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________________ महावीर-वाणी भाग : 1 आदमी नब्बे दिन तक नहीं मरता- कम से कम नब्बे दिन जी सकता है, साधारण स्वस्थ आदमी हो तो। और जिस व्यक्ति की जीवन की आकांक्षा चली गयी हो, वह असाधारण रूप से स्वस्थ होता है। क्योंकि हमारी सारी बीमारियां जीने की आकांक्षा से पैदा होती हैं। तो नब्बे दिन तक तो वह मर नहीं सकता। महावीर ने कहा- वह पानी छोड़ दे, भोजन छोड़ दे, लेट जाए, बैठा रहे। आत्महत्याएं जितनी भी की जाती हैं क्षणों के आवेश में की जाती हैं। क्षण भी खो जाए तो आत्महत्या नहीं हो सकती / क्षण का एक आवेश होता है। उस आवेश में आदमी इतना पागल होता है कि कूद पड़ता है नदी में। आग लगा लेता है। शायद आग लगाकर जब शरीर जलता है तब पछताता है। लेकिन तब हाथ के बाहर हो गयी होती है बात। जहर पी लेता है। अगर जहर फैलने लगता है, और तड़फन होती है, तब पछताता है। लेकिन तब शायद हाथ के बाहर हो गयी है बात। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि अगर आत्महत्या करनेवाले को हम क्षणभर के लिए भी रोक सकें तो वह आत्महत्या नहीं कर पाएगा। क्योंकि उतनी मैडनेस की जो तीव्रता है वह तरल हो जाती है, विरल हो जाती है, क्षीण हो जाती है। महावीर कहते हैं कि मैं आज्ञा देता हूं ध्यानपूर्वक मर जाने की। तुम भोजन-पानी सब छोड़ देना नब्बे दिन। अगर उस आदमी में जरा सी भी जीवेषणा होगी तो भाग खड़ा होगा, लौट आएगा। अगर जीवेषणा बिलकुल न होगी तो ही नब्बे दिन वह रुक पाएगा। नब्बे दिन लंबा समय है। मन एक ही अवस्था में नब्बे दिन रह जाए, यह आसान घटना नहीं है। नब्बे क्षण नहीं रह पाता। सुबह सोचते थे मर जाएंगे, शाम को सोचते हैं कि दूसरे को मार डालें। मन नब्बे दिन...इसलिए फ्रायड को मानने वाले मनोवैज्ञानिक कहेंगे कि महावीर में कहीं न कहीं सुसाइडल तत्व है, कहीं न कहीं आत्महत्यावादी तत्व है। लेकिन मैं आपसे कहता हूं- नहीं है। असल में जिस व्यक्ति में जीवेषणा ही नहीं है उसके मरने की एषणा भी नहीं होती / मृत्यु की एषणा जीवेषणा का दूसरा पहलू हैविरुद्ध नहीं है, उसी का अंग है...विरुद्ध नहीं है, उसी का अंग है। इसलिए महावीर ने कोई मृत्यु की चेष्टा नहीं की। जिसकी जीवन की चेष्टा ही न रही हो, उसकी मृत्यु की चेष्टा भी नहीं रह जाती। महावीर कहते हैं कि एक हिस्से को हम फेंक दें, दूसरा हिस्सा उसके साथ ही चला जाता है। संथारा का महावीर का अर्थ है- आत्महत्या नहीं, जीवेषणा का इतना खो जाना कि पता ही न चले और व्यक्ति शून्य में लीन हो जाए। आत्महत्या की इच्छा नहीं, क्योंकि जहां तक इच्छा है, वहां तक जीवन की ही इच्छा होगी। इसे ठीक से समझ लें। डिजायर इज आलवेज डिजायर फार द लाइफ-आलवेज। मृत्यु की कोई इच्छा ही नहीं होती। मृत्यु की इच्छा में ही जीवन की इच्छा भी छिपी होती है, जीवन का कोई आग्रह छिपा होता है। तो महावीर कोई आत्मघाती नहीं हैं। उतना बड़ा आत्मज्ञानी नहीं हुआ, आत्मघाती होने का सवाल नहीं है। / लेकिन यह बात जरूर सच है कि महावीर के विचार में बहुत से आत्मघाती उत्सुक हए, बहत से आत्मघाती महावीर से आकर्षित हुए। और उन आत्मघातियों ने महावीर के पीछे एक परंपरा खड़ी की जिससे महावीर का कोई भी संबंध नहीं है। ऐसे लोग जरूर उत्सुक हुए महावीर के पीछे जिनको लगा कि ठीक है, मरने की इतनी सुगमता और कहां मिलेगी। और मरने का इतना सहयोग और कहां मिलेगा। और मरने की इतनी सुविधा और कहां मिलेगी। इसलिए महावीर के पीछे ऐसे लोग जरूर आये जिनका चित्त रुग्ण था, जो मरना चाहते थे। जीवन की आकांक्षा के त्याग से वे महावीर के करीब नहीं आये, मरने की आकांक्षा के कारण वे महावीर के करीब आ गये। लक्षण बिलकुल एक से हैं, लेकिन भीतर व्यक्ति बिलकुल अलग थे। और जो मरने की इच्छा से आये, वे महावीर की परंपरा में बहत अग्रणी हो गये। स्वभावतः जो मरने को तैयार है उसको नेता होने में कोई असविधा नहीं होती हो सकती है। जो मरने को तैयार है वह पंक्ति में आगे कभी भी खड़ा हो सकता है, किसी भी पंक्ति में। और जो अपने को सताने को तैयार है वह लगा कि बडा त्यागी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org,
SR No.340005
Book TitleMahavir Vani Lecture 05 Ahimsa Jiveshana ki Mrutyu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size72 MB
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