्तविक चीज प्रक्रिया है। छोर तो प्रक्रिया के अंग मात्र हैं। हमारी आंख केवल छोर को देखती है-शुरू देखती है, अंत देखती है, मध्य नहीं देखती। और मध्य ही महत्वपूर्ण है। मध्य से ही दोनों जुड़े हैं। बच्चा पैदा हुआ, यह एक प्रक्रिया है-पैदा होना। मरना एक प्रक्रिया है, जीना एक प्रक्रिया है। ये तीनों प्रक्रियाएं एक ही धारा के हिस्से हैं। इसे हम ऐसा समझें कि बच्चा जिस दिन पैदा हुआ, उसी दिन मरना भी शुरू हो गया। उसी दिन जरा ने उसको पकड़ लिया, उसी 352 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340019
Book TitleMahavir Vani Lecture 19 Dharm Ek Matra Sharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size74 MB
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