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________________ महावीर-वाणी भाग : 1 रहे तो वह इतना कुशल हो जाता है कि कब उसने स्थिति बदल ली, उसे पता नहीं चलता। हम रोज स्थिति बदलते हैं लेकिन अभ्यास के कारण पता नहीं चलता। ___ रात आप सोते हैं—जागने के लिए शरीर दूसरे मैकेनिज्म का उपयोग करता है, सोने के लिए दूसरे। दोनों के मैकेनिज्म अलग हैं, दोनों का यंत्र अलग है। आप उसी यंत्र से नहीं जागते जिससे आप सोते हैं। इसीलिए तो अगर आपके जागने का यंत्र बहुत ज्यादा सक्रिय हो तो आप सो नहीं पाते। उसका और कोई कारण नहीं है, आप दूसरी व्यवस्था में प्रवेश नहीं कर पाते। पहली ही व्यवस्था में अटके रह जाते हैं। अगर आप दुकान, धंधे और काम की बात सोचे चले जा रहे हैं तो आपके जागने का यंत्र काम करता चला जाता है, जब तक वह काम करता है तब तक चेतना उससे नहीं हट सकती। चेतना तभी हटेगी, जब वहां आपका काम बन्द हो जाए तो तत्काल शिफ्ट हो जाएगी। चेतना दूसरे यंत्र पर चली जाएगी, जो निद्रा का है। लेकिन हमें इतना अभ्यास है कि हमें पता नहीं चलता बीच के गैप का। वह जो जागने और नींद के बीच में जो क्षण आता है वह भी वही है जो भोजन छोड़ने और उपवास के बीच में आता है। इसलिए तो आपको नींद में भोजन की जरूरत नहीं पड़ती। आप दस घण्टे सोए रहें तो भी भोजन की जरूरत नहीं पड़ती है। दस घण्टे जागें तो भोजन की जरूरत पड़ती है। ___ आपको पता है, ध्रुव प्रदेश में पोलर बियर होता है, भालू होता है साइबेरिया में। छह महीने जब बर्फ भयंकर रूप से पड़ती है तो कोई भोजन नहीं मिलता। वह सो जाता है। बर्फ के नीचे दबकर सो जाता है। वह उसकी ट्रिक है, वह उसकी तरकीब है। क्योंकि नींद में तो भूख नहीं लगती। वह छह महीने सोया रहता है। छह महीने के बाद वह तभी जगता है जब भोजन फिर मिलने की सविधा शुरू हो जाती है। आपके भीतर जो निद्रा का यंत्र है वहां आपको भोजन की कोई जरूरत नहीं, क्योंकि वह यंत्र वही यंत्र है जो उपवास में प्रगट होता है। वह आपका इमर्जेंसी मेजरमेंट है. खतरे की स्थिति में उसका उपयोग करना होता है। इसलिए आप जानकर हैरान होंगे कि अगर बहुत खतरा पैदा हो जाए तो आदमी नींद में चला जाता है। यह आप जानकर हैरान होंगे, अगर इतना खतरा पैदा हो जाए कि आप अपने मस्तिष्क से उसका मुकाबला न कर सकें तो आप नींद में चले जाएंगे। आप बेहोश हो जाते हैं, बहुत दुख हो जाए, तो। उसका और कोई कारण नहीं है, इतना दुख हो जाता है कि आपका जाग्रत मस्तिष्क उसको सहने में असमर्थ है तो तत्काल शिफ्ट हो जाता है और गहरी तंद्रा में चला जाता है, बेहोश हो जाता है। बेहोशी दुख से बचने का उपाय है। हम अकसर कहते हैं-मुझे बड़ा असह्य दुख है। लेकिन ध्यान रहे, असह्य दुख कभी नहीं होता। असह्य होने के पहले आप बेहोश हो जाते हैं। जब तक सहनीय होता है तभी तक आप होश में आते हैं। जैसे ही असहनीय हो जाता है, आप बेहोश हो जाते हैं। इसलिए असह्य दुख को कोई आदमी कभी नहीं भोग पाता। भोग ही नहीं सकता। इंतजाम ऐसा है कि असह्य दुख होने के पहले आप बेहोश हो जाएं। इसलिए मरने के पहले अधिक लोग बेहोश हो जाते हैं। क्योंकि मरने के पहले जिस यंत्र से आप जी रहे थे, उसकी अब कोई जरूरत नहीं रह जाती। चेतना शिफ्ट हो जाती है उस यंत्र पर, जो इस यंत्र के पीछे छिपा है। मरने से पहले आप दूसरे यंत्र पर उतर जाते हैं। __ मनुष्य के शरीर में दोहरा शरीर है। एक शरीर है जो दैनंदिन काम का है - जागने का, उठने का, बैठने का, बात करने का, सोचने का, व्यवहार का; एक और यंत्र है छिपा हुआ भीतर गुह्य, जो संकटकालीन है। अनशन का प्रयोग उस संकटकालीन यंत्र में प्रवेश का है। इस तरह के बहुत से प्रयोग हैं जिनसे मध्य का गैप, मध्य का जो अंतराल है वह उपलब्ध होता है। सूफियों ने अनशन का उपयोग नहीं किया, सफियों ने जागने का उपयोग किया है। एक ही बात है, उसमें फर्क नहीं है। प्रयोग अलग हैं, परिणाम एक 172 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340010
Book TitleMahavir Vani Lecture 10 Anshan Madhya ke Kshan ka Anubhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size84 MB
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