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________________ महावीर-वाणी भाग : 1 है। किसी दिन जब मेरी सामर्थ्य आ जाएगी कि जब मैं शून्य में गिर पाऊंगा- उन चरणों में, जो दिखाई भी नहीं पड़ते; उन चरणों में, जिन्हें छुआ भी नहीं जा सकता। लेकिन जो चरण चारों तरफ मौजूद हैं- जब मैं उस कास्मिक-उस विराट अस्तित्व, निराकार को सीधा ही गिर पाऊंगा। पर जरा गिरने का मुझे आनंद लेने दो। अगर इन दिखाई पड़ते हुए चरणों में इतना आनंद है, उसका मुझे थोड़ा स्वाद आ जाने दो, तो फिर मैं उस विराट में भी गिर जाऊंगा। इसलिए बुद्ध का जो सूत्र है- 'बुद्धं शरणं गच्छामि' वह बुद्ध से शुरू होता है, व्यक्ति से। 'संघं शरणं गच्छामि'- समूह पर बढ़ता। संघ का अर्थ है- उन सब साधुओं का, उन सब साधुओं के चरणों में। और फिर धर्म पर- 'धम्मं शरणं गच्छामि फिर समह से भी हट जाता है। फिर वह सिर्फ स्वभाव में, फिर निराकार में खो जाता है। वही, अरिहंत के चरण गिरता हं: स्वीकार करता हं, अरिहंत की शरण। सिद्ध की शरण स्वीकार करता हूं, साधु की शरण स्वीकार क और अंत में केवलिपनत्तं धम्म शरणं पवज्जामि- धर्म की, जाने हुए लोगों के द्वारा बताये गये ज्ञान की शरण स्वीकार करता हूं। सारी बात इतनी है कि अपने को अस्वीकार करता हूँ। और जो अपने को अस्वीकार करता है वह स्वयं को पा लेता है और जो स्वयं को ही पकड़कर बैठा रह जाता है वह सब तो खो देता है, अंत में स्वयं को भी नहीं पाता। स्वयं को पाने की यह प्रक्रिया बड़ी पैराडाक्सिकल है, बड़ी विपरीत दिखाई पड़ेगी। स्वयं को पाना हो तो स्वयं को छोड़ना पड़ता है। और स्वयं को मिटाना हो तो स्वयं को खूब जोर से पकड़े रहना पड़ता है। दो सूत्र अब तक विकसित हुए हैं जैसा मैंने कहा- एक, सिद्ध की तरफ से कि मेरी शरण आ जाओ। दो, साधक की तरफ से कि मैं तुम्हारी शरण आता हूं। तीसरा कोई सूत्र नहीं है। लेकिन हम तीसरे की तरफ बढ़ रहे हैं। वह तीसरे की तरफ बढ़ते हुए हमारे कदम जीवन में जो भी शुभ है, जीवन में जो भी सुंदर है, जीवन में जो भी सत्य है, उसमें खोने की तरफ बढ़ रहे हैं। समर्पण यानी श्रद्धा। समर्पण यानी शरणागति। समर्पण यानी अहंकार विसर्जन। नमोकार इस पर पूरा होता है। कल से हम महावीर की वाणी में प्रवेश करेंगे। लेकिन वे ही प्रवेश कर पाएंगे जो अपने भीतर शरण की आकृति निर्मित कर पाएंगे। चौबीस घंटे के लिए एक प्रयोग करना। जब भी खयाल आये तो मन में कहना - 'अरिहंते शरणं पवजामि, सिद्धे शरणं पवज्जामि, साह शरणं पवज्जामि, केवलिपन्नत्तं धम्मं शरणं पवज्जामि'। इसे दोहराते रहना चौबीस घंटे। रात सोते समय इसे दोहराकर सो जाना। रात नींद टूट जाए तो इसे दोहरा लेना। सुबह नींद खुले तो पहले इसे दोहरा लेना। कल यहां आते वक्त इसे दोहराते आना। अगर वह शरण की आकृति भीतर बन जाए तो महावीर की वाणी में हम किसी और ढंग से प्रवेश कर सकेंगे- जैसा पच्चीस सौ वर्ष में संभव नहीं हुआ है। आज इतना ही। अब हम यह शरण की आकृति और इसकी ध्वनि में थोड़ा प्रवेश करें। कोई जाए न, बैठ जाएं और सम्मिलित हों। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org,
SR No.340003
Book TitleMahavir Vani Lecture 03 Sharnagati Dharm ka Mul Aadhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size73 MB
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