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________________ महावीर-वाणी भाग : 1 कब होगी; अगले क्षण हो सकती है, और वर्षों भी टल सकती है। विज्ञान की चेष्टा जारी रही तो शायद सदियां भी टल सकती हैं। इससे चिंता पैदा होती है। कीर्कगार्ड ने कहा है, मनुष्य की चिंता तभी पैदा होती है जब एक अर्थ में कोई बात निश्चित भी होती है और दूसरे अर्थ में निश्चित नहीं भी होती है। तब उन दोनों के बीच में मनुष्य चिंता में पड़ जाते हैं। मृत्यु की चिंता से ही धर्म का जन्म हुआ है। लेकिन मृत्यु की चिंता हमें बहुत सालती नहीं है। हमने उपाय कर रखे हैं जैसे रेलगाड़ी में दो डिब्बों के बीच में बफर होते हैं, उन बफर की वजह से गाड़ी में कितना ही धक्का लगे, डिब्बे के भीतर लोगों को उतना धक्का नहीं लगता। बफर धक्के को झेल लेता है। कार में स्प्रिंग होते हैं, रास्ते के गड्ढों को स्प्रिंग झेल लेते हैं। अंदर बैठे हुए आदमी को पता नहीं चलता। _आदमी ने अपने मन में भी बफर लगा रखे हैं जिनकी वजह से वह मृत्यु का जो धक्का अनुभव होना चाहिए, उतना अनुभव नहीं हो पाता। मृत्यु और आदमी के बीच में हमने बफर का इंतजाम कर रखा है। वे बफर बड़े अदभुत हैं, उन्हें समझ लें तो फिर मृत्यु में प्रवेश हो सके, और यह सूत्र मृत्यु के संबंध में है। ___ मृत्यु से ही धर्म की शुरुआत होती है, इसलिए यह सूत्र मृत्यु के संबंध में है। कभी आपने खयाल न किया हो, जब भी हम कहते हैं, मृत्यु निश्चित है तो हमारे मन में लगता है, प्रत्येक को मरना पड़ेगा। लेकिन उस प्रत्येक में आप सम्मिलित नहीं होते—यह बफर है, जब भी हम कहते हैं, हर एक को मरना होगा, तब भी हम बाहर होते हैं, संख्या के भीतर नहीं होते। हम गिननेवाले होते हैं, मरनेवाले कोई और होते हैं। हम जाननेवाले होते हैं, मरनेवाले कोई और होते हैं। जब भी मैं कहता हूँ, मृत्यु निश्चित है, तब भी ऐसा नहीं लगता कि मैं मरूंगा। ऐसा लगता है, हर कोई मरेगा एनानीमस, उसका कोई काम नहीं है; हर आदमी को मरना पड़ेगा। लेकिन मैं उसमें सम्मिलित नहीं होता हैं। मैं बाहर खडा हं. मैं मरते हए लोगों की कतार देखता हूं। लोगों को मरते हुए देखता हूं, जन्मते देखता हूं। मैं गिनती करता रहता हूं, मैं बाहर खड़ा रहता हूं, मैं सम्मिलित नहीं होता। जिस दिन मैं सम्मिलित हो जाता हूं, बफर टूट जाता है। ___ बुद्ध ने मरे हुए आदमी को देखा और बुद्ध ने पूछा, 'क्या सभी लोग मर जाते हैं?' सारथी ने कहा, 'सभी लोग मर जाते हैं। ' बुद्ध ने तत्काल पछा, 'क्या मैं भी मरूंगा?' हम नहीं पछते। ___ बुद्ध की जगह हम होते, इतने से हम तृप्त हो जाते कि सब लोग मर जाते हैं। बात खत्म हो गयी। लेकिन बुद्ध ने तत्काल पूछा, 'क्या मैं भी मर जाऊंगा?' ___ जब तक आप कहते हैं, सब लोग मर जाते हैं, जब तक आप बफर के साथ जी रहे हैं। जिस दिन आप पूछते हैं, क्या मैं भी मर जाऊंगा? यह सवाल महत्वपूर्ण नहीं है कि सब मरेंगे कि नहीं मरेंगे। सब न भी मरते हों, और मैं मरता होऊं, तो भी मृत्यु मेरे लिए उतनी ही महत्वपूर्ण है। क्या मैं भी मर जाऊंगा? लेकिन यह प्रश्न भी दार्शनिक की तरह भी पूछा जा सकता है और धार्मिक की तरह भी पूछा जा सकता है। जब हम दार्शनिक की तरह पूछते हैं, तब फिर बफर खड़ा हो जाता है। तब हम मृत्यु के संबंध में सोचने लगते हैं, 'मैं' के संबंध में नहीं। जब धार्मिक की तरह पूछते हैं। तो मृत्यु महत्वपूर्ण नहीं रह जाती, मैं महत्वपूर्ण हो जाता हूं। सारथी ने कहा कि किस मुंह से मैं आपसे कहूं कि आप भी मरेंगे। क्योंकि यह कहना अशुभ है। लेकिन झूठ भी नहीं बोल सकता हूं, मरना तो पड़ेगा ही, आपको भी। तो बुद्ध ने कहा, रथ वापस लौटा लो, क्योंकि मैं मर ही गया। जो बात होने ही वाली है, 350 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340019
Book TitleMahavir Vani Lecture 19 Dharm Ek Matra Sharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size74 MB
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