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________________ ऊणोदरी एवं वृत्ति-संक्षेप भूख कितनी है। तो पहले तो स्वाभाविक भूख खोजनी पड़े। इसीलिए अनशन को पहले रखा है। अनशन आपकी स्वाभाविक भूख को खोजने में सहयोगी होगा। जब आप बिलकुल भूखे रहेंगे -जब भूखे रहेंगे, लेकिन इस संकल्प पर आप पीछे चलेंगे तो आप थोड़े ही समय में पाएंगे कि आदत की भूख तो भूल गई क्योंकि वह असली भूख न थी। वह दो चार दिन पुकार कर आवाज दे दी कि भूख लगी है, ठीक समय पर। फिर दो-चार दिन आप उसकी नहीं सुनेंगे, वह शांत हो जाएगी। फिर आपके भीतर से स्वाभाविक भूख आवाज देगी। जब आप उसकी भी नहीं सुनेंगे तभी आपके भीतर का यंत्र रूपांतरित होगा और आप स्वयं को पचाने के काम में लगेंगे। ___ तो पहले आदत की भूख टूटेगी। वह तीन दिन में टूट जाती है, चार दिन में टूट जाती है; एक दो दिन किसी को आगे पीछे लगता है। फिर स्वाभाविक भूख की व्यवस्था टूटेगी और तब आप दूसरी व्यवस्था पर जाएंगे। लेकिन अनशन में आपको पता चल जाएगा कि झूठी आवाज क्या थी और सच्ची आवाज क्या थी। क्योंकि झूठी आवाज मानसिक होगी। ध्यान रहे, सेरिब्रल होगी। जब आपको झूठी भूख लगेगी तो मन कहेगा कि भूख लगी है। और जब असली भूख लगेगी तो पूरे शरीर का रोयां-रोयां कहेगा कि भूख लगी है। अगर झूठी भूख लगी है, अगर आप बारह बजे रोज दोपहर भोजन करते हैं तो ठीक बारह बजे लग जाएगी। लेकिन अगर किसी ने घड़ी एक घंटा आगे पीछे कर दी हो तो घड़ी में जब बारह बजेंगे तब लग जाएगी। आपको पता नहीं होना चाहिए कि अब एक बज गया है, और घड़ी में बारह ही बजे हों, तो आप एक बजे तक बिना भूख लगे रह जाएंगे। क्योंकि आदत की, मन की भूख मानसिक है, शारीरिक नहीं है। वह बाहर की घड़ी देखती रहती है, बारह बज गए, भूख लग गई। ग्यारह ही बजे हों असली में लेकिन घड़ी में बारह बजा दिए गए हों तो आपकी भूख का क्रम तत्काल पैदा हो जाएगा कि भूख लग गयी। मानसिक भूख मानसिक है; झूठी भूख मानसिक है। वह मन से लगती है, शरीर से नहीं। तीन चार दिन के अनशन में मानसिक भूख की व्यवस्था टूट जाती है। शारीरिक भूख शुरू होती है। आपको पहली दफा लगता है कि शरीर से भूख आ रही है। इसको हम और तरह से देख सकते __ मनुष्य को छोड़कर सारे पशु और पक्षियों की यौन व्यवस्था सावधिक है। एक विशेष मौसम में वे यौन पीड़ित होते हैं, कामातुर होते हैं; बाकी वर्षभर नहीं होते। सिर्फ आदमी अकेला जानवर है जो वर्षभर काम पीड़ित होता है। यह काम पीड़ा मानसिक है, मेंटल है। अगर आदमी भी स्वाभाविक हो तो वह भी एक सीमा में, एक समय पर कामातर होगा: शेष समय कामातरता नहीं होगी। लेकिन आदमी ने सभी स्वाभाविक व्यवस्था के ऊपर मानसिक व्यवस्था जड़ दी है। सभी चीजों के ऊपर उसने अपना इंतजाम अलग से कर लिया है। वह अलग इंतजाम हमारे जीवन की विकति है. और हमारी विक्षिप्तता है। न तो आपको पता चलता है कि आप में कामवासना जगी है, वह स्वाभाविक है, बायोलाजिकल है या साइकोलाजिकल है! आपको पता नहीं चलता क्योंकि बायोलाजिकल कामवासना को आपने जाना ही नहीं है। इसके पहले कि वह जगती, मानसिक कामवासना जग जाती है। छोटे-छोटे बच्चे जो कि चौदह वर्ष में जाकर बायोलाजिकली मेच्योर होंगे, जैविक अर्थों में कामवासना के योग्य होंगे, लेकिन चौदह वर्ष के पहले ही मानसिक वासना के वे बहुत पहले योग्य और समर्थ हो गए होते हैं। सुना है मैंने कि एक बूढ़ी औरत अपने नाती-पोतों को लेकर अजायबघर में गयी। वहां स्टार्क नाम के पक्षी के बाबत यूरोप में कथा है, बच्चों को समझाने के लिए कि जब घर में बच्चे पैदा होते हैं तो बड़े-बूढ़ों से बच्चे पूछते हैं कि बच्चे कहां से आए? तो बड़े-बूढ़े कहते हैं—यह स्टार्क पक्षी ले आया। वहां अजायबघर में स्टार्क पक्षी के पास वह बूढ़ी गयी। उन बच्चों ने पूछा-यह कौन-सा पक्षी है? उस बूढ़ी ने कहा-यह वही पक्षी है जो बच्चों को लाता है। छोटे-छोटे बच्चे हैं, वे एक दूसरे की तरफ देखकर हंसे, और 193 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340011
Book TitleMahavir Vani Lecture 11 Unodari evam Vrutti Sankshep
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size75 MB
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