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________________ महावीर-वाणी भाग : 1 कठिनाई हमारी आदत में है। आदतें बड़ी कठिन हो जाती हैं। और कभी-कभी स्वभाव, जो कि हमारी आदत नहीं है, जो कि वस्तु का धर्म है-उसके ऊपर हमारी आदत इतनी सख्त होकर बैठ जाती है कि स्वभाव को दबा देती है। हम सबके स्वभाव दबे हए हैं आदतों से। जिसको महावीर कर्म का क्रम कहते हैं वह हमारी आदतों का क्रम है। हमने आदतें बना रखी हैं, वे हमें दबाए हुए हैं। वह आदतें लम्बी हैं, पुरानी हैं, गहरी हैं। उनसे छूट जाना आज इसी वक्त सम्भव नहीं हो जाएगा। तो हम उनसे लड़ना शरू करते हैं और उल्टी आदतें बनाते हैं। लेकिन आदत फिर भी आदत ही होती है। गलत तपस्वी सिर्फ आदत बनाता है तप की। ठीक तपस्वी स्वभाव को खोजता है, आदत नहीं बनाता। हैबिट और नेचर का फर्क समझ लें। हम सब आदतें बनवाते हैं। हम बच्चे को कहते हैं-क्रोध न करो, क्रोध की आदत बुरी है। न क्रोध करने की आदत बनाओ। वह न क्रोध करने की आदत तो बना लेता है, लेकिन उससे क्रोध नष्ट नहीं होता, क्रोध भीतर चलने लगता है। कामवासना पकड़ती है तो हम कहते हैं कि ब्रह्मचर्य की आदत बनाओ। वह आदत बन जाती है। लेकिन कामवासना भीतर सरकती रहती है, वह नीचे की तरफ बहती रहती है। उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। तपस्वी खोजता है-स्वभाव के सूत्र को, ताओ को, धर्म को। वह क्या है जो मेरा स्वभाव है, उसे खोजता है। सब आदतों को हटाकर वह अपने स्वभाव का दर्शन करता है। लेकिन आदतों को हटाने का एक ही उपाय है-ध्यान मत दो, आदत पर ध्यान मत दो। एक मित्र चार छह दिन पहले मेरे पास आए। उन्होंने कहा कि आप कहते हैं कि बम्बई में रहकर, और ध्यान हो सकता है! यह सड़क का क्या करें, भोंपू का क्या करें? ट्रेन जा रही है, सीटी बज रही है, इसका क्या करें? मैंने उनसे कहा-ध्यान मत दो। उन्होंने कहा-कैसे ध्यान न दें! खोपड़ी पर भोंपू बज रहा है, नीचे कोई हार्न बजाए चला जा रहा है, ध्यान कैसे न दें! मैंने उनसे कहा-एक प्रयास करो। भोंपू कोई नीचे बजाये जा रहा है, उसे भोंपू बजाने दो। तुम ऐसे बैठे रहो, कोई प्रतिक्रिया मत करो कि भोंपू अच्छा है कि भोंपू बुरा है, कि बजानेवाला दुश्मन कि बजानेवाला मित्र है, कि इसका सिर तोड़ देंगे अगर आगे बजाया। कुछ प्रतिक्रिया मत करो। तुम बैठे रहो, सुनते रहो। सिर्फ सुनो। थोड़ी देर में तुम पाओगे कि भोंपू बजता भी हो तो भी तुम्हारे लिए बजना बन्द हो जाएगा। एक्सेप्ट इट, स्वीकार करो। जिस आदत को बदलना हो उसे स्वीकार कर लो। उससे लड़ो मत। स्वीकार कर लो, जिसे हम स्वीकार लेते हैं उस पर ध्यान देना बन्द हो जाता है। क्या आपको पता है, किसी स्त्री के आप प्रेम में हों, उस पर ध्यान होता है। फिर विवाह करके उसको पत्नी बना लिया. फिर वह स्वीकृत हो गयी, फिर ध्यान बंद हो जाता है। जिस चीज को हम स्वीकार कर लेते हैं...! एक कार आपके पास नहीं है, वह सड़क पर निकलती है चमकती हुई, ध्यान खींचती है। फिर आपको मिल गयी, फिर आप उसमें बैठ गये हैं। फिर थोड़े दिन में आपको खयाल ही नहीं आता है कि वह कार भी है, चारों तरफ जो ध्यान को खींचती थी, वह स्वीकार हो गयी। जो चीज स्वीकृत हो जाती है उस पर ध्यान जाना बन्द हो जाता है। स्वीकार कर लो, जो है उसे स्वीकार कर लो। अपने बुरेसेबुरे हिस्से को भी स्वीकार कर लो। ध्यान देना बन्द कर दो, ध्यान मत दो। उसको ऊर्जा मिलनी बन्द हो जाएगी। वह धीरे-धीरे अपने आप क्षीण होकर सिकुड़ जाएगी, टूट जाएगी। और जो बचेगी ऊर्जा, उसका प्रवाह अपने आप भीतर की तरफ होना शुरू हो जाएगा। गलत तपस्वी उन्हीं चीजों पर ध्यान देता है जिन पर भोगी देता है। सही तपस्वी... ठीक तप की प्रक्रिया...ध्यान का रूपांतरण है। वह उन चीजों पर ध्यान देता है, जिन पर न भोगी ध्यान देता है, न तथाकथित त्यागी ध्यान देता है। वह ध्यान को ही बदल देता है। और ध्यान हमारा हमारे हाथ में है। हम वहीं देते हैं जहां हम देना चाहते हैं। 144 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340008
Book TitleMahavir Vani Lecture 08 Tap Urja ka Disha Parivartan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size77 MB
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