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________________ धर्म : स्वभाव में होना भी, दूसरे के लिए भी। तुम ऐसे हो जाओ जैसे हो ही नहीं। ___ महावीर घर छोड़कर जाना चाहते थे तो मां ने कहा- 'मत जाओ, मुझे दुख होगा'। महावीर नहीं गये, क्योंकि इतनी भी जाने की जिद से होने का पता चलता है। आग्रह था कि नहीं, जाऊंगा। अगर महावीर की जगह कोई भी होता तो उसका त्याग और जोश मारता- क्या कहते हैं गुजराती में आप, जस्सा। उसका जोश और बढ़ता। वह कहता, कौन मां, कौन पिता? सब संबंध बेकार हैं। यह सब संसार है। जितना समझाते, उतना वे शिखर पर चढ़ते / अधिक संन्यासी, अधिक त्यागी आपके समझाने की वजह से हो गये हैं। भूल से मत समझाना। कोई कहे 'जाते हैं', कहना, 'नमस्कार'। तो वह आदमी जाने के पहले पच्चीस दफे सोचेगा कि जाना कि नहीं जाना। आप घेरा बांधकर खड़े हो गये, आपने अटेंशन देनी शुरू कर दिया। आपने कहा कि उनको जाना महत्वपूर्ण हो गया। जरूरी हो गया। अब यह व्यक्तित्व की लड़ाई हो गई। अब सिद्ध करना पड़ेगा। इतने त्यागी न हों दुनिया में अगर आसपास के लोग इतना आग्रह न करें- तो त्यागी एकदम कम हो जाएंगे। इसमें नब्बे प्रतिशत तो बिलकुल ही न हों और तब दुनिया का हित हो। क्योंकि जो दस प्रतिशत बचे उनके त्याग की एक गरिमा हो। उनका एक अर्थ हो। लेकिन आप रोकते हैं, वही कारण बन जाता है। महावीर रुक गये, मां भी थोड़ी चकित हुई होगी, ऐसा कैसा त्याग! फिर महावीर ने दुबारा न कहा कि एक दफा और निवेदन करता हूं कि जाने दो। बात ही छोड़ दी। मां के मरने तक फिर बोले ही नहीं। कहा ही नहीं कुछ। मां ने भी सोचा होगा, जरूर सोचा होगा कि यह कैसा त्याग! क्योंकि त्यागी तो एकदम जिद बांधकर खड़ा हो जाता है। मां मर गयी। घर लौटते वक्त अपने बड़े भाई को महावीर ने कहा- कब्रिस्तान से लौटते वक्त, मरघट से, कि अब मैं जा सकता हूं? क्योंकि वह मां कहती थी, उसे दुख होगा। तो बात समाप्त हो गयी, अब वह है ही नहीं। भाई ने कहा, तू आदमी कैसा है! इधर इतना बड़ा दुख का पहाड़ टूट पड़ा हमारे ऊपर, कि मां मर गई, और तू अभी छोड़कर जाने की बात करता है! भूलकर ऐसी बात मत करना। महावीर चप हो गये। फिर दो वर्ष तक भाई भी हैरान हआ कि यह त्याग कैसा! क्योंकि वे तो अब चुप ही हो गये। उन्होंने फिर दोबारा बात न कही। इतनी उपस्थिति को हटा लेने का नाम अहिंसा है। दो वर्ष में घर के लोगों को खुद चिंता होने लगी कि कहीं हम ज्यादती तो नहीं कर रहे हैं। भाई को पीड़ा होने लगी, क्योंकि देखा कि महावीर घर में हैं तो, लेकिन करीब-करीब ऐसे जैसे न हों- एक घोस्ट एग्जिसटेंस रह गया, शैडो एग्जिसटेंस। कमरे से ऐसे वाज न हो। घर में किसी को कुछ कहते नहीं कि किसी को पता चले कि मैं भी हैं। कोई सलाह नहीं देते, कोई उपदेश नहीं देते। बैठे देखते रहते हैं, जो हो रहा है—हो रहा है! उसमें वे उसके साक्षी हो गये हैं। कई-कई दिनों तक घर के लोगों को खयाल ही न आता कि महावीर कहां हैं। बड़ा महल था। फिर खोजबीन करते कि महावीर कहां हैं तो पता चलता। खोजबीन करने से पता चलता। ____ तो भाई ने और सबने बैठकर सोचा कि हम कहीं ज्यादती तो नहीं कर रहे हैं, कहीं हम भूल तो नहीं कर रहे हैं। हम सोचते हैं कि हम रोकते हैं इसलिए रुक जाता है। लेकिन हमें ऐसा लगता है कि इसलिए रुक जाता है कि नाहक, इतनी भी उपस्थिति हमें क्यों अनुभव हो, हमें इतनी भी पीड़ा क्यों हो कि हमारी बात तोड़कर गया है। लेकिन लगता हमें ऐसा है कि वह जा चुका है, अब वह घर में है नहीं। उन सबने मिलकर कहा- यह पृथ्वी पर घटी हुई अकेली घटना है- उन सबने, घर के लोगों ने मिलकर कहा कि आप तो जा ही चुके हैं, एक अर्थ में / अब ऐसा लगता है कि पार्थिव देह पड़ी रह गई है, आप इस घर में नहीं हैं। तो हम आपके 69 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340004
Book TitleMahavir Vani Lecture 04 Dharm Swabhav me Hona
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size82 MB
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