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________________ महावीर-वाणी भाग : 1 ध्वनियां। उस आदमी को अंतर-ध्वनि की तरफ जाने में कठिनाई होगी। उसे मुश्किल होगी, उसे अड़चन होगी। नहीं, जो इंद्रिय आपकी सर्वाधिक आपको परेशान करती मालूम पड़ती है, जिससे निषेधवाला लड़ना शुरू कर देता है, वह आपकी मित्र है। क्योंकि वही इंद्रिय आपकी सबसे पहले भीतर की तरफ मोड़ी जा सकती है, तो अपनी इंद्रिय को खोज लें। गुरजिएफ के पास कोई जाता था तो वह कहता था-'तेरी सबसे बड़ी कमजोरी क्या है? पहले तू मुझे अपनी सबसे बड़ी कमजोरी बता दे, तो मैं उसे ही तेरी सबसे बड़ी शक्ति में रूपांतरित कर दूंगा।' वह ठीक कहता था। यही है शक्ति। आपकी सबसे बड़ी कमजोरी क्या है? क्या रूप आपको आकर्षित करता है? तो भयभीत न हों, रूप ही आपका द्वार बन जाएगा। क्या स्पर्श आपको बुलाता है? भयभीत न हों, स्पर्श ही आपका मार्ग है। क्या स्वाद आपको खींचता है और आपके स्वप्नों में प्रवेश कर जाता है? तो स्वाद को धन्यवाद दें। वही आपका सेतु बनेगा। जो इंद्रिय आपकी सर्वाधिक संवेदनशील है, उससे अगर आप लड़े, तो कुंठित हो जाएगी। आपने अपने ही हाथ अपना सेतु तोड़ लिया। अगर विधायक संयम की धारणा से चले तो आप उसी इंद्रिय को मार्ग बना लेंगे, उसी पर आप पीछे लौट आएंगे। और ध्यान रहे, जिस रास्ते से हम जाते हैं, बाहर; उसी रास्ते से भीतर आते हैं। रास्ता वही होता है, सिर्फ दिशा बदल जाती है। चेहरा बदल जाता है। आप यहां आए हैं, इस भवन तक, जिस रास्ते से आए हैं, उसी से वापस लौटेंगे। सिर्फ रुख और हो जाएगा। मुंह अभी भवन की तरफ था, अब अपने घर की तरफ होगा। लेकिन भूलकर भी अगर आपने ऐसा सोचा कि जो रास्ता मुझे अपने घर से इतनी दूर ले आया, वह मेरा दुश्मन है, इस पर मैं नहीं चलूंगा, तो आप पक्का समझ लें, आप अपने घर अब कभी भी नहीं पहुंच पाएंगे। कोई रास्ता दुश्मन नहीं है और रास्ते दोनों दिशाओं में खुले हैं। ___ तो, जिस रास्ते से आप बाहर के जगत में सर्वाधिक आकर्षित होते हैं और खिंचे जाते हैं—वह चाहे आंख हो, चाहे स्वाद हो, चाहे ध्वनि हो, कुछ भी हो—जिस रास्ते से आप सर्वाधिक बाहर जाते हैं, या जिस रास्ते से आप सर्वाधिक अपने से दूर चले गए हैं, वही रास्ता आपके संयम की विधायक दिशा में सहयोगी बनेगा। उसी से आपको वापस लौटना है। उससे लडना मत। उससे लडकरते उसको तोड़ देंगे। तोड़कर आपको लौटना बहुत मुश्किल हो जाएगा। ध्यान रहे, यह बहुत अजीब लगेगा। लेकिन आपको जोर से कहना चाहता है कि लोग उन इंद्रियों के कारण बाहर नहीं भटक गए हैं, लोग उन इंद्रियों के कारण बाहर भटक जाते हैं जिनके रास्ते वे तोड़ देते हैं। जिन इंद्रियों के रास्ते वे तोड़ देते हैं लौटने के, उनकी वजह से भटक जाते हैं। इंद्रियों की वजह से कोई नहीं भटकता है। हम सब तोड़ते हैं। - लोग मेरे पास आते हैं और कहते हैं-हमारी और कोई तकलीफ नहीं है; बस, यह स्वाद हमें परेशान कर रहा है। किसी तरह स्वाद से छुटकारा दिला दें। उन्हें पता ही नहीं है कि जो उन्हें परेशान कर रहा है वही उनके लौटने का मार्ग है। इसे मैं कहता हूं, संयम की विधायक दृष्टि। ___ इसके एक और पहलू को खयाल में ले लेना चाहिए। जितनी इंद्रियां हैं हमारे पास, उनका एक तो प्रगट रूप है जिसे हम बहिर इंद्रिय कहते हैं। महावीर ने आत्मा की तीन स्थितियां कही हैं-एक को वे कहते हैं—बहिर आत्मा। बहिर आत्मा उस आत्मा को कहते हैं जो अभी इंद्रियों का बाहर की तरफ उपयोग कर रहा है। दूसरे को महावीर कहते हैं-अंतरात्मा। अंतरात्मा वह आत्मा है जो अब इंद्रियों का भीतर की तरफ उपयोग कर रही है। और तीसरे को महावीर कहते हैं-परमात्मा। परमात्मा वह आत्मा है, जिसका बाहर और भीतर मिट गया। जिसको न अब कुछ बाहर है, न कुछ भीतर है। जो न बाहर जा रही है, न भीतर आ रही है। जो बाहर जा रही है वह बहिर आत्मा है, जो भीतर आ रही है वह अंतरात्मा है; जो अब कहीं नहीं जा रही है, जहां है वहीं है, स्वभाव में प्रतिष्ठित, वह परमात्मा 118 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340007
Book TitleMahavir Vani Lecture 07 Sanyam ki Vidhayak Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size79 MB
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