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________________ संयम : मध्य में रुकना वह किसी को इस हालत में ला दे। कीर्कगार्ड ने अपनी एक अदभूत किताब लिखी है- डायरी आफ ए सिड्यूसर, एक व्यभिचारी की डायरी। उसमें कीर्कगार्ड ने लिखा है कि वह जो व्यभिचारी है, जो डायरी लिख रहा है, एक काल्पनिक कथा है। वह व्यभिचारी जीवन के अंत में यह लिखता है कि मैं बड़ी भूल में रहा, मैं समझता था, मैं स्त्रियों को व्यभिचार के लिए राजी कर रहा हूं। आखिर में मुझे पता चला कि वे मुझसे ज्यादा होशियार हैं कि उन्होंने ही मेरे साथ व्यभिचार करवा लिया था। दे सिड़यस्ड मी। दैट टेकनीक वाज निगेटिव / भ्रम बना रहा। कोई स्त्री कभी प्रस्ताव नहीं करती किसी पुरुष से विवाह करने का। प्रस्ताव करवा लेती है पुरुष से ही। इंतजाम सब करती है कि वह प्रस्ताव करे। प्रस्ताव करती नहीं है। यह स्त्री और पुरुष के मन का भेद है। स्त्री के मन का ढंग बहुत सूक्ष्म है। आप देखते हैं कि अगर एक आदमी जा रहा है एक स्त्री को धक्का मारने, तो फौरन हमें लगता है कि गलती इसने किया। और वह स्त्री घर से पूरा इंतजाम करके चली है कि अगर कोई धक्का न मारे तो उदास लौटेगी। धक्का मारे तो भी चिल्ला सकती है। लेकिन चिल्लाने का कारण जरूरी नहीं है कि धक्का मारने पर नाराजगी है। चिल्लाने का सौ में निन्यानबे कारण यह है कि बिना चिल्लाये किसी को पता नहीं चलेगा कि धक्का मारा गया। पर यह बहुत गहरे में उसको भी पता न हो, इसकी पूरी संभावना है। क्योंकि स्त्री जितनी बन-ठनकर, जिस व्यवस्था से निकल रही है, वह धक्का मारने के लिए परा का पूरा निमंत्रण है। उस निमंत्रण में हाथ उनका है। हमारे सोचने के जो ढंग हैं वे एकदम हमेशा पक्षपाती हैं। हम हमेशा सोचते हैं, कुछ हो रहा है तो एक आदमी जिम्मेवार है। हमें खयाल ही नहीं आता कि इस जगत में जिम्मेवारी इतनी आसान नहीं, ज्यादा उलझी हुई है। दूसरा भी जिम्मेवार हो सकता है। और दूसरे की जिम्मेवारी गहरी भी हो सकती है। कुशल भी हो सकती है। चालाक भी हो सकती है। सूक्ष्म भी हो सकती है। महावीर जब देखेंगे तो पूरा देखेंगे। और उस परे देखने में, हमारे देखने में फर्क पड़ेगा। महावीर का जो 'विज़न' है, वह टोटल होगा। __अब दूसरी बात यह है कि महावीर कुछ करेंगे कि नहीं! भला अलग देखेंगे, यह भी समझ लिया जाये। कुछ करेंगे कि नहीं? तो मैं आपसे कहना चाहता हूं महावीर कुछ न करेंगे, जो होगा उसे हो जाने देंगे। इस फर्क को समझ लें। आप रास्ते से गुजर रहे हैं और किसी की हत्या हो रही है तो आप खड़े होकर सोचेंगे कि क्या करूं। करूं किन करूं? आदमी ताकतवर है कि कमजोर दिखता है? करूंगा तो फल क्या होंगे? किसी मिनिस्टर का रिश्तेदार तो नहीं है? करके उलटा मैं तो न फंसूंगा? आप पच्चीस बातें सोचेंगे, तब करेंगे। महावीर से कुछ होगा, सोचेंगे वे नहीं। सोचना वक्त बीते जा चुका। जिस दिन सोचना गया, उसी दिन वे महावीर हुए। विचार अब नहीं चलता। विचार हमेशा पार्शियल होता है, विजन टोटल होता है। विचार हमेशा पक्षपाती होता है; दृष्टि, दर्शन, पूर्ण होता है। महावीर को एक स्थिति दर्शन में दिखाई पड़ेगी। फिर जो हो जाएगा वह हो जाएगा। महावीर लौटकर भी नहीं सोचेंगे कि मैंने क्या किया? क्योंकि उन्होंने कुछ किया नहीं। इसलिए महावीर कहते हैं- पूर्ण कृत्य, कर्म का बंधन नहीं बनता। टोटल एक्ट कोई बंधन नहीं लाता। कुछ उनसे होगा कि नहीं होगा, लेकिन उसे हम प्रिडिक्ट नहीं कर सकते, उसे हम कह नहीं सकते कि वे क्या करेंगे। महावीर भी नहीं कह सकते पहले से कि मैं क्या करूंगा। उस सिचुएशन में, उस स्थिति में महावीर से क्या होगा, इसके लिए कोई प्रिडिक्शन, कोई ज्योतिषी नहीं बता सकता। ___ हमारे बाबत प्रिडिक्शन हो सकता है, इसे थोड़ा समझ लेना चाहिए। जितनी कम समझ हो, उतने हम प्रिडिक्टेबल होते हैं। जितनी हमारी नासमझी होगी, उतनी हमारे बाबत जानकारी बतायी जा सकती है कि हम क्या करेंगे। मशीन के बाबत हम परे प्रिि हो सकते हैं। जानवर के बाबत थोड़ी दिक्कत होती है, लेकिन फिर भी नब्बे प्रतिशत हम कह सकते हैं कि गाय आज सायं घर आकर 97 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340006
Book TitleMahavir Vani Lecture 06 Sanyam Madhya me Rukna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size80 MB
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