SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महावीर-वाणी भाग : 1 जाए और यह खयाल आ जाए कि मैं अपनी ही इंद्रियों का गुलाम हो गया हूं तो शायद थोड़ी यात्रा करनी पड़े-थोड़ी यात्रा करनी पड़े इंद्रियों के विपरीत। अनशन, वैसी ही यात्रा की शुरुआत है। ___महावीर कहते हैं, ठीक। आज नहीं, बात समाप्त हो गयी। लेकिन आपके नहीं और हां में बहुत फर्क नहीं है। आपके व्यक्तित्व में हां और नहीं में बहुत फर्क नहीं है। आपका बेटा आपसे कहता है-यह खिलौना लेना है। आप कहते हैं-नहीं। बड़ी ताकत से कहते हैं, लेकिन बेटा वहीं पैर पटकता खड़ा रहता है, वह कहता है कि लेंगे। दुबारा आप कहते हैं—मान जा, नहीं लेंगे। आपकी ताकत क्षीण हो गयी है। आपका नहीं, हां की तरफ चल पड़ा। वह बेटा पैर पटकता ही रहता है। वह कहता, लेंगे। आखिर आप लेते हैं। बेटा जानता है कि आपकी नहीं का कुल इतना मतलब है कि तीन चार दफे पैर पटकना पड़ेगा और हां हो जाएगी। और कुछ मतलब नहीं ज्यादा। छोटे से छोटे बच्चे भी जानते हैं कि आपके 'न' की ताकत कितनी है। एंड हाउ मच यू मीन बाई सेइंग नो। बच्चे जानते हैं और आपके न को कैसे काटना है, यह भी वे जानते हैं। और काट देते हैं। आपकी न को हां में बदल देते हैं। और जितने जोर से आप कहते हैं नहीं, उतने जोर से बच्चा जानता है कि यह कमजोरी की घोषणा है। यह आप डरवाने की कोशिश कर रहे हैं। डरे हुए अपने से ही हैं कि कहीं हां न निकल जाए। वह बच्चा समझ जाता है, जोर से बोले हैं, ठीक है, अभी थोड़ी देर में ठीक हो जाएंगे। नहीं, जो आदमी सच में शक्तिशाली है वह 'जोर से नहीं कहीं कहता है, वह शान्ति से कह देता है, 'नहीं' / और बात समाप्त हो गयी। ___ आपकी इंद्रियां भी ठीक इसी तरह का टानट्रम सीख लेती हैं जैसा बच्चे सीख लेते हैं। आप कहते हैं-आज भोजन नहीं; तो आप हैरान होंगे, अगर आप रोज ग्यारह बजे भोजन करते हैं तो आपको रोज ग्यारह बजे भूख लगती है। लेकिन अगर आपने कत रात तय किया कि कल उपवास करेंगे तो छह बजे से भूख लगती है। यह बड़े आश्चर्य की बात है। ग्यारह बजे रोज भूख लगती थी, छह बजे कभी नहीं लगती थी। हुआ क्या? क्योंकि अभी आपने, अभी तो कुछ किया नहीं, अभी तो अनशन भी शुरू नहीं हुआ, वह ग्यारह बजे शुरू होगा। सिर्फ खयाल, रात में तय किया कि कल अनशन करना है, उपवास करना है, सुबह से भूख लगने लगी। सुबह से क्या, रात से शुरू हो जाएगी। वह आपके पेट ने आपके न को हां में बदलने की कोशिश उसी वक्त शुरू कर दी। उसने कहा, तुम क्या समझते हो? ग्यारह बजे तक वह नहीं रुकेगा। भूख इतने जोर से कभी नहीं लगती थी। रोज तो ऐसा था असल में कि ग्यारह बजे खाते थे इसलिए खाते थे। वह एक समय का बंधन था। लेकिन आज भूख बड़े जोर से लगेगी, और अभी ग्यारह नहीं बजे इसलिए वस्तुतः तो कहीं कोई फर्क नहीं पड़ा है। रोज भी ग्यारह बजे तक भूखे रहते थे, कोई फर्क नहीं पड़ा है कहीं भी लेकिन चित्त में फर्क पड़ गया और इंद्रियां अपनी मालकियत कायम करने की कोशिश करेंगी। वह कहेंगी कि नहीं, बहुत जोर से भूख लगी है, इतने जोर से कभी नहीं लगी थी, ऐसी भूख लगी है। निश्चित ही कोई भी अपनी मालकियत आसानी से नहीं छोड़ देता। एक बार मालकियत दे देना आसान है, वापस लेना थोड़ा कठिन पड़ता है। वही कठिनता तपश्चर्या है। लेकिन, अगर आप सुनिश्चित हैं और आपके न का मतलब न, और हां का मतलब हां होता है-सच में होता है, तो इंद्रियां बहत जल्दी समझ जाती हैं। बहत जल्दी समझ जाती हैं कि आपके न का मतलब न है और आपके हां का मतलब हां है। इसलिए मैं आपसे कहता हं, संकल्प अगर करना है तो फिर तोड़ना मत, अन्यथा करना ही मत। क्योंकि संकल्प करके तोड़ना आपको इतना दुर्बल कर जाता है कि जिसका कोई हिसाब नहीं। संकल्प करना ही मत, वह बेहतर है। क्योंकि संकल्प टूटेगा नहीं तो उतनी दुर्बलता नहीं आएगी। एक भरोसा तो रहेगा कि कभी करेंगे तो पूरा कर लेंगे। लेकिन संकल्प करके अगर आपने तोड़ा 182 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340010
Book TitleMahavir Vani Lecture 10 Anshan Madhya ke Kshan ka Anubhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size84 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy