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________________ महावीर-वाणी भाग : 1 बात है! इतना बेचैन है कि लगता है कि वह उठकर न चला जाए। हाथ पैर उसके सीधे नहीं हैं। फिर पादरी दूसरी आज्ञा पर आया –दाउ शैल्ट नाट कमिट एडल्टरी, व्यभिचार मत करना तुम / मुल्ला हंसने लगा। बड़ा प्रसन्न हुआ। बड़ा शांत और आनंदित दिखाई पड़ने लगा। पादरी और भी हैरान हुआ कि इसको हो क्या रहा है! जब सभा समाप्त हो गयी, उसने मुल्ला को पकड़ा और कोने में ले गया। और पूछा कि राज क्या है तुम्हारा? जब मैंने कहा-चोरी मत करना तो तुम बहुत परेशान थे। तुम्हारे माथे पर पसीना आ गया। और जब मैंने कहा-व्यभिचार मत करना तो तुम बड़े आनंदित हो गए। मुल्ला ने कहा कि जब आप नहीं मानते तो बताए देता हूं। जब आपने कहा चोरी मत करना तब मुझे खयाल आया कि मेरा छाता कोई चुरा ले गया। छाता दिखाई नहीं पड़ रहा, तो मैं मुसीबत में पड़ गया कि जरूर कोई चोर-मुझे गुस्सा भी बहुत आया कि यह कैसा चर्च है, जहां चोर इकट्ठे हैं। लेकिन जब आपने कहा कि व्यभिचार मत करना, तब मुझे फौरन खयाल आ गया कि रात में मैं छाता कहां छोड़ आया हूं-कोई हर्जा नहीं, कोई हर्जा नहीं।। __ आदमी के भीतर क्या हो रहा है, वह उसके बाहर देखकर पता लगाना बहुत मुश्किल है। आदमी के भीतर सूक्ष्म में वह जो घटित होता है वह बाहर के प्रतीकों से पकड़ना अत्यंत कठिन है। अकसर ऐ ना है कि महावीर के पास वे लोग भी इकट्ठे हो जाएंगे और जैसे-जैसे महावीर से फासला बढ़ता जाएगा, उनकी संख्या बढ़ती जाएगी। और एक वक्त आएगा कि महावीर के पीछे चलने वाली भीड़ में अधिक लोग वे होंगे जो उन बातों से उत्सुक हुए जिन बातों से उत्सुक नहीं होना चाहिए था। और जिन बातों से उत्सुक होना चाहिए था, उनका खयाल ही मिट जाएगा। क्योंकि जिन बातों से उत्सुक होना चाहिए वे गहन हैं, और जिन बातों से हम उत्सुक होते हैं वे ऊपरी हैं. बाहरी हैं। अब महावीर को लोगों ने देखा है कि अपने बाल उखाड़ रहे हैं, भूखे खड़े हैं, नग्न खड़े हैं, धूप-सर्दी, वर्षा में खड़े हैं, तो जिन लोगों को भी अपने को सताना है, महावीर की आड़ में वे बड़ी आसानी से कर सकते हैं। लेकिन महावीर अपने को सता नहीं रहे। काया-क्लेश का अर्थ महावीर के लिए सताना नहीं है। पर यह शब्द क्यों प्रयोग किया? महावीर का जो अर्थ है, वह यह है कि काया-क्लेश है। इसे थोड़ा समझें। शरीर दुख है, शरीर ही दुख है। शरीर के साथ सुख मिलता ही नहीं कभी, दुख ही मिलता है। शरीर के साथ कभी सुख मिलता ही नहीं, शरीर दुख ही देगा। इसलिए साधक जैसे ही आगे बढ़ेगा उसे शरीर से बहुत-से दुख दिखाई पड़ने शुरू हो जाएंगे जो कल तक दिखाई नहीं पड़ते थे। क्योंकि वह अपने मोह और भ्रमों में जी रहा था। डिसइल्यूजनमेंट होगा। मेरे पास लोग आते हैं, वे कहते हैं-जब से ध्यान शुरू किया तब से मन में बड़ी अशांति मालूम पड़ती है। ध्यान से अशांति नहीं हो सकती। अगर ध्यान से अशांति होती तो फिर शांति किस चीज से होगी? मैं जानता हूं, अशांति मालूम पड़ती है ज्यादा ध्यान करने पर। क्योंकि जो अशांति आपने कभी भी नहीं देखी थी अपने भीतर, वह ध्यान के साथ दिखाई पड़नी शुरू होगी। दिखती नहीं थी, इसलिए आप सोचते थे, है नहीं। जब दिखती तब पता चलता है कि है। इसलिए ध्यान के पहले अनुभव तो अशांति के बढ़ने के अनुभव हैं। जैसे-जै अशांति पूरी प्रगट होती है। एक घड़ी आएगी कि भय लगने लगेगा कि मैं पागल तो नहीं हो जाऊंगा! अगर आप उस घड़ी को पार कर गए तो अशांति समाप्त हो जाएगी। अगर आप उस घड़ी को पार नहीं किए तो आप वापस अपनी अशांति की दुनिया में फिर लौट जाएंगे, सोए हुए। ___ एक आदमी सोया है। उसे पता नहीं चलता कि पैर में दर्द है। जागता है तो पता चलता है। लेकिन जागने से दर्द नहीं होता, जागने से पता चलता है। प्रत्यभिज्ञा होती है। महावीर जानते हैं कि काया-क्लेश बढ़ेगा। जैसे ही कोई व्यक्ति साधना में उतरेगा, उसकी काया उसे और ज्यादा दुख देती हुई मालूम पड़ेगी। क्योंकि सुख तो देना बन्द हो जाएगा। सुख उसने कभी दिया नहीं था, सिर्फ 224 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340012
Book TitleMahavir Vani Lecture 12 Ras Parityag aur Kaya Klesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size77 MB
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