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________________ महावीर-वाणी भाग : 1 है और आंख खोलेंगे और पाएंगे दीये का वर्तुल, प्रकाश उतना का उतना है। क्योंकि दीये का वर्तुल मूल नहीं है, मूल उसकी बाती है। उसकी बाती नीचे छोटी होती जाए तो बाहर प्रकाश का वर्तुल छोटा होता जाता है। बाती डूब जाए, शून्य हो जाए तो वर्तुल खो जाता है। __ हम सबके भीतर, जो बाहर फैलाव दिखाई पड़ता है - हमारे भीतर उसकी बाती है। प्रत्येक हमारे केन्द्र पर, वासना के केन्द्र पर, हम कितना फैलाव कर रहे हैं, उससे बाहर फैलता है। बाहर तो सिर्फ प्रदर्शन है। असली बात तो भीतर है। भीतर सिकुड़ाव हो जाता है, बाहर सब सिकुड़ जाता है। ध्यान रहे, जो बाहर से सिकुड़ने में लगता है वह गलत, बिलकुल गलत मार्ग से चल रहा है। वह परेशान होगा, पहुंचेगा कहीं भी नहीं। ___ हालांकि कुछ लोग परेशानी को तप समझ लेते हैं। जो परेशानी को तप समझ लेते हैं, उनकी नासमझी का कोई हिसाब नहीं है। तप से ज्यादा आनंद नहीं है, लेकिन तप को लोग परेशानी समझ लेते हैं क्योंकि परेशानी यही है, उनको दस कपड़े चाहिए थे, उन्होंने नौ रख लिए, वे बड़े परेशान हैं। परेशानी उतनी ही है जितना दस में मजा था। दस के मजे का अनुपात ही परेशानी बन जाएगा। दस में कम हो गया तो परेशानी शरू हो गयी। अब वह परेशानी को तप समझ रहे हैं। परेशानी तप नहीं है। ___यह मैंने मुल्ला की पत्नी की बात आपसे की। यह उसने जानकर उस स्त्री से शादी की। गांवभर में खबर थी कि वह बहुत दुष्ट है, कलहपूर्ण है। चालीस साल तक उससे कोई शादी करनेवाला नहीं मिला था। और जब नसरुद्दीन ने खबर की कि मैं उससे शादी करता हूं, तो मित्रों ने कहा-तू पागल तो नहीं हो गया है नसरुद्दीन? इस औरत को कोई शादी करनेवाला नहीं मिला है। यह खतरनाक है, तेरी गर्दन दबा देगी। यह तेरे प्राण ले लेगी; यह तुझे जीने न देगी; तू बहुत मुश्किल में पड़ जाएगा। नसरुद्दीन ने कहा-मैं भी चालीस साल तक अविवाहित रहा। अविवाहित रहने में मैंने बहुत पाप कर लिए। इससे शादी करके मैं प्रायश्चित करना चाहता हूं। दिस इज गोइंग टु बी ए पिनांस। यह एक तप है। जानकर कर रहा हूं। लेकिन पश्चाताप तो करना पडेगा न। स्त्रियों से इतना सख पाया, जब इतना ही दख पाऊंगा, तब तो हल होगा न! और यह स्त्री जितना दख दे सकती है, शायद दुसरी न दे सके। यह बड़ी अदभुत है। नसरुद्दीन ने शादी कर ली। मित्रों ने बहुत समझाया, न माना। लेकिन नसरुद्दीन की पत्नी के पास खबर पहंच गयी कि नसरुद्दीन ने इसलिए शादी की है ताकि यह स्त्री उसको सताए और उसका तप हो जाए। और उसने कहा, भूल में न रहो। तुम मेरे ऊपर चढ़कर स्वर्ग न जा सकोगे। मैं किसी का साधन नहीं बन सकती। आज से मैंने, कलह बन्द...। कहते हैं वह स्त्री नसरुद्दीन से जिंदगीभर न लड़ी। उसको नर्क जाना ही पड़ा, नहीं लड़ी। उसने कहा-मुझे तुम साधन बनाना चाहते हो, स्वर्ग जाने का? यह नहीं होगा। यह कभी नहीं हो सकता, तुम नरक जाकर ही रहोगे। वह इसी जमीन पर नरक पैदा करती, उसने पैदा नहीं किया। उसने अगले का इंतजाम कर दिया। __आप किस चीज को साधन बनाकर जाना चाहते हैं स्वयं तक? वस्तुओं को? अपरिग्रह को? बाहर से रोककर अपने को, संभालकर? वह नहीं होगा। आप परेशान भला हो जाएं, तप नहीं होगा। परेशानी तप नहीं है। तप तो बड़ा आनन्द है और तपस्वी के आनंद का कोई हिसाब नहीं है। वस्तुएं दुख हैं। लेकिन यह दुख तभी पता चलेगा आपको जब आपकी वृत्ति के केन्द्र पर आप अनुभव करेंगे और दुख पाएंगे और सुख की कोई रेखा न दिखाई पड़ेगी। अंधेरा ही अंधेरा पाएंगे, कोई प्रकाश की ज्योति न दिखाई पड़ेगी। कांटे ही कांटे पाएंगे, कोई फूल खिलता न दिखाई पड़ेगा। भीतर...भीतर केन्द्र व्यर्थ हो जाएगा, बाहर से आभामण्डल तिरोहित हो जाएगा। अचानक आप पाएंगे, बाहर अब कोई अर्थ नहीं रह गया। लोगों को दिखायी पड़ेगा। आपने बाहर कुछ छोड़ दिया। आप बाहर कुछ भी न छोड़ेंगे, भीतर कुछ टूट गया। भीतर कोई ज्योति ही बुझ गई। तो एक-एक केन्द्र पर उसकी वृत्ति को 206 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340011
Book TitleMahavir Vani Lecture 11 Unodari evam Vrutti Sankshep
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size75 MB
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