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________________ विनय : परिणति निरअहंकारिता की मालूम पड़ता है। जहां से भी निकलता हूं, वहीं लोग घूर-घूरकर देखते हैं। आपका विश्लेषण क्या है? मनोवैज्ञानिक ने कहा-ऐसा मालूम पड़ता है कि आप अदृश्य वस्त्र पहने हुए हैं, दिखाई न पड़नेवाले वस्त्र पहने हुए हैं। शायद उन्हीं वस्त्रों को देखने के लिए लोग घर-घरकर देखते होंगे। मुल्ला ने कहा-बिलकुल ठीक है। तुम्हारी फीस क्या है? मनोवैज्ञानिक ने सोचा ऐसा आदमी, इससे फीस ठीक से ले लेनी चाहिए। उसने सौ रुपए फीस के बताए / मुल्ला ने खीसे में हाथ डाला, नोट गिने, दिए। मनोवैज्ञानिक ने कहालेकिन हाथ में कुछ भी नहीं है। मुल्ला ने कहा-यह अदृश्य नोट हैं। ये दिखाई नहीं पड़ते। घूर-घूरकर देखो तो दिखाई पड़ सकते हैं। आदमी खुद नग्न घूमता हो बाजार में तो भी शक होता है कि दूसरे लोग घूर-घूरकर क्यों देखते हैं? और अपने घर से वह दूरबीन लगाकर आधा मील दूर किसी की खिड़की में देख सकता है और कह सकता है कि वह स्त्री मुझे प्रलोभित कर रही है। हम सब ऐसे ही हैं। हम सबका ताल-मेल ऐसा ही है व्यक्तित्व का। तो विनय तो कैसे पैदा होगी? विनय के पैदा होने का कोई उपाय नहीं है। ब कोई किसी की हत्या भी कर देता है तो वह यह नहीं मानता कि हत्या में मैं अपराधी हैं। वह मानता है कि उस आदमी ने ऐसा काम ही किया था कि हत्या करनी पड़ी। दोषी वही है। ___ मुल्ला ने तीसरी शादी की थी। तीसरी पत्नी घर में आयी तो दो बड़ी-बड़ी तस्वीरें देखकर उसने पूछा कि ये तस्वीरें किसकी हैं? मुल्ला ने कहा—मेरी पिछली दो पत्नियों की। मुसलमान घर में तो चार पत्नियां तो हो ही सकती हैं। उसने पूछा-लेकिन वे हैं कहां? मुल्ला ने कहा-अब वे कहां? पहली मर गयी मशरूम पायज़निंग से। उसने कुकुरमुत्ते खा लिए जोजहरीले थे। उसने पूछा- और दूसरी कहां है? मुल्ला ने कहा-वह भी मर गयी। फ्रैक्चर आफ द स्कल, खोपड़ी के टूट जाने से। बट द फाल्ट वाज़ हर। शी वड नाट इट मशरूम्स / भूल उसकी ही थी। मैं कितना ही कहूं वह मशरूम खाने को, वह कुकुरमुत्ते खाने को राजी नहीं होती थी। तो खोपड़ी के टूटने से मर गयी। खोपड़ी मुल्ला ने तोड़ी, क्योंकि वह मशरूम नहीं खाती थी। मगर दोष उसका ही था, भूल उसकी ही थी। __ भूल सदा दूसरे की है। भूल शब्द ही दूसरे की तरफ तीर बनकर चलता है। वह कभी अपनी होती ही नहीं। और जब अपनी नहीं होती तो विनय का कोई भी कारण नहीं है। तो अहंकार, यह दूसरे की तरफ जाते हुए तीरों के बीच में निश्चिंत खड़ा होता है, बलशाली होता है। सघन होता है। इसलिए महावीर ने प्रायश्चित को पहला अंतर-तप कहा है कि पहले तो यह जान लेना जरूरी होगा कि न केवल मेरे कत्य गलत हैं बल्कि मैं ही गलत है। तीर सब बदल गए, रुख बदल गया। वे दूसरे की तरफ नहीं जाते, अपनी तरफ मुड़ गए। ऐसी स्थिति में हम्बलनेस, विनय को साधा जा सकता है। फिर भी महावीर ने निरअहंकारिता नहीं कही। महावीर कह सकते थे निरअहंकार, लेकिन महावीर ने इगोलैसनैस नहीं कही; कहा विनय। क्योंकि निरअहंकार नकारात्मक है और उसमें अहंकार की स्वीकृति है। अहंकार को इनकार करने के लिए भी उसका स्वीकार है। और जिसे हमें इनकार करने के लिए भी स्वीकार करना पड़े, उसका इनकार किया नहीं जा सकता। जैसे कोई आदमी यह नहीं कह सकता कि मैं मर गया हूं क्योंकि मैं मर गया हूं, यह कहने के लिए मैं हूं जिंदा, इसे स्वीकार करना पड़ेगा। जैसे कोई आदमी यह नहीं कह सकता कि मैं घर के भीतर नहीं हूं क्योंकि मैं घर के भीतर नहीं हूं, यह कहने के लिए भी मुझे घर के भीतर होना पड़ेगा। __ निरअहंकार की साधना में यही भूल होती है कि अहंकारी मैं हूं, यह स्वीकार करना पड़ता है और इस अहंकार को निरअहंकार में बदलने की कोशिश करनी पड़ती है। बहुत डर तो यही है कि वह अहंकार ही अपने ऊपर निरअहंकार के वस्त्र ओढ़ लेगा और कहेगा 273 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340015
Book TitleMahavir Vani Lecture 15 Vinay Parinati Nirahankarita ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size83 MB
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