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________________ बाह्य-तप का चौथा चरण है - रस-परित्याग। परंपरा रस-परित्याग से अर्थ लेती रही है। किन्हीं रसों का, किन्हीं स्वादों का निषेध, नियंत्रण। इतनी स्थूल बात रस-परित्याग नहीं है। वस्तुतः सधना के जगत में स्थूल से स्थूल दिखाई पड़ने वाली बात भी स्थूल नहीं होती। कितने ही स्थूल शब्दों का प्रयोग किया जाए बात तो सूक्ष्म ही होती है। मजबूरी है कि स्थूल शब्दों का प्रयोग करना पड़ता है, क्योंकि सूक्ष्म के लिए कोई शब्द नहीं है। वह जो अन्तर्जगत है, वहां इशारे करने वाले कोई शब्द हमारे पास नहीं हैं। अन्तर्जगत की कोई भाषा नहीं है। इसलिए बाह्य जगत के ही शब्दों का प्रयोग करना मजबूरी है। उस मजबूरी से खतरा भी पैदा होता है क्योंकि तब उन शब्दों का स्थूल अर्थ लिया जाना शुरू हो जाता है। रस-परित्याग से यही लगता है कि कभी खट्टे का त्याग कर दो; कभी मीठे का त्याग कर दो कभी घी का त्याग कर दो; कभी कुछ और त्याग कर दो। रस-परित्याग से ऐसा प्रयोजन महावीर का नहीं है। महावीर का क्या प्रयोजन है, वह दो-तीन हिस्सों में समझ लेना जरूरी है। __पहली बात तो यह कि रस की पूरी प्रक्रिया क्या है? जब आप कोई स्वाद लेते हैं तो स्वाद वस्तु में होता है या स्वाद आपकी स्वाद इंद्रिय में होता है? या स्वाद स्वादेंद्रिय के पीछे वह जो आपका अनुभव करने वाला मन है, उसमें होता है? या स्वाद उस मन के साथ आपकी चेतना का जो तादात्म्य है उसमें होता है? स्वाद कहां है? रस कहां है? तभी परित्याग खयाल में आ सकेगा। जो स्थूल देखते हैं उन्हें लगता है कि स्वाद या रस वस्तु में होता है, इसलिए वस्तु को छोड़ दो। वस्तु में स्वाद नहीं होता, न रस होता है; वस्तु केवल निमित्त बनती है। और अगर भीतर रस की परी प्रक्रिया काम न कर रही हो तो वस्त निमित्त बनने में असमर्थ है। जैसे आपको फांसी की सजा दी जा रही हो और आपको मिष्ठान्न खाने को दे दिया जाए, तो भी मीठा नहीं लगेगा। मिष्ठान्न अब भी मीठा ही है, और जो मीठे को भोग सकता था, वह एकदम अनुपस्थित हो गया है। स्वादेंद्रिय अब भी खबर देगी क्योंकि स्वादेंद्रिय को कोई भी पता नहीं है कि फांसी लग रही है, न पता हो सकता है। स्वादेंद्रिय के संवेदनशील तत्व अब भी भीतर खबर प मिठाई मुंह पर है, जीभ पर है। लेकिन मन उस खबर को लेने की तैयारी नहीं दिखाएगा। मन भी उस खबर को ले ले तो मन के पीछे जो चेतना है उस का और मन के बीच का सेतु टूट गया है, संबंध टूट गया है। मृत्यु के क्षण में वह संबंध नहीं रह जाता। इसलिए मन भी खबर ले लेगा कि जीभ ने क्या खबर दी है, तो भी चेतना को कोई पता नहीं चलेगा। __ आपके व्यक्तित्व को बदलने के लिए हजारों वर्षों से, जब भी कोई बहुत उलझन होती है तो शाक ट्रीटमेंट का उपयोग करते रहे हैं चिकित्सक - जब भी कोई उलझन होती है तो आपको इतना गहरा धक्का देने का प्रयोग करते रहे हैं, शाक का, और उससे कई 211 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340012
Book TitleMahavir Vani Lecture 12 Ras Parityag aur Kaya Klesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size77 MB
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