________________ विनय : परिणति निरअहंकारिता की आप दूसरे को जब तक श्रेष्ठ देख सकते हैं, यू कैन कम्पेयर, आप तुलना कर सकते हैं। आप कहते हैं कि यह आदमी श्रेष्ठ है क्योंकि मैं चोरी करता हूं, यह आदमी चोरी नहीं करता। लेकिन तब आप इस बात को देखने से कैसे बचेंगे कि कोई आदमी आपसे भी ज्यादा चोर हो। आप कह सकते हैं—यह आदमी साधु है, लेकिन तब आप यह देखने से कैसे बचेंगे कि दूसरा आदमी असाधु है। जब तक आप साधु को देख सकते हैं, तब तक असाधु को देखना पड़ेगा। और जब तक आप श्रेष्ठ को देख सकते हैं तब तक अश्रेष्ठ आपकी आंखों में मौजूद रहेगा। तुलना के दो पलड़े होते हैं। ___ इसलिए मैं नहीं मानता हूं कि महावीर का यह अर्थ है कि अपने से श्रेष्ठजनों को आदर ... क्योंकि फिर निकृष्टजनों को अनादर देना ही पड़ेगा। यह बहुत मजेदार बात है। यह हमने कभी नहीं सोचा। हम इस तरह सोचते नहीं। और जीवन बहत जटिल है और हमारा सोचना बहुत बचकाना है। हम कहते हैं श्रेष्ठजनों को आदर। लेकिन निकृष्ट जन फिर दिखाई पड़ेंगे। जब आप सीढ़ियों पर खड़े हो गए तब पक्का मानना, कि आपको जब आपसे आगे कोई सीढ़ी पर दिखाई पड़ेगा तो जो पीछे है वह कैसे दिखाई न पड़ेगा। और अगर पीछे का दिखाई पड़ना बंद हो जाएगा तो जो आपके आगे है, वह आपसे आगे है यह आपको कैसे मालूम पड़ेगा? वह पीछे की तुलना में ही आगे मालूम पड़ता है। अगर दो ही आदमी खड़े हैं तो कौन आगे है, कौन है आगे? मुल्ला के जीवन में बड़ी प्रीतिकर एक घटना है। कुछ विद्यार्थियों ने आकर मुल्ला को कहा कि कभी चलकर हमारे विद्यापीठ में हमें प्रवचन दो। मुल्ला ने कहा-चलो अभी चलता हूं, क्योंकि कल का क्या भरोसा? और शिष्य बड़ी मुश्किल से मिलते हैं। मुल्ला ने अपना गधा निकाला, जिस पर वह सवारी करता था, लेकिन गधे पर उल्टा बैठ गया। बाजार से यह अदभुत शोभा यात्रा निकली। मुल्ला गधे पर उल्टा बैठा, विद्यार्थी पीछे। __ थोड़ी देर में विद्यार्थी बेचैन होने लगे। क्योंकि सड़क के लोग उत्सुक होने लगे और मुल्ला के साथ-साथ विद्यार्थी भी फंस गए। लोग कहने लगे-यह क्या मामला है? यह किस पागल के पीछे जा रहे हो? तुम्हारा दिमाग खराब है? आखिर एक विद्यार्थी ने हिम्मत जुटाकर कहा कि मुल्ला, यह क्या ढंग है बैठने का? आप कृपा करके सीधे बैठ जाएं। तुम्हारे साथ हमारी भी बदनामी हो रही है। मुल्ला ने कहा-लेकिन मैं सीधा बैलूंगा तो बड़ी अविनय हो जाएगी। उसने कहा-कैसे अविनय? मुल्ला ने कहा- अगर मैं तुम्हारी तरफ पीठ करके बैठू तो तुम्हारा अपमान होगा, और अगर मैं तुम्हारी तरफ पीठ करके न बैठू तो तुम मेरे आगे चलो और मेरा गधा पीछे चले तो मेरा अपमान होगा। दिस इज द ओनली वे टु कम्रोमाइज। कि मैं गधे पर उल्टा बैलूं, तुम्हारे आगे चलं, हम दोनों के मुंह आमने-सामने रहें। इसमें दोनों की इज्जत की रक्षा है। और लोगों को कहने दो जो कह रहे हैं। हम अपनी इज्जत बचा रहे हैं दोनों। ये जो हमारी विनय की धारणाएं हैं, श्रेष्ठजन कौन है, आगे कौन चल रहा है, यह निश्चित ही निर्भर करेंगी कि पीछे कौन चल रहा है। और जितना आप अपने श्रेष्ठजन को आदर देंगे, उसी मात्रा में आप अपने से निकृष्ट जन को अनादर देंगे। मात्रा बराबर होगी, क्योंकि जिंदगी प्रति वक्त संतुलन करती है। अन्यथा बेचैनी पैदा हो जाती है। तो जब आप एक साधु खोजेंगे, तो निश्चित रूप से आप एक असाधु को खोजेंगे, और तुलना बराबर हो जाएगी। जब भी आप एक भगवान खोजेंगे, तब आप एक भगवान खोजेंगे जिसकी निंदा आपको अनिवार्य होगी। जो लोग महावीर को भगवान मानते हैं, वे बुद्ध को भगवान नहीं मान सकते; वे कृष्ण को भगवान नहीं मान 275 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.