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________________ महावीर-वाणी भाग : 1 मेरे पास लोग आते हैं। जब कोई मेरे पास आता है और वह कहता है-आज आप बहुत अच्छा बोले, तो मैं जानता हूं कि आज क्या हुआ। आज यह हुआ कि वह अपने को भूल गए, और कुछ नहीं हुआ—आत्म-विस्मरण हुआ। आज घण्टेभर उनको अपनी याद न रही इसलिए वे कह रहे हैं कि बहुत अच्छा बोले। घण्टेभर उनका मनोरंजन इतना हुआ कि उनको अपना पता भी न रहा। पंद्रह वर्ष से निरंतर सुबह-सांझ मैं बोलता रहा हूं। एक भी आदमी नहीं है वह, जो आकर कहता हो-कि आप आज बहुत ठीक बोले। वह कहता है-बहुत अच्छा बोले हैं। क्योंकि अगर ठीक बोले तो कुछ करना पड़ेगा। अच्छा बोले तो हो चुकी है बात। नहीं कहता कोई आदमी मुझसे कि सत्य बोले-सुखद बोले! सत्य बोले, तो बेचैनी पैदा होगी। सुखद बोले, बात खत्म हो गई। सुख मिल चुका। लेकिन सुख आपको कब मिलता है वह मैं जानता हूं। जब भी आप अपने को भूलते हैं तभी सुख मिलता है चाहे सिनेमा में भूलते हों; चाहे संगीत में भूलते हों; चाहे कहीं सुनकर भूलते हों; चाहे पढ़कर भूलते हों; चाहे सेक्स में भूलते हों; चाहे शराब में भूलते हों। आपका सुख मुझे भलीभांति पता है कि कब मिलता है जब आप अपने को भूलते हैं, तभी मिलता है। लेकिन जब आप अपने को भलते हैं तभी स्वाध्याय बंद होता है। जब आप अपने को स्मरण करते हैं तब स्वाध्याय शरू होता है। तो जब मैं बोल रहा हूं—एक प्रयोग करें, यहीं और अभी सिर्फ बोलनेवाले पर ही ध्यान मत रखें, ध्यान को दोहरा कर दें, डबल एरोड, दोहरे तीर लगा दें ध्यान में-एक मेरी तरफ और एक अपनी तरफ। सुननेवाले का भी स्मरण रहे, वह जो कुर्सी पर बैठा है, वह जो आपकी हडी-मांस-मज्जा के भीतर छिपा है, जो कान के पीछे खडा है, जो आंख के पीछे देख रहा है, उसका भी स्मरण रहे। रिमेंबर, उसको स्मरण रखें। कोई फिक्र नहीं कि उसके स्मरण करने में अगर मेरी कोई बात चूक भी जाए, क्योंकि मेरी इतनी बातें सुन ली उनसे कुछ भी नहीं हुआ, और चूक जाएगा तो कोई हर्ज होनेवाला नहीं है। लेकिन उसका स्मरण रखें, वह जो भीतर बैठा है, सुन रहा है, देख रहा है, मौजूद है। उसकी प्रेजेंस अनुभव करें। हड्डी, मांस, कान, आंख के भीतर वह जो छिपा है, वह अनुभव करें, वह मालूम पड़े। ध्यान उस पर जाए तो आप हैरान होंगे, तब आपको जो मैं कह रहा हूं वह सुखद नहीं, सत्य मालूम पड़ना शुरू होगा। __ और तब जो मैं कह रहा हूं वह आपके लिए मनोरंजन नहीं, आत्म-क्रांति बन जाएगा। और तब जो मैं कह रहा हूं, आपने सिर्फ सुना ही नहीं, जिया भी, जाना भी। क्योंकि जब आप भीतर की तरफ उन्मुख होकर खड़े होंगे तो आपको पता लगेगा कि जो मैं कह रहा हूं वह आपके भीतर छिपा पड़ा है। उससे ताल-मेल बैठना शुरू हो जाएगा। जो मैं कह रहा हूं वह आपको दिखाई भी पड़ने लगेगा कि ऐसा है। अगर मैं कह रहा हूं कि क्रोध जहर है, तो मेरे सुनने से वह जहर नहीं हो जाएगा, लेकिन अगर आप अपने प्रति जाग गए उसी क्षण और आपने भीतर झांका, तो आपके भीतर काफी जहर इकट्ठा है क्रोध का-रिजर्वायर है, वह दिखाई पड़ेगा। अगर वह दिख जाए मेरे बोलते वक्त तो मैंने जो कहा वह सत्य हो गया। क्योंकि उसका पैरेलल, वास्तविक सत्य मेरे शब्द के पास जो होना चाहिए था, वह आपके अनुभव में आ गया। तब शब्द कोरा शब्द न रहा, तब आपके भीतर सत्य की प्रतीति भी हुई। सुनते वक्त बोलनेवाले पर कम ध्यान रखें, सुननेवाले पर ज्यादा ध्यान रखें-सुननेवालों पर नहीं, सुननेवाले पर। सुननेवालों पर भी लोग ध्यान रख लेते हैं। देख लेते हैं आस-पास कि किस-किस को जंच रहा है। मुझे वैसे लोग भी आकर कहते हैं आज बहुत ठीक हुआ। मैं उनसे पूछता हूं-क्या बात हुई? वे कहते हैं - कई लोगों को जंचा। वे आसपास देख रहे हैं कि किस किसको जंच रहा है। और कई लोग ऐसे हैं, जब तक दूसरों को न जंचे, उनको नहीं जंचता। बड़ा म्यूचुअल नानसेंस-पारस्परिक मूर्खता चलती है। देख लेते हैं आसपास कि जंच रहा है तो उनको भी जंचता है। और उनको पता नहीं है कि बगलवाला उनको देखकर, उसको भी जंचता है। 304 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340016
Book TitleMahavir Vani Lecture 16 Vaiyavruttya aur Swadhyay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size79 MB
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