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________________ विनय : परिणति निरअहंकारिता की नहीं रह जाता। और जब आप दुख नहीं पाते तो जो आप पाते हैं वही आनंद है। ___ जीसस ने कहा है, अपने शत्रुओं को भी प्रेम करो। नीत्शे ने जीसस के इस वक्तव्य पर आलोचना करते हुए लिखा है कि इसका तो मतलब यह हुआ कि आप शत्रु को तो देखते ही हैं; शत्रु को प्रेम करो, शत्रुता तो दिखाई ही पड़ती है शत्रु में। और जब शत्रुता दिखाई पड़ती है तो प्रेम कैसे करोगे? उसका वक्तव्य तर्कपूर्ण है, लेकिन सम्यक नहीं है। नीत्शे जो कह रहा है वह तर्कयुक्त है, फिर भी सत्य नहीं। जीसस अगर उत्तर दे सकें तो वे यही कहेंगे कि माना कि शत्रुता दिखती है, लेकिन फिर भी प्रेम करो क्योंकि शत्रुता जहां दिखती है वह उसका व्यवहार है और जो उसके भीतर छिपा है वह उसका अस्तित्व है। हमारा सम्मान अस्तित्व के लिए है। वह बेशर्त है। माना कि वह गाली दे रहा है, पत्थर मार रहा है. हत्या करने की कोशिश कर रहा है, वह ठीक है। यह वह कर रहा है. यह वह जाने। इस संबंध में यह भी आपको याद दिला दं, उपयोगी होगा कि महावीर, बुद्ध या कृष्ण इन सबकी चिंतना में बहुत-बहुत फासले हैं, बहुत भेद हैं-होंगे ही। जब भी किसी व्यक्ति से सत्य उतरेगा तो वह नए आकार लेता है, उस व्यक्ति के आकार लेता है। निराकार सत्य तो उतर नहीं सकता। जब किसी से उतरता है तो उस व्यक्ति का आकार ले लेता है। लेकिन एक बहुत अदभुत बात है, इस पृथ्वी पर भारत में पैदा हए समस्त धर्म एक सिद्धांत के मानने में सहमत हैं, वह है कर्म। बाकी सब मामले में भेद है। बडे-बड़े मामलों में भेद है। परमात्मा है या नहीं? हिंदू कहेंगे, है, जैन कहेंगे, नहीं है। आत्मा है या नहीं? तो जैन और हिंदू कहते हैं, है; बुद्ध कहते हैं, नहीं है। इतने बड़े मामलों में फासला है। लेकिन एक मामले में, जो हमारी नजर में भी नहीं आता और जो इन सबसे ज्यादा कीमती है, इसीलिए उसमें फासला नहीं है। वह सेंट्रल है, केंद्रीय है। परिधि पर झगड़े हो सकते हैं। वह है, कर्म का विचार। उसमें कोई फर्क नहीं है। ये सारे धर्म इस देश में पैदा हए हैं, कर्म के विचार से राजी हैं। बुद्ध जो आत्मा से नहीं मानते, परमात्मा को नहीं मानते, वे भी कहते हैं, कर्म है। महावीर परमात्मा को नहीं मानते, वे भी कहते हैं, कर्म है। हिंदू परमात्मा को भी मानते हैं, आत्मा को भी मानते हैं, वे भी कहते हैं, कर्म है। यह कर्म की, इस विनय के संदर्भ में एक बात आपको याद दिला देनी जरूरी है कि जब भी कोई कुछ कर रहा है वह अपने कर्मों के कारण कर रहा है, आपके कारण नहीं। और जो आप कर रहे हैं वह अपने कर्मों के कारण कर रहे हैं, उसके कारण नहीं। अगर यह खयाल में आ जाए तो वह विनय सहज ही उतर आएगी। एक आदमी गाली दे रहा है, तो दो वजह हो सकती है इसके विश्लेषण में। एक आदमी मेरे पास आता है और मुझे गाली देता है तो इसे मैं दो तरह से जोड़ सकता हूं कि या तो वह इसलिए गाली देता है कि वह मुझे गाली देने योग्य आदमी मानता है। गाली को मैं अपने से जोडूं / और एक रास्ता यह है कि आदमी इसलिए गाली देता है कि उसके अतीत के सब कर्मों ने वह स्थिति पैदा कर दी है कि उसमें गाली पैदा होती है। तब मैं अपने से नहीं जोड़ता, उसके कर्मों से जोड़ता हूं। __ अगर मैं अपने से जोड़ता हूं तो बहुत मुश्किल है विनय को साधना। कैसे सधेगी? यह आदमी सामने गाली दे रहा है, इसके प्रति मैं कैसे आदर करूं? मन यह कहेगा कि अगर कोई गाली दे, तुम आदर करो तो तुम उसको गाली देने के लिए और निमंत्रण दे रहे हो। अगर कोई गाली दे और हम उसे आदर करें तो हम उसको और प्रोत्साहन दे रहे हैं। तर्क निरंतर यह कहता है कि हम प्रोत्साहन दे रहे हैं। इससे तो वह और गाली देगा। और यह भी हम मान लें कि हमें गाली देगा तो कोई हर्ज नहीं, लेकिन हमारे प्रोत्साहन से वह दूसरों को भी गाली देगा। क्योंकि आदमी को रस लग जाए और उसे पता चल जाए कि गाली देने से आदर मिलता है तो हमें दें, तब तक भी ठीक, लेकिन वह दूसरों को भी देगा। अगर किसी आदमी को यह पता चल जाए कि यहां मारपीट करने से लोग सम्मान देते हैं, साष्टांग दंडवत करते हैं तो वह औरों को भी मारेगा तो उसका जिम्मा भी हम पर आएगा, क्योंकि हम न आदर देते उसे, न वह मारने के 283 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340015
Book TitleMahavir Vani Lecture 15 Vinay Parinati Nirahankarita ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size83 MB
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