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________________ महावीर-वाणी भाग : 1 विपरीत को भी समाविष्ट कर सकता है। सत्य इतना बड़ा है, सिर्फ असत्य छोटे-छोटे होते हैं। महावीर कहते थे, असत्य छोटे-छोटे होते हैं। उनकी सीमा होती है। सत्य इतना बड़ा है, इतना असीम है कि अपने से विपरीत को भी समाविष्ट कर लेता है। यही वजह है कि महावीर का विचार बहुत ज्यादा दूर तक, ज्यादा लोगों तक नहीं पहुंच सका क्योंकि सभी लोग निश्चित वक्तव्य चाहते हैंडागमेटिक। सभी लोग यही चाहते हैं, क्योंकि सोचना कोई नहीं चाहता है। सोचने में तकलीफ, अडचन होती है। सब लोग उधार चाहते हैं। कोई तीर्थंकर खड़े होकर कह दे कि जो मैं कहता हूं, वह सत्य है, तो जो सोचने से बचना चाहते हैं वे कहेंगे- बिलकुल ठीक है, मिल गया सत्य, अब झंझट मिटी। __महावीर इतनी निश्चितता किसी को भी नहीं देते। महावीर के पास जो बैठा रहेगा वह सुबह जितना कंफ्यूज्ड था, शाम तक और ज्यादा कंफ्यूज्ड हो जाएगा। वह जितना परेशान आया था, सांझ तक और परेशान होकर लौटेगा क्योंकि महावीर को दिन में वह ऐसी बातें कहता सनेगा, ऐसे-ऐसे लोगों को हां भरते सनेगा कि उसके सारे के सारे जो-जो निश्चित आधार थे. सब डगमगा जाएंगे। उसकी सारी भवन की रूपरेखा गिर जाएगी। और महावीर कहते थे- अगर सत्य तक तुम्हें पहुंचना है तो तुम्हारे विचारों के समस्त आग्रह गिर जाएं तभी। तुम हिंसा करते हो जब तुम कहते हो, यही सत्य है। तब तुम सत्य तक पर मालकियत कर लेते हो। तब तुम सत्य तक को भी सिकोड़ देते हो और अपने तक बांध लेते हो। तब तुम सत्य तक का परिग्रह कर देते हो। इसलिए महावीर कहते थे कि दूसरा क्या कहता है, वह भी सत्य हो सकता है। और तुम जल्दी मत करना कि दूसरा गलत है। ___मुल्ला नसरुद्दीन को उस मुल्क के सम्राट ने बुलाया, और लोगों ने खबर की है कि अजीब आदमी है। आप बोलो ही न, उसके पहले खंडन शुरू कर देता है। सम्राट ने कहा- यह तो ज्यादती है। दूसरे को मौका मिलना चाहिये। सम्राट ने नसरुद्दीन को बुलाया और कहा कि मैंने सुना है कि तुम दूसरे को सुनते ही नहीं और बिना जाने कि वह क्या सोचता है, तुम बोलना शुरू कर देते हो—कि गलत हो! मुल्ला नसरुद्दीन ने कहा कि ठीक सुना है। सम्राट ने कहा- मेरे विचारों के संबंध में क्या खयाल है? अभी उसने कुछ विचार बताया नहीं। मुल्ला ने कहा- सरासर गलत है। सम्राट ने कहा- लेकिन तुमने सुने भी नहीं। मुल्ला ने कहा- यह सवाल ही नहीं है, तुम्हारे हैं, इसलिए गलत। क्योंकि मेरे ठीक होते हैं। इररिलेवेंट है यह बात कि तुम क्या सोचते हो। इससे कोई संगति ही नहीं है। तुम सोचते हो, काफी है, गलत होने के लिए। मैं सोचता हूं, काफी है, सही होने के लिए। ___ हम सब ऐसे ही हैं। आप इतने हिम्मतवर नहीं हैं कि दूसरे को बिना सुने गलत कहें। लेकिन जब आप सुनकर भी गलत कहते हैं तब आप पहले से ही जानते थे कि वह गलत था। तो सुनकर आप भी नहीं कहते- ध्यान रखना, सुनकर आप भी नहीं कहते। आप पहले से जानते थे कि वह गलत है। सिर्फ धीरज, संकोच, शिष्टता आपको रोकती है कि कम से कम सन तो लो, गलत तो है ही। मुल्ला नसरुद्दीन आपसे ज्यादा ईमानदार आदमी है। वह कहता है- सुनने के लिए समय क्यों खराब करना। हम जानते ही हैं कि तुम गलत हो, क्योंकि सभी गलत हैं, सिर्फ सारे विवाद जगत के यही हैं। सम्राट मुल्ला से बहुत प्रसन्न हो गया और उसने कहा कि तुम रहो, हमारे दरबार में ही रह जाओ। 88 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org .
SR No.340005
Book TitleMahavir Vani Lecture 05 Ahimsa Jiveshana ki Mrutyu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size72 MB
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