SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 12
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महावीर-वाणी भाग : 1 कबीले में कोई नहीं कह सकता। क्योंकि मर्द का लक्षण ही यह है कि वह कमजोरी दिखाए। उस कबीले में अगर स्त्रियां कभी कमजोरी दिखाती हैं तो लोग कहते हैं कि कैसा मर्दो जैसा व्यवहार कर रही है। कमजोरी दिखाते हैं, तो मान्यता है। आदमी मान्यता से जीनेवाला प्राणी है। और हमारी मान्यता गहरी है कि हम शरीर हैं। यह इतनी गहरी है कि नींद में भी हमें खयाल रहता है कि हम शरीर हैं। बेहोशी में भी हमें पता रहता है कि हम शरीर हैं। इस मान्यता को तोड़ना कायोत्सर्ग की साधना का पहला चरण है। जो लोग ध्यान तक आए हैं उन्हें तो कठिनाई नहीं पड़ेगी, लेकिन आपको तो बिना ध्यान के समझना पड़ रहा है, इसलिए थोड़ी कठिनाई पड़ सकती है। लेकिन फिर भी पहला सूत्र यह है कि मैं शरीर नहीं हूं। इस सूत्र को अगर गहरा कर लें तो अदभुत परिणाम होने शुरू हो जाते हैं। 1908 में काशी के नरेश के अपेंडिक्स का आपरेशन हुआ। और नरेश ने कह दिया कि मैं किसी तरह की बेहोशी की दवा नहीं लूंगा। क्योंकि मैं होश की साधना कर रहा हूं, इसलिए मैं कोई बेहोशी की दवा नहीं ले सकता हूं। आपरेशन जरूरी था, उसके बिना नरेश बच नहीं सकता था। चिकित्सक मुश्किल में थे। बिना बेहोशी के इतना बड़ा आपरेशन करना उचित न था। लेकिन किसी भी हालत में मौत होनी थी। नरेश मरेगा अगर आपरेशन न होगा इसलिए एक जोखिम उठाना ठीक है कि होश में ही आपरेशन किया जाए। नरेश ने कहा कि सिर्फ मुझे आज्ञा दी जाए कि जब आप आपरेशन करें, तब मैं गीता का पाठ करता रहूं। नरेश गीता का पाठ करता रहा। बड़ा आपरेशन था, आपरेशन पूरा हो गया। नरेश हिला भी नहीं। दर्द का तो उसके चेहरे पर कोई पता न चला। __जिन छह डाक्टरों ने वह आपरेशन किया वे चकित हो गए। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में लिखा है हम हैरान हो गए। और हमने नरेश से पूछा कि हुआ क्या? तुम्हें दर्द पता नहीं चला! नरेश ने कहा कि जब मैं गीता पढ़ता हूं और जब मैं पढ़ता हूं-न हन्यते हन्यमाने शरीरे...शरीर के मरने से तू नहीं मरता है। नैनं छिदन्ति शस्त्राणि...जब शस्त्र तुझे छेद दिए जाएं तो तू नहीं छिदता। तब मेरे भीतर ऐसा भाव जग जाता है कि मैं शरीर नहीं हूं। बस इतना काफी है। जब मैं गीता नहीं पढ़ रहा होता हूं, तब मुझे शक पैदा होने लगता है। वह मेरी मान्यता कि मैं शरीर हं, पीछे से लौटने लगती है। लेकिन जब मैं गीता पढ़ता होता हं तब मुझे पक्का ही भरोसा हो जाता है कि मैं शरीर नहीं हूं। उस वक्त तुम मुझे काट डालो, पीट डालो। मुझे पता भी नहीं चला। तुमने क्या किया है, मुझे पता नहीं चला। क्योंकि मैं उस भाव में डूबा था, जहां मैं जानता हूं कि शरीर छेद डाला जाए तो मैं नहीं छिदता, शरीर जला जाए तो मैं नहीं जलता / ___ आपके भीतर भी भाव की स्थितियां हैं। आपका मन कोई एक फिक्स्ड, एक थिर चीज नहीं है। उसमें फ्लेजुएशंस हैं, उसमें नीचे ऊपर ज्योति होती रहती है। किसी क्षण में आप बहुत ज्यादा शरीर होते हैं, किसी क्षण में बहुत कम शरीर होते हैं। आप चौबीस घण्टे आपके मन की भावदशा एक नहीं रहती। जब आप किसी एक सुंदर स्त्री को या सुंदर पुरुष को देखकर उसके पीछे चलने लगते हैं तो आप बहुत ज्यादा शरीर हो जाते हैं। तब आपका फ्लक्चुएशन भारी होता है। आप बिलकुल नीचे उतर आते हैं, 'जहां मैं शरीर हं'। लेकिन जब आप मरघट पर किसी की लाश जलते देखते हैं तब आपका फ्लचुएशन बदल जाता है। अचानक मन के किसी कोने में शरीर को जलते देखकर शरीर की प्रतिमा खण्डित होती है टूटती है। उन क्षणों को पकड़ना जरूरी है, जब आप बहुत कम शरीर होते हैं। उन क्षणों में यह स्मरण करना बहुत कीमती है कि मैं शरीर नहीं हूं। क्योंकि जब आप बहुत ज्यादा शरीर होते हैं तब यह स्मरण करना बहुत काम नहीं करेगा, क्योंकि पर्त इतनी मोटी होती है कि आपके भीतर प्रवेश नहीं कर पाएगी। यह आपको ही जांचना पड़ेगा कि किन क्षणों में आप सबसे कम शरीर होते हैं—यद्यपि कुछ निश्चित क्षण हैं जिनमें सभी कम शरीर होते हैं। वह क्षण आपको कहूं तो वह कायोत्सर्ग में आपके लिए उपयोगी होंगे। जब भी सूर्य डूबता है या उगता है तब आपके भीतर भी रूपांतरण होते हैं। अब तो वैज्ञानिक इस पर बहुत ज्यादा राजी हो गए हैं 340 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340018
Book TitleMahavir Vani Lecture 18 Kayotsarga Sharir se Vida Lene ki Kshamta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size77 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy