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________________ महावीर-वाणी भाग : 1 बीमारी के लोग पत्नी को देखकर ही हमला करने को उत्सुक हो जाते हैं, सिर तोड़ने को उत्सुक हो जाते हैं, घसीटने को उत्सुक हो जाते हैं, मारने को उत्सुक हो जाते हैं, आक्रामक हो जाते हैं। वे ही असली साइकोपैथ हैं, साइकोपैथिक हैं। यह तो कुछ भी नहीं, यह तो ठीक है। इसमें कुछ घबराने की बात नहीं। यह तो अधिक लोगों के लिए यही है। मुल्ला बड़ा उत्सुक हो गया, कुर्सी से आगे झुक आया। उसने कहा कि डाक्टर, ऐनी चांस आफ माई कैचिंग दैट डिसीज़, साइकोपैथी? कोई मौका है कि मुझे वह बीमारी लग जाए? जिसको आप साइकोपैथी कह रहे हैं? मैं भी घर जाऊं और लट्ठ उठाकर सिर खोल दूं उसका? मन तो मेरा भी यही करता है। लेकिन उसके सामने जाकर मेरे सब मंसूबे गड़बड़ हो जाते हैं। और दिन की तो बात दूर, वर्षों से मैं एक दुःस्वप्न, एक नाइट मेयर देख रहा हूं। वह मैं आपसे कह देना चाहता हूं। कुछ इलाज है? मनोवैज्ञानिक ने कहा-कौन-सा दुःस्वप्न? तो उसने कहा-मैं रात निरंतर अपनी पत्नी को देखता हूं, और उसके पीछे खड़े एक बड़े राक्षस को देखता हूं। मनोवैज्ञानिक उत्सुक हुआ। उसने कहा-इंटरेस्टिंग। और जरा विस्तार से कहो। तो नसरुद्दीन ने कहा कि लाल आंखें, जिनसे लपटें निकल रही हैं, तीर बड़े-बड़े, लगता है कि छाती में भोंक दिए जाएंगे। हाथों में नाखून ऐसे हैं जैसे खंजर हों। बड़ी घबराहट पैदा होती है। मनोवैज्ञानिक ने कहा-घबराने वाला है, भयंकर है। नसरुद्दीन ने कहा-दिस इज नथिंग, वेट, टिल आई टैल यू अबाउट दी मान्सटर। जरा रुको, जब तक मैं राक्षस के संबंध में न बताऊं तब तक कुछ मत कहो। यह तो मेरी पत्नी है। उसके पीछे जो राक्षस खड़ा रहता है, अभी उसका तो मैंने वर्णन ही नहीं किया। उसने उसका भी वर्णन किया। उसके भयंकर दांत, लगता है कि चपेट डालेंगे, पीस डालेंगे। उसका विशालकाय शरीर, उसके सामने बिलकुल कीड़ा-मकोड़ा हो जाता हूं। और उसकी घिनौनी बात और उसके शरीर से झरती हुई घिनौनी चीजें और रस ऐसी घबराहट भर देते हैं कि दिनभर वह मेरा पीछा करता है। मनोवैज्ञानिक ने कहा-बहुत भयंकर, बहुत घबरानेवाला। नसरुद्दीन ने कहा कि वेट, टिल आई टैल यू दैट दि मान्सटर इज नो वन एल्स दैन मी। जरा रुको, वह राक्षस और कोई नहीं, और घबरानेवाली बात यह है कि जब मैं गौर से देखता हूं तो पाता हूं, मैं ही हूं। और यह दुःस्वप्न वर्षों से चल रहा है। जब तक चित्त आक्रामक है, तब तक दूसरे में भी राक्षस दिखाई पड़ेगा। और अगर गौर से देखेंगे तो आक्रामक चित्त अपने को भी राक्षस ही पाएगा। और हम सब आक्रामक हैं। हम सब दुःस्वप्न में जीते हैं। हमारी जिंदगी एक नाइट मेयर है, एक लंबी सड़ांध है, एक लंबा रक्तपात से भरा हुआ नाटक, एक लंबा नारकीय दृश्य / मुल्ला मरकर जब स्वर्ग के द्वार पर पहुंचा तो स्वर्ग के पहरेदार ने पूछा-कहां से आ रहे हो? उसने कहा-मैं पृथ्वी से आ रहा हूं। उस द्वारपाल ने कहा-वैसे तो नियम यही था कि तुम्हें नरक भेजा जाए, लेकिन चूंकि तुम पृथ्वी से आ रहे हो, नरक तुम्हें काफी सुखद मालूम होगा। नरक तुम्हें काफी सुखद मालूम होगा इसलिए कुछ दिन स्वर्ग में रुक जाओ, फिर तुम्हें नरक भेजेंगे ताकि नरक तुम्हें दुखद मालूम हो सके। तो मुल्ला को कुछ दिनों के लिए स्वर्ग में रोक लिया गया। क्योंकि सब सुख-दुख रिलेटिव हैं। मुल्ला ने बहुत कहा कि मुझे सीधे जाने दो। उस द्वारपाल ने कहा-यह नहीं हो सकता, क्योंकि नर्क तो अभी तुम्हें स्वर्ग मालूम होगा। तुम पृथ्वी से आ रहे हो सीधे। अभी कुछ दिन स्वर्ग में रह लो। जरा सुख अनुभव हो जाए, फिर तुम्हें नरक में डालेंगे। तब तुम्हें सताया जा सकेगा। 244 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340013
Book TitleMahavir Vani Lecture 13 Sanlinta Antar Tap ka Pravesh Dwar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size69 MB
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