________________ महावीर-वाणी भाग : 1 आकस्मिक प्रयोग है। अभ्यास तो उसी बात को मार डालेगा जिस बात के लिए प्रयोग है। इसलिए भूलकर अनशन का अभ्यास मत करना। आकस्मिक, अचानक, छलांग लगा लेना एक अति से दूसरी अति पर ताकि बीच का हिस्सा खयाल में आ जाए। अगर आपको विश्राम में जाना हो तो किताबें हैं जो आपको समझाती हैं कि बस लेट जाएं, एंड जस्ट रिलेक्स और विश्राम करें। आप कहेंगे, कैसे? अगर मालूम ही होता, 'जस्ट रिलेक्स' इतना आसान होता तो हम पहले ही कर गए होते। आप कहते हैं कि लेट जाओ, रिलेक्स कर जाओ, विश्राम में चले जाओ। कैसे चले जाएं? लेकिन झेन फकीर ऐसी सलाह नहीं देते जापान में। जो आदमी नहीं सो पाता, विश्राम नहीं कर पाता, वह उससे कहते हैं - पहले, बी टैंस ऐज़ मच ऐज़ यू कैन। हाथ पैरों को खींचो, जितने मस्तिष्क को खींच सकते हो, खींचो, हाथ पैरों को जितना तनाव दे सकते हो, दो, बिलकुल पागल की तरह अपने शरीर के साथ व्यवहार करो। जितने तुम तन सकते हो, तनो। रिलेक्स भर मत होना, तनो, बी टैंस। वे कहते हैं - मस्तिष्क को जितना सिकोड़ सकते हो, माथे की रेखाएं जितनी पैदा कर सकते हो, करो। सारे अंगों को ऐसे सिकोड़ लो कि जैसे कि आखिरी क्षण आ गया, सारी शक्ति को सिकोडकर खींच डालो. और जब एक शिखर आता है तनाव का, तब झेन फकीर कहता है - नाउ रिलेक्स, अब छोड दो। आ एक अति से ठीक दूसरी अति में गिर जाते हैं। और जब आप एक अति से दूसरी अति में गिरते हैं तो बीच में वह क्षण आता है मध्य का, जहां स्वयं का पहला स्वाद मिलता है। ___ इसके बहुत प्रयोग हैं, लेकिन सब प्रयोग एक अति से दूसरी अति में जाने के हैं। कहीं से भी एक अति से दूसरी अति में प्रवेश कर जाओ। अगर अभ्यास हो गया तो मध्य का बिन्दु छोटा हो जाता है, इतना छोटा हो जाता है कि पता भी नहीं चलता। उसका फिर कोई बोध नहीं होता। ___ अनशन की कुछ और दो तीन बातें खयाल में ले लेनी चाहिए कि महावीर का जोर अनशन पर बहुत ज्यादा था। कारण क्या होंगे? एक तो मैंने यह कहा, यह तो उसका एसोटेरिक, उसका आंतरिक हिस्सा है, उसका गुह्यतम हिस्सा है। उसका राज, उसका सीक्रेट तो इसमें है। लेकिन और क्या बातें थीं? महावीर जानते हैं और जो भी प्रयोग किए हैं इस दिशा में वे भी जानते हैं कि शरीर से इस शरीर से आपका जो संबंध है वह भोजन के द्वारा है। इस शरीर और आपके बीच जो सेतु है, वह भोजन है। अगर यह जानना हो कि मैं यह शरीर नहीं हूं तो उस क्षण में जानना आसान होगा जब आपके शरीर में भोजन बिलकुल नहीं है। जोड़नेवाला लिंक जब बिलकुल नहीं है, तभी जानना आसान होगा कि मैं शरीर नहीं हूं। जोड़नेवाली चीज जितनी ज्यादा शरीर में मौजूद है, उतना ही जानना मुश्किल होगा। भोजन ही जोड़ता है, इसलिए भोजन के अभाव में नब्बे दिन के बाद टूट जाएगा संबंध-आत्मा अलग हो जाएगी, शरीर अलग हो जाएगा। क्योंकि बीच का जो जोड़नेवाला हिस्सा था वह अलग हो गया, वह बीच से गिर गया। तो महावीर कहते हैं-जब तक शरीर में भोजन पड़ा है, जब तक जोड़ है उस स्थिति में अपने को ले आओ-जब शरीर में भोजन बिलकुल नहीं है तो तुम आसानी से जान सकोगे कि तुम शरीर से अलग हो, पृथक हो। आइडेंटिफिकेशन टूट सकेगा, तादात्म्य टूट सकेगा। यह सच है। इसलिए जितना ही ज्यादा शरीर में भोजन होता है उतना ही शरीर के साथ तादात्म्य होता है—जितना ज्यादा शरीर में भोजन होता है उतना शरीर के साथ तादात्म्य होता है। इसलिए भोजन के बाद नींद तत्काल आनी शुरू हो जाती है। शरीर के साथ तादात्म्य बढ़ जाता है तब मूर्छा बढ़ जाती है। शरीर के साथ तादात्म्य टूट जाता है तो होश बढ़ता है। इसलिए उपवासे आदमी को नींद आना बड़ा मुश्किल होता है। बिना खाए रात नींद नहीं आती। नींद मुश्किल हो जाती है। ___ इससे तीसरी बात खयाल में ले लें - महावीर का सारा का सारा प्रयोग जागरण का है, अमूर्छा का है, होश का, अवेयरनेस का है। तो महावीर कहते हैं - भोजन चूंकि मूर्छा को बढ़ाता है, तंद्रा पैदा करता है, भोजन के बाद नींद अनिवार्य हो जाती है इसलिए 176 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org