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________________ महावीर-वाणी भाग : 1 है कि आप नींद में क्या कर रहे हो। उससे पता चलेगा, आप आदमी कैसे हो, असली खोज क्या है आपकी? तो अगर आप दिन में उपवास किए तो उससे पता नहीं चलेगा। रात सपने में भोजन किए या नहीं, उससे पता चलेगा। अगर रात सपने में भोजन किए, दिन का अनशन बेकार गया, उपवास व्यर्थ हुआ। लेकिन जिस दिन आप उपवास करते हैं, उस दिन सपने में भोजन करना ही पड़ता है, अनिवार्य है। कहीं न कहीं निमंत्रण मिल जाता है, आप कर भी क्या सकते हैं? राजमहल में भोज हो जाता है, आप कर भी क्या सकते हैं। जाना पड़ता है। चिंतन जो नहीं हो पा रहा है वास्तविक रूप से उसे पूरा करने की डेसपरेट कोशिश है-भोजन नहीं किया तो चिंतन कर रहे हैं। और ध्यान रहे. भोजन करते तो पंद्रह मिनट में पूरा हो जाता, चिंतन से पंद्रह मिनट में नहीं चलेगा। पंद्रह मिनट का काम एक-सौ पचास घंटे चलाना पड़ेगा। चलता ही रहेगा, चलता ही रहेगा, क्योंकि तृप्ति तो मिलेगी नहीं भोजन की, रस तो मिलेगा नहीं भोजन का, शक्ति तो मिलेगी नहीं भोजन की, तो फिर चिंतन में ही उलझाए रखना पड़ेगा। इसलिए महावीर ने, इस चिंतन को अगर आपने किया, तो महावीर ने कहा है कि आप शरीर से करते हैं कोई काम या मन से, इसमें मैं भेद नहीं करता। आपने चोरी की, या चोरी के बाबत सोचा, मेरे लिए बराबर है। पाप हो गया। यह सवाल नहीं है कि आपने हत्या की, या हत्या के संबंध में सोचा / अदालत फर्क करती है अगर आप हत्या के संबंध में सोचें, कोई अदालत आपको सजा नहीं दे सकती। आप खूब सोचें मजे से। कोई अदालत यह नहीं कह सकती कि आप जर्मी हैं, अपराधी हैं। आप अदालत में कह भी सकते हैं-हम हत्या का बहत रस लेते हैं, सपने भी देखते हैं, और दिन-रात सोचते हैं कि इसकी गर्दन काट दें, उसकी गर्दन काट दें, वह काटते ही रहते हैं। चाहे कहें या न कहें। अदालत आपका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती है, आप कानून की पकड़ के बाहर हैं। कानून सिर्फ कृत्य को पकड़ सकता है, कर्म को पकड़ सकता है लेकिन महावीर कहते हैं-धर्म. भाव को भी पकडता है। धर्म की अदालत के बाहर नहीं हो सकते। भाव पर्याप्त हो गया। महावीर कहते हैं-कृत्य तो सिर्फ भाव की बाह्य छाया है, मूल तो भाव है। अगर मैंने हत्या करनी चाही तो मैंने तो हत्या कर ही दी, बाहर की परिस्थितियों ने करने दी, यह बात है। पुलिसवाला खड़ा था, अदालत खड़ी थी, सजा का डर था. फांसी का तख्ता था, इसलिए नहीं की। यह दूसरी बात है। बाहर की परिस्थितियों ने नहीं करने दी, यह दूसरी बात है। मेरी तरफ से मैंने कर दी। अगर परिस्थिति सुगम होती, सुविधापूर्ण होती, पुलिसवाला न होता या पुलिसवाला रिश्तेदार होता, या अदालत अपनी होती, मजिस्ट्रेट अपना होता, कानून अपना चलता होता तो मैंने कर दी होती। फिर कोई मुझे रोकनेवाला नहीं। न करने का कारण बाहर से आ रहा है, करने का कारण भीतर से आ रहा है। भीतर की ही तौल है, अंततः आप तौले जाएंगे आपकी परिस्थितियां नहीं तौली जाएंगी। यह नहीं पूछा जाएगा कि जब आप हत्या करना चाह रहे थे तो आपके पास बंदूक नहीं थी इसलिए नहीं कर पाए। भाव पर्याप्त है, हत्या हो गयी। ___ अगर आपने भोजन का चिंतन किया, उपवास नष्ट हो गया। तब तो बड़ी कठिनाई है। इसका मतलब यह हुआ कि आप तब तक उपवास न कर पाएंगे जब तक आपका चिंतन पर नियंत्रण न हो, नहीं कर पाएंगे। इसलिए मैंने कहा-चर्चा के लिए हमने नंबर एक पर रखा है, लेकिन इसको आप अकेला न कर पाएंगे जब तक चिंतन पर नियंत्रण न हो, जब तक चिंतन आपके पीछे न चलता हो, जब तक जो आप चलाना चाहते हो चिंतन में, वही न चलता हो। अभी तो हालत यह है कि चिंतन जो चलाना चाहता है वहीं आपको चलना पड़ता है। जहां ले जाता है मन, वहीं आपको जाना पड़ता है। नौकर मालिक हो गए हैं। सुना है मैंने कि अमरीका का एक बहत बड़ा करोड़पति रथचाइल्ड. सबह-सबह जो भी भिखमंगे उसके पास आते थे उन्हें कछ 180 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340010
Book TitleMahavir Vani Lecture 10 Anshan Madhya ke Kshan ka Anubhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size84 MB
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