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________________ महावीर-वाणी भाग : 1 दे रहा है, वह इसमें भी... अब वह अपने को ही गाली दे रहा है। और अपने को तो कोई गाली नहीं देना चाहता है! नहीं, इसका कोई बोध नहीं है, गाली इतनी सहज हो गयी है कि जो आदमी आपको गाली दे गया, हो सकता है उसे पता ही न हो। आप जो व्याख्याएं निकाल रहे हैं वह आप ही निकाल रहे हैं। भीतर जाएं कृपा करके, उस आदमी की फिक्र छोड़ें। भीतर देखें कि उस आदमी ने गाली दी तो मेरे भीतर क्या-क्या व्याख्या पैदा होती है, उसकी गाली की। वह व्याख्या उस आदमी के संबंध में कुछ भी नहीं कहती, सिर्फ आपके संबंध में कुछ कहती है कि आप आदमी कैसे हैं। अगर आपको गाली दी जाए तो आपके भीतर क्या-क्या होगा, इसको देखें। आप क्या-क्या व्याख्या करते हैं, आपके भीतर क्रोध कैसे उठता है, आप उससे क्या-क्या प्रतिकार लेना चाहते हैं? हत्या करना चाहते हैं; गाली देना चाहते हैं; गर्दन दबाना चाहते हैं; क्या करना चाहते हैं? इस पूरे को उतर जाएं देखने। आप अनुभवी होकर बाहर लौटेंगे। आप इस स्वाध्याय से ज्ञानी होकर बाहर लौटेंगे। __इसके दो मजे होंगे-एक तो आपकी अपने संबंध में जानकारी बढ़ गयी होगी। और साथ ही आपको यह भी पता चल गया होगा कि महत्वपूर्ण यह नहीं है कि उसने गाली दी, महत्वपूर्ण यह है कि मैंने कैसा अनुभव किया। और मजा यह है कि आप उसका गाल का उत्तर देने अब कभी न जाएंगे। क्योंकि आप बदल गए होंगे इस ज्ञान से, इस स्वाध्याय से, आप वही आदमी नहीं रह गए जिसको गाली दी गयी थी। समथिंग हैज बीन एडेड, समथिंग हैज बीन रिवील्ड। नया कुछ जुड़ गया। सुबह आप दूसरे आदमी होंगे। हो सकता है, आप उससे क्षमा मांग आएं। हो सकता है, आप पाएं कि उसने गाली ठीक ही दी। हो सकता है, आप पाएं कि उसकी गाली उतनी मजबूत न थी जितनी होनी चाहिए थी, जितना बुरा मैं आदमी हूं। हो सकता है कि आप उससे जाकर कहें कि तेरी गाली बिलकुल ठीक थी और अण्डर एस्टिमेटेड थी—यानी मैं आदमी जरा ज्यादा बुरा हं। यह सब हो सकता है। या हो सकता है, सुबह आप पाएं कि उसकी गाली पर सिर्फ आपको हंसी आ रही है, और कुछ भी नहीं हो रहा है। यह स्वाध्याय है. यह मैंने उदाहरण के लिए कहा। आपके जीवन की प्रत्येक छोटी-सी वत्ति में, छोटी-सी लहर में इसका उपयोग करें। यह शास्त्र आपके भीतर का खुलना शुरू हो जाएगा। पहले इस शास्त्र में गंदगी ही गंदगी मिलेगी, क्योंकि वही हमने इकट्ठी की है, वही हमारा संग्रह है। लेकिन जितनी वह गंदगी मिलेगी उतने आप स्वच्छ होते चले जाएंगे। क्योंकि गंदगी बचाना हो तो गंदगी को न जानना जरूरी है, और गंदगी को मिटाना हो तो जानना ही एकमात्र सूत्र है। जितना आप छिपाए रखते हैं अपनी गंदगी को, वह उतनी ही गहरी बनती जाती है, मजबूत होती चली जाती है। जब आप खुद ही उसको उखाड़ने लगते हैं और देखने लगते हैं तो उसकी पर्ते टने लगती हैं, उसकी जड़ें उखड़ने लगती हैं। - जाएं भीतर और आप पाएंगे कि बहुत गंदगी है लेकिन जितनी गंदगी आपको दिखाई पड़ेगी, एक और मजेदार और विपरीत घटना घटेगी और आपको लगेगा आप उतने ही स्वच्छ होते जा रहे हैं। जितने भीतर जाएंगे, उतनी गंदगी कम होती जाएगी। और इसलिए एक मजा और आने लगेगा कि भीतर गंदगी कम होती जाती है तो और भीतर जाने का रस और आनंद आने लगता है। भीतर कंकड़-पत्थर नहीं, हीरे-जवाहरात दिखाई पड़ने लगते हैं, तो दौड़ तेज हो जाती है। और एक घड़ी आएगी कि आप जब सच में भीतर पहंचेंगे -- सच में भीतर, क्योंकि यह जो भी है, यह भी बाहर और भीतर के बीच में है। इसे हम भीतर कह रहे हैं सिर्फ इसलिए कि स्वाध्याय के लिए इसे भीतर समझना जरूरी है। जितने आप भीतर जाएंगे, जिस दिन आप सेंटर पर पहुंचेंगे, केंद्र पर पहुंचेंगे, उस दिन कोई गंदगी नहीं रह जाएगी। उस दिन आप पाएंगे कि जीवन में उस स्वच्छता का अनुभव हुआ है जिसका अब कोई अंत नहीं है। आपने वह ताजगी पा ली जो अब बूढ़ी नहीं होगी। आपने उस निर्दोषता के तल को छू लिया जिसको कोई कालिमा स्पर्श नहीं कर सकती है। आप उस प्रकाश को पा लिए जहां कोई 308 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340016
Book TitleMahavir Vani Lecture 16 Vaiyavruttya aur Swadhyay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size79 MB
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