SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 19
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनशन : मध्य के क्षण का अनुभव करके खड़े होते। अभी भी खड़े होते हैं, लेकिन अब जैन दिगम्बर मुनि-वैसा प्रयोग करता है अभी भी-लेकिन वह सब जाहिर है कि वह क्या-क्या नियम लेता है। पांच-सात नियम जाहिर हैं, वह वही के वही लेता है, पांच-सात घरों में वे नियम पूरे कर देते हैं। किसी घर के सामने केले लटके होंगे। अब वह मालम है। वे केले लटका लेते हैं सब लोग अपने घर के सामने। कोई स्त्री सफेद साडी पहनकर भोजन के लिए निमंत्रण करेगी, वह मालूम है। अब पांच-सात नियम फिक्स्ड हो गए हैं। पांच-सात नियम पांच-सात घरों में लोग खड़े हो जाते हैं करके। अब जैन मुनि कभी बिना भोजन लिए नहीं लौटता। निश्चित ही वह महावीर से ज्यादा होशियार है। कभी नहीं लौटता खाली हाथ। तब तो उसको मिलता ही है, इसलिए पक्का मामला है उसको और उसको बनानेवाले, भोजन बनानेवालों में कोई न कोई सांठगांठ है। भोजन बनानेवालों को पता है, उसको पता है। वह वही नियम लेता है, वही भोजन बनानेवाले पूरा कर देते हैं। भोजन लेकर वह लौट जाता है। आदमी अपने को कितने धोखे दे सकता है! __महावीर की प्रक्रिया बहुत और है। वह यह थी-वे किसी को कहेंगे नहीं, वह उनके भीतर है बात। अब वह क्या है? कभी-कभी तीन तीन महीने महावीर को खाली, बिना भोजन लिए गांव से लौट जाना पड़ा। बात खत्म हो गयी, पर इनडेफिनिट है। और जब मन के लिए कोई सीमा नहीं होती तो मन को तोड़ना बहुत आसान हो जाता है; जब मन के लिए सीमा होती है तो खींचना बहुत आसान होता है। एक ही घंटे की तो बात है, तो निकाल देंगे। चौबीस घंटे की बात है, गुजार देंगे लेकिन इनडेफिनिट। महावीर का जो अनशन था, उसकी कोई सीमा न थी। वह कब पूरा होगा कि नहीं होगा, कि यह जीवन का अंतिम होगा भोजन, इसके बाद नहीं होगा इसका भी कुछ पक्का पता नहीं। वह कल पर है, कल की बात है। कल गांव में वे जाएंगे-हो गया, हो गया; नहीं हुआ, नहीं हुआ; वापिस लौट आएंगे, बात खत्म हो गयी। . इसलिए महावीर ने उपवास और अनशन पर जैसे गहरे प्रयोग किए, इस पृथ्वी पर किसी ने कभी नहीं किए। मगर आश्चर्य की बात है कि इतने कठिन प्रयोग करके भी महावीर को फिर भी भोजन तो कभी-कभी मिल ही जाता था। बारह वर्ष में तीन सौ पैंसठ बार भोजन मिला। कभी पंद्रह दिन बाद, कभी दो महीने बाद, कभी तीन महीने बाद, कभी चार महीने बाद, पर भोजन मिला। तो महावीर कहते थे—जो मिलनेवाला है, वह मिल ही जाता है। और महावीर कहते थे-त्याग तो उसी का किया जा सकता है जो नहीं मिलनेवाला है। उसका तो त्याग भी कैसे हो सकता है जो मिलनेवाला ही है। और तब महावीर कहते थे—जो नियति से मिला है, उसका कर्म-बंधन मेरे ऊपर नहीं है। मेरा नहीं है कोई संबंध उससे। क्योंकि मैंने किसी से मांगा नहीं, मैंने किसी से कहा नहीं, छोड़ दिया अनंत के ऊपर। कि होगी जगत को कोई जरूरत मुझे चलाने की तो और चला लेगा। और नहीं होगी जरूरत तो बात खत्म हो गयी। मेरी अपनी कोई जरूरत नहीं है। ध्यान रहे महावीर की सारी प्रक्रिया जीवेषणा छोड़ने की प्रक्रिया है। महावीर कहते हैं - मैं जीवित रहने के लिए कोई एषणा नहीं करता हूं। अगर इस अस्तित्व को ही, अगर इस होने को ही जरूरत हो मेरी कोई, इंतजाम तुम जुटा लेना, वह मेरा इंतजाम नहीं है। और तुम्हें कोई जरूरत न रह जाए तो मेरी तरफ से जरूरत पहले ही छोड़ चुका हूं। लेकिन आश्चर्य तो यही है कि फिर भी महावीर जिये चालीस वर्ष - स्वस्थ जिये, आनंद से जिये। इस भूख ने उन्हें मार न डाला। इस नियति पर छोड़ देने से वे दीन-हीन न हो गए। यह जीवेषणा को हटा देने से मौत न आ गयी। जरूर बहुत से राज पता चलते हैं। हमारी यह चेष्टा कि मैं ही मुझे जिला रहा हूं, विक्षिप्तता है। और हमारा यह खयाल कि जब तक मैं न मरूंगा, कैसे मरूंगा? नासमझी है। बहुत कुछ हमारे हाथ के बाहर है, उसे भी हम समझते हैं कि हमारे हाथ के भीतर है। जो हमारे हाथ के बाहर है उसे हाथ के भीतर समझने से ही अहंकार का जन्म होता है। जो हमारे हाथ के बाहर है, उसे हाथ के बाहर ही समझने से अहंकार विसर्जित 185 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340010
Book TitleMahavir Vani Lecture 10 Anshan Madhya ke Kshan ka Anubhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size84 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy