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________________ महावीर-वाणी भाग : 1 तो नींद भी ले लेते हैं क्षण दो क्षण को, और गाड़ी चलाते रहते हैं। नींद भी ले लेते हैं। इसलिए रात को जो एक्सीडेंट होते हैं, कोई दो बजे और चार बजे के बीच होते हैं। ड्राइवर को पता भी नहीं चलता कि उसने झपकी ले ली। एक सेकेंड को वह डूब जाता है लेकिन उतनी देर को रोबोट काम को सम्भालता है। वह जो यंत्रवत हमारा चित्त है, वह काम को सम्भालता है। जितनी रोबोट के भीतर प्रवेश कर जाए कोई चीज, उतनी कुशल हो जाती है। और हम जन्मों-जन्मों से बाहर जाने के आदी हैं। वह हमारे यंत्र में समाविष्ट हो गयी है। बाहर जाना हमें ऐसा ही है जैसे पानी का नीचे बहना। उसके लिए हमें कुछ करना नहीं पड़ता। भीतर आना बड़ी यात्रा मालूम पड़ेगी। क्योंकि हमारे यंत्र मानव को कोई पता ही नहीं है कि भीतर कैसे आना है। हम इतने कुशल हैं बाहर जाने में कि हम बाहर ही खड़े हैं। हम भूल ही गए हैं कि भीतर आने की भी कोई बात हो सकती है। रोबोट की पर्ते हैं, इस यंत्र मानव की पर्ते हैं। ___ आबरी मैनन ने...एक भारतीय बाप और आंग्ल मां का बेटा है, आबरी नन। उसका पिता सारी जिंदगी इंग्लैंड में रहा। कोई बीस वर्ष की उम्र का था तब इंग्लैंड चला गया। वहीं शादी की, वहीं बच्चा पैदा हुआ। लेकिन आबरी मैनन ने लिखा है कि मेरी मां सदा मेरे पिता की एक आदत से परेशान रही-वह दिनभर अंग्रेजी बोलता था, लेकिन रात सपने में मलयालम-वह रात सपने में अपनी मातृभाषा ही बोलता था। साठ साल का हो गया है, तब भी। चालीस साल निरंतर होश में अंग्रेजी बोलने पर भी, रात सपना तो वह अपनी मातृभाषा में ही देखता था, जैसे कि स्वभावतः स्त्रियां परेशान होती हैं। क्योंकि वह पति सपने में भी क्या सोचता है, इसका भी पता लगाना चाहती हैं। तो आबरी मैनन ने लिखा है कि मेरी मां सदा चिंतित थी कि पता नहीं यह क्या सपने में बोलता है। कहीं किसी दूसरी स्त्री का नाम तो नहीं लेता मलयालम में? कहीं किसी दूसरी स्त्री में उत्सुकता तो नहीं दिखलाता? लेकिन इसका कोई उपाय नहीं था। सच यह है कि बचपन में जो भाषा हम सीख लेते हैं, फिर दूसरी भाषा उतनी गहरी रोबोट में कभी नहीं पहुंच पाती-कभी नहीं पहंच पाती। क्योंकि उसकी पहली पर्त बन जाती है। दूसरी भाषा अब कितनी ही गहरी जाए, उसकी पर्त दूसरी ही होगी, पहली नहीं हो सकती। उसका कोई उपाय नहीं है। इसलिए मनसविद कहते हैं कि हम सात साल में जो सीख लेते हैं, वह हमारी जिंदगीभर कोई पचहत्तर प्रतिशत हमारा पीछा करता है। उससे फिर छुटकारा नहीं है। वह हमारी पहली पर्त बन जाता है। इसलिए अगर सत्तर साल का बूढ़ा भी क्रोध में आ जाए तो वह सात साल के बच्चे जैसा व्यवहार करने लगता है क्योंकि रोबोट रिग्रेस कर जाता है। इसलिए क्रोध में आप बचकाना व्यवहार करते हैं। प्रेम में भी करते हैं, वह भी ध्यान रखना। जब कोई आदमी एक दूसरे के प्रति प्रेम से भर जाते हैं तो बहुत बचकाना व्यवहार करते हैं। उनकी बातचीत भी बचकानी हो जाती है। एक दूसरे के नाम भी बचकाने रखते हैं। प्रेमी एक दूसरे के नाम बचकाने रखते हैं। रिग्रेस हो गया। क्योंकि प्रेम का जो पहला अनुभव है वह सात साल में सीख लिया गया। अब उसकी पुनरुक्ति होगी। यह जो मैं कह रहा हूं कि हमारा बाहर जाने का व्यवहार इतना प्राचीन है-जन्मों-जन्मों का है कि हमें पता ही नहीं चलता कि हम बाहर जा रहे हैं, और हम बाहर चले जाते हैं। आप अकेले बैठे हैं, फौरन अखबार खींचकर उठा लेते हैं। आपको पता नहीं चलता, आपका रोबोट आपका यंत्र मानव कह रहा है-खाली कैसे बैठ सकते हैं, अखबार खींचो। उस अखबार को आप सात दफा पढ़ चुके हैं, सुबह से, फिर आठवीं दफे पढ़ रहे हैं, इसका बिना खयाल किए अब आप क्या पढ़ रहे हैं! वह रोबोट भीतर नहीं ले जाता, वह तत्काल बाहर ले जाता है। रेडियो खोलो, बातचीत करो, से संबंधित होना पता ही नहीं। तो इसका जरा ध्यान रखना पड़े, क्योंकि अति ध्यान रखें तो ही इसके बाहर हो सकेंगे। 238 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340013
Book TitleMahavir Vani Lecture 13 Sanlinta Antar Tap ka Pravesh Dwar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size69 MB
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