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________________ महावीर-वाणी भाग : 1 मार्ग से हट जाते हैं क्योंकि हम अकारण आपको रोकने का कारण न बनें। महावीर उठे और चल पड़े। यह अहिंसा है। अहिंसा का अर्थ है, गहनतम अनुपस्थिति। इसलिए मैंने कहा कि बुद्ध का जो तथाता का भाव है, वही महावीर की अहिंसा का भाव है। तथाता का अर्थ है - जैसा है, स्वीकार है। अहिंसा का भी यही अर्थ है कि हम परिवर्तन के लिए जरा भी चेष्टा न करेंगे। जो हो रहा है ठीक है, जो हो जाए ठीक है। जीवन रहे तो ठीक है, मृत्यु आ जाए तो ठीक है। हमारी हिंसा किस बात से पैदा होती है? जो हो रहा है वह नहीं, जो हम चाहते हैं वह हो। तो हिंसा पैदा होती है। हिंसा है क्या? इसलिए युग में जितना ज्यादा परिवर्तन की आकांक्षा भरती है, युग उतने ही हिंसक होते चले जाते हैं / आदमी जितना चाहता है, ऐसा हो, उतनी हिंसा बढ़ जाएगी। महावीर की अहिंसा का अर्थ अगर हम गहरे में खोलें, गहरे में उघाड़ें, उसकी डेप्थ में, तो उसका यह अर्थ है कि जो है उसके लिए हम राजी हैं। हिंसा का कोई सवाल नहीं है, कोई बदलाहट नहीं है, कोई बदलाहट नहीं करनी है। आपने चांटा मार दिया, ठीक है। हम राजी हैं, हमें अब और कुछ भी नहीं करना है, बात समाप्त हो गयी। हमारा कोई प्रत्युत्तर नहीं। इतना भी नहीं जितना जीसस का है। जीसस कहते हैं, दूसरा गाल सामने कर दो। महावीर इतना भी नहीं कहते कि जो चांटा मारे, तुम दूसरा गाल उसके सामने करना, क्योंकि यह भी एक उत्तर है। एक 'सार्ट आफ आंसर' है। है तो उत्तर- चांटा मारना भी एक उत्तर है, दूसरा गाल कर देना भी एक उत्तर है। लेकिन तुम राजी न रहे, बात जितनी थी उतने से तुमने कुछ न कुछ किया। ___ महावीर कहते हैं- करना ही हिंसा है, कर्म ही हिंसा है। अकर्म अहिंसा है। चांटा मार दिया है, ठीक है जैसे एक वृक्ष से सूखा पत्ता गिर गया है। ठीक है, आप अपनी राह चले गये। एक आदमी ने चांटा मार दिया, आप अपनी राह चले गये। एक आदमी ने गाली दी, आपने सुनी और आगे बढ़ गये। क्षमा भी करने का सवाल नहीं है क्योंकि वह भी कृत्य है। कुछ करने का सवाल नहीं है। पानी में उठी लहर और अपने-आप बिखर जाती है। ऐसा ही चारों तरफ लहरें उठती रहेंगी कर्म की, बिखरती रहेंगी। तुम कुछ मत करना। तुम चुपचाप गुजरते जाना। पानी में लहर उठती है, मिटानी तो नहीं पड़ती, अपने से आप मिट जाती है। हारे चारों तरफ हो रहा है, उसे होते रहने देना है, वह अपने से उठेगा और गिर जाएगा। उसके उठने के नियम हैं, उसके गिरने के नियम हैं, तुम व्यर्थ बीच में मत आना। तुम चुपचाप दूर ही रह जाना। तुम तटस्थ ही रह जाना। तुम ऐसा ही जानना कि तुम नहीं थे। जब कोई चांटा मारे तब तुम ऐसे हो जाना कि तुम नहीं हो, तो उत्तर कौन देगा। गाल भी कौन करेगा, गाली कौन देगा, क्षमा कौन करेगा? तुम ऐसा जानना कि तुम नहीं हो। तुम्हारी एब्सेंस में, तुम्हारी अनुपस्थिति में जो भी कर्म की धारा उठेगी वह अपने से पानी में उसकी लहर की तरह खो जाएगी। तुम उसे छूने भी मत जाना। हिंसा का अर्थ है, मैं चाहता हूं, जगत ऐसा हो। __ उमर खैयाम ने कहा है- मेरा वश चले और प्रभु तू मुझे शक्ति दे तो तेरी सारी दुनिया को तोड़कर दूसरी बना दूं। अगर आपका भी वश चले तो दुनिया को आप ऐसी ही रहने देंगे जैसी है? दुनिया! दुनिया तो बहुत बड़ी चीज है, कुछ भी आप ऐसा न रहने देंगे, छोटा- मोटा भी जैसा है। उमर खैयाम के इस वक्तव्य में सारे मनुष्यों की कामना तो प्रगट हुई ही है, और हिंसा भी। अगर महावीर से कहा जाए, अगर आपको पूरी शक्ति दे दी जाए कि यह दुनिया कैसी हो, तो महावीर कहेंगे, जैसी है, वैसी हो -- एज इट इज / मैं कुछ भी न करूंगा। लाओत्से ने कहा है- श्रेष्ठतम सम्राट वह है जिसका प्रजा को पता ही नहीं चलता / श्रेष्ठतम सम्राट वह है जिसका प्रजा को पता ही नहीं चलता, वह है भी या नहीं। महावीर की अहिंसा का अर्थ है कि ऐसे हो जाओ कि तुम्हारा पता ही न चले और हमारी सारी 70 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340004
Book TitleMahavir Vani Lecture 04 Dharm Swabhav me Hona
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size82 MB
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