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________________ महावीर-वाणी भाग : 1 पछताएंगे कि इस आदमी का पैर क्यों छुआ? मुंहपट्टी नीचे रख दे-अपने मंदिर में, अपने स्थानक में ठहरने न देंगे। मुंहपट्टी लगा ले-स्वागत! आप मुंहपट्टी को देख रहे हैं कि आदमी को? लगता ऐसा है कि मुंहपट्टी ही असली चीज है। यानी ऐसा नहीं कहना चाहिए, आदमी मुंहपट्टी लगाए हुए है, ऐसा कहना चाहिए कि मुंहपट्टी आदमी को लगाए हुए है। क्योंकि असली चीज मुंहपट्टी है। आखिर में निर्णय वही करती है। आदमी तो निर्णायक है नहीं। अगर बुद्ध भी आ जाएं आपके मंदिर में तो आप उनको उतना आदर नहीं देंगे जितना मुंहपट्टी लगाए हुए एक बुद्धू को देंगे। क्योंकि मुंहपट्टी कहां है? ___ यह तरकीबें हमने क्यों खोजी हैं? इसका कारण है। क्योंकि कोई मापदंड का उपाय नहीं है। इनसे हम रास्ता बना लेते हैं। तौलने का कोई उपाय नहीं है, यह आपकी मजबूरी है। यह आदमी की मजबूरी है कि श्रेष्ठ कौन है, इसके लिए कोई तराजू नहीं है। तो हम फिर ऊपरी चिन्ह बना लेते हैं, उनसे तौलने में आसानी हो जाती है। पीछे के आदमी की हम बकवास छोड़ देते हैं। हमारे लिए तो निपटारा हो गया कि यह आदमी साधु है, पैर छुओ, घर जाओ, विनय करो। लेकिन, महावीर इस तरह की बचकानी बात नहीं कह सकते। यह चाइल्डिश है। महावीर यह नहीं कह सकते हैं कि तुम श्रेष्ठ को आदर देना, क्योंकि श्रेष्ठ को आदर कैसे दोगे? श्रेष्ठ कौन हैं, तुम कैसे जानोगे? और जब तुम श्रेष्ठ को जानने जाओगे तो तुम्हें निकृष्ट को जानना पड़ेगा। और जब तुम श्रेष्ठ की परीक्षा करोगे तो तुम कैसे परीक्षा करोगे? उसके सब पापों का हिसाब-किताब रखना पड़ेगा कि रात में पानी तो नहीं पी लेता; कि छिपाकर कुछ खा तो नहीं लेता; कि साबुन की बटिया तो नहीं अपने झोले में दबाए हुए है; टूथपेस्ट तो नहीं करता है; यह सब रखना पड़ेगा पता! यह सब पता रखना पड़ेगा और यह सब पता वही रख सकता है जिसका निंदा में रस हो, जो दूसरे को निकृष्ट सिद्ध करने चला हो। यह वह आदमी नहीं कर सकता जो विनयपूर्ण है। इससे क्या प्रयोजन है उसे कि कौन आदमी टूथपेस्ट रखता है कि नहीं रखता है। इसका चिंतन ही बताता है कि यह जो आदमी सोच रहा है उसमें विनय नहीं है। महावीर यह नहीं कहते। महावीर यह कहते हैं कि विनय एक आंतरिक गुण है। बाहर से उसका कोई संबंध नहीं है। अनकंडीशनल है, बेशर्त है। वह यह नहीं कहता कि तुम ऐसे होओगे तो मैं आदर दूंगा। वह यह कहता है कि तुम हो, पर्याप्त है। मैं तुम्हें आदर दूंगा क्योंकि आदर आंतरिक गुण है और आदर मनुष्य को अंतरात्मा की तरफ ले जाता है। मैं तुम्हें आदर दूंगा बेशर्त। तुम शराब पीते हो कि नहीं पीते हो, यह सवाल नहीं है; तुम जीवन हो, यह काफी है। और यह पूरा अस्तित्व तुम्हें जिला रहा है। सूरज तुम्हें रोशनी दे रहा है, वह इनकार नहीं करता क्योंकि तुम आदमी अच्छे नहीं हो। जब यह पूरा अस्तित्व तुम्हें स्वीकार करता है तो मैं कौन हूं जो तुम्हें अस्वीकार करूं! तुम हो, इतना काफी है। मैं तुम्हें आदर देता हूं। मैं तुम्हें सम्मान देता हूं। ___ यह जीवन के प्रति सहज सम्मान का नाम विनय है-अकारण, खोजबीन के बिना, क्योंकि खोजबीन हो नहीं सकती। वह जो करता है, वह आदमी विनीत नहीं होता–बेशर्त। अगर मैं कहूं कि तुम मेरी शर्ते पूरी करो इतनी, तब मैं तुम्हें आदर दूंगा; तो मैं उस आदमी को आदर नहीं दे रहा हूं। मैं अपनी शर्तों को आदर दे रहा हूं। और जो आदमी मेरी शर्ते पूरी करने को राजी हो जाता है वह आदर योग्य नहीं है, वह गुलाम है। वह आदर पाने के लिए ही बेचारा शर्ते पूरी करने को राजी है। हम अपने साधुओं से कहते हैं, तुम ऐसा करो, पैदल चलो, इधर मत जाओ, उधर मत जाओ तो हम तुम्हें आदर देंगे-ये सब अनकही शर्ते हैं। अगर वह उनमें गड़बड़ करता है, आदर विलीन हो जाता है। अगर इनको मानकर चलता है, आदर जारी रहता है। और इसलिए एक दुर्घटना घटती है कि साधुओं में जो प्रतिभा होनी चाहिए वह धीरे-धीरे खो जाती है। और साधुओं की तरफ सिर्फ जड़ बुद्धि लोग उत्सुक हो पाते हैं। 280 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.340015
Book TitleMahavir Vani Lecture 15 Vinay Parinati Nirahankarita ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size83 MB
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